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आम‍िर खान भी मान चुके हैं इंड‍िया का रियल हीरो, अब म‍िला पद्मश्री

आम‍िर खान भी मान चुके हैं इंड‍िया का रियल हीरो, अब म‍िला पद्मश्री
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एक शख्स के बेटे का कत्ल हुआ और लावार‍िसों की तरह उसका अंत‍िम संस्कार कर द‍िया गया. इस बात से प‍िता इतने दहल गए क‍ि लावार‍िसों का अंत‍िम संस्कार करना उनका ध्येय बन गया. उनके इस काम के ल‍िए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मान‍ित क‍िया गया है. इनका नाम मोहम्मद  शरीफ है और यह फैजाबाद (अयोध्या) के रहने वाले हैं.
आम‍िर खान भी मान चुके हैं इंड‍िया का रियल हीरो, अब म‍िला पद्मश्री
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पेशे से साइक‍िल मिस्त्री मो. शरीफ लावारिस हिंदू लाशों का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से और मुस्लिम लाशों का मुस्लिम रीति से कराते हैं. अपनी पूरी कमाई भी इन्हीं लावारिसों के अंत‍िम संस्कार में खर्च कर देते हैं.
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2 हजार से ज्यादा लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले शरीफ भाई अब तक 300  से अधिक हिंदुओं  और  2500  से अधिक मुस्लिम लाशों  को कफन मुहैया करा चुके हैं. यह सारा काम वे खुद अपने हाथों से करते हैं. लावारिस लाशों को खुद अपने रिक्शे और ठेले से लाते और ले जाते हैं. शवों को अपने हाथों से नहलाकर और कफन पहनाकर खुद सुपुर्द-ए-खाक करते हैं.
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मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में जब शरीफ को इंडिया का रियल हीरो चुना गया तो उन्होंने अपनी कहानी सुनाई. इसके बाद उस समारोह में मौजूद आमिर खान, जैकी श्रॉफ, अनिल अंबानी, उनकी पत्नी समेत अन्य लोग रो दिए. यही नहीं, आमिर खान ने अपने शो 'सत्यमेव जयते' में भी इन्हें बुलाया था और उनकी बाकायदा प्लेन टिकट और सारी व्यवस्था भी की थी. शरीफ के अनुसार, आमिर ने उनकी कहानी को भी शूट कर अपने शो में दिखाया है.
आम‍िर खान भी मान चुके हैं इंड‍िया का रियल हीरो, अब म‍िला पद्मश्री
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मोहम्मद  शरीफ ने बताया क‍ि मेरे लड़के का नाम रईस खान था. वह होम्योपैथिक डॉक्टर की डिग्री पास कर चुका था. वह सुल्तानपुर से दवा लाता था और देता था. एक द‍िन वह सुल्तानपुर गया. हम समझे कहीं गया है, शाम को आएगा. स्टेशन पर उसकी गाड़ी खड़ी थी लेकिन उसका पता नहीं था. उसके बाद हम लोगों ने पागलों की तरह एक महीना ढूंढा. मेरी बीवी भी परेशान थी और पूरा मोहल्ला भी परेशान था.
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शरीफ ने आगे बताया क‍ि एक महीने के बाद शंभू मार्केट न्यू टेलर के यहां का स‍िला हुआ कपड़ा थानाध्यक्ष लेकर आया. उस पर लिखा था पीरु टेलर, शंभू मार्केट, रिकाबगंज. हमें बुलाया गया तो मैंने देखा क‍ि वह मेरे बेटे की है.  जब एक महीने के बाद मुझे होश आया, तब मैंने कसम खाई की फैजाबाद में न हिंदू, न मुसलमान, सब इंसान हैं. हम किसी की मिट्टी लावारिस में नहीं फेंकने देंगे. 27 बरस हो गए, 300 हिंदू भाई और ढाई हजार मुसलमानों को अब तक हमने सुपुर्द-ए-खाक किया है.

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