उत्तराखंड में 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से हुई तबाही इकलौती ऐसी घटना नहीं है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा हो. इससे पहले भारत समेत दुनिया के कई देशों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. पहाड़ों पर ऐसी घटनाएं ग्लेशियर के टूटने से या फिर ग्लेशियरों की वजह से बनी झीलों की दीवारें टूटने से होती हैं. आइए जानते हैं कि दुनिया में इससे खतरनाक ग्लेशियरों या ग्लेशियर झीलों के टूटने की घटनाएं कहां-कहां हुई हैं...(फोटोःगेटी)
आइसलैंड (Iceland): 1996 का हादसा - आइसलैंड के वात्नाजोकुल (Vatnajokull) ग्लेशियर के बीच में ग्रिम्सवॉन झील (Grimsvotn) है. इस झील के अंदर एक ज्वालामुखी है. 1996 में यह ज्वालामुखी फट पड़ा. इसके फटने और कंपन से वात्नाजोकुल ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा खिसककर स्कीयोआरा नदी में जा गिरा. इसकी वजह से इस नदी में बाढ़ आ गई. यहां से 50 हजार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड की गति से पानी बह रहा था. इससे 13 फीट ऊंची और करीब आधा किलोमीटर चौड़ी लहर उठी. इस लहर में 100 से 200 टन के आइसबर्ग तैर थे. इनमें से कुछ तो 33 फीट ऊंचे थे. इसकी वजह से लोगों के मरने की खबर तो नहीं आई, लेकिन काफी तबाही मची थी. (फोटोःगेटी)
अलास्का (Alaska): अक्सर टूटता है यहां का ग्लेशियर- अलास्का के प्राचीन इतिहास में लेक एटना और कॉपर रिवर बेसिन ने कई ग्लेशियल आउटबर्स्ट फ्लड को पैदा किया है. लेक जॉर्ज की वजह से 1918 से 1966 तक लगभग हर साल निक नदी में ग्लेशियल बाढ़ आई है. हर इस झील के चारों तरफ बर्फ की मोटी दीवार बनती है. पानी के दबाव से ये फिर टूट जाती है. सबसे ज्यादा ग्लेशियल बाढ़ दक्षिण-पूर्वी अलास्का के एबीस लेक में आता है. लेकिन इस इलाके में कोई रहता नहीं तो लोगों के जानमाल के नुकसान की आशंका कम रहती है. (फोटोःगेटी)
अमेरिका (United States): ग्लेशियर से आई बाढ़ का बड़ा इतिहास - अमेरिका में सबसे प्राचीन ग्लेशियल बाढ़ की घटना को मिसौला फ्लड या स्पोकेन फ्लड के नाम से जाना जाता है. ये उत्तरी अमेरिका के कोलंबिया नदी की घटना है. लेकिन हालफिलहाल की सबसे बड़ी घटना 6 से 10 सितंबर 2003 के बीच हुई. जब व्योमिंग में विंड रिवर माउंटेंस के ग्रासहोपर ग्लेशियर के टूटने से तबाही आई. इसकी वजह से 24.60 लाख क्यूबिक मीटर पानी चार दिनों तक पहता रहा. इसकी वजह से 32 वर्ग किलोमीटर का इलाका पानी में डूब गया. (फोटोःगेटी)
पेरू (Peru): दुनिया की सबसे भयावह तबाही - पेरू में 13 दिसंबर 1941 को कॉर्डीलेरा ब्लैंका (Cordillera Blanca) पहा़ड़ के नीचे बने ग्लेशियर से एक बड़ा टुकड़ा टूटकर पाल्काकोचा झील (Lake Palcacocha) में गिर पड़ा. इस झील का की बर्फीली दीवार टूट गई. इसकी वजह से जो बाढ़ आई, उससे हुआराज कस्बे के 1800 से 7000 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद ही दुनिया भर के साइंटिस्ट्स का ध्यान ग्लेशियर की वजह से आने वाली बाढ़ पर गया. इसके बाद ही पूरी दुनिया में ग्लेशियर की स्थितियों की जांच और रिसर्च किया जाने लगा. (फोटोःगेटी)
कनाडा (Canada): 1978 से 2003 तक कई बार तबाही - कनाडा में ग्लेशियर टूटने की वजह से आई बाढ़ की पहली बड़ी घटना 1978 की है. हुआ यूं कि कैथेड्रल ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने की वजह से आई बा़ढ़ से कैनेडियन पैसिफिक रेलवे ट्रैक पर एक मालगाड़ी पानी और कीचड़ में बह गई. ट्रांस कनाडा हाइवे का कुछ हिस्सा कीचड़ में धंस गया. ऐसी ही घटना 1994 में ब्रिटिश कोलंबिया के फैरो क्रीक में भी हुई. इसके बाद 2003 में एक ग्लेशियर टूटने से एलिसमेयर द्वीप पर स्थित लेक टुबोर्ग में बाढ़ आ गई. किस्मत अच्छी थी कि जनहानि नहीं हुई. (फोटोःगेटी)
भूटान (Bhutan): 2674 ग्लेशियर झीलों में से 24 खतरनाक - भूटान में 2674 ग्लेशियर झीलें हैं. इनमें से 24 ऐसे हैं जो कभी भी ग्लेशियल बाढ़ ला सकते हैं. अक्टूबर 1994 को पुनाखा जोंग से 90 किलोमीटर दूर अपस्ट्रीम में ग्लेशियर टूटने की वजह से फो छू नदी में बाढ़ आ गई. इससे पूरा पुनाखा जोंग इलाका तबाह हो गया. दर्जनों लोग मारे गए. साल 2001 में साइंटिस्ट ने जांच की तो पता चला कि ये घटना थोरथोर्मी झील में ग्लेशियर का हिस्सा टूटने की वजह से हुई थी. इसलिए इस झील से एक पानी की छोटी नहर निकाल दी गई ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो. (फोटोःगेटी)
इंग्लैंड/फ्रांस (England/France): 2 लाख साल पहले की त्रासदी- ऐसा माना जाता है कि डोवर की खाड़ी (Strait of Dover) 2 लाख साल पहले तब बनी, जब वील्ड-अर्टायस एंटीक्लाइन (Wealed-Artois Anticline) पर एक ग्लेशियर टूटा. इसके बाद यहां पर एक प्राकृतिक बांध बन गया और यहां पर एक बड़ी झील बन गई. लेकिन धीरे-धीरे यह झील उत्तरी सागर (North Sea) में तब्दील हो गई. इस हादसे का सही कारण आज तक नहीं पता. लेकिन इसकी वजह ब्रिटेन को यूरोपियन महाद्वीप से जोड़ने वाले स्थलडमरूमध्य टूट गया. इसकी वजह से एक घाटी बन गई जो इंग्लिश चैनल के नीचे हैं. (फोटोःगेटी)
नेपाल (Nepal): 1985 में बरसा है कहर - नेपाल में ग्लेशियर टूटने और ग्लेशियल झील के फटने की घटनाएं अक्सर होती हैं. लेकिन 1985 में डिग चो (Dig Cho) ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट ने भारी तबाही मचाई थी. 1996 में नेपाल की सरकार ने घोषणा की कि डिग शे, इम्जा, लोअर बरून, तोशो रोल्पा और थुलागी नाम के पांच ग्लेशियर अत्यधिक खतरनाक हैं. ये सारे 4100 मीटर से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. साल 2001 में ICIMOD की स्टडी में सामने आया कि नेपाल में पिछले कुछ सालों में कुछ ऐसे ग्लेशियर वाले झील बने हैं जो खतरनाक है. ये कभी भी फट सकते हैं. यहां पर फिलहाल 20 खतरनाक झील हैं. इसके अलावा गंडकी नदी के बेसिन में 1025 ग्लेशियर और 338 ग्लेशियर झीले हैं. (फोटोःगेटी)
भारत (India): 1929 में सिंधु नदी में आई थी आफत- 1929 में काराकोरम रेंज पर स्थित चॉन्ग कुमदान ग्लेशियर (Chong Kumdan Glacier) के टूटने से सिंधु नदी में बाढ़ आ गई थी. इसकी वजह से 1200 किलोमीटर तक पानी का तेज बहाव था. सबसे बुरी हालत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एटॉक जिले में भारी तबाही हुई थी. इसके बाद इस तरह की छोटी-मोटी घटनाएं होती आई हैं. इस साल 7 फरवरी को नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने से पैदा हुई बाढ़ ने पावर प्लांट को बर्बाद कर दिया. ऐसा माना जा रहा है कि 150 लोग मारे गए हैं. फिलहाल इन लोगों को खोजबीन जारी है. (फोटोःगेटी)
तिब्बत (Tibet): अक्सर होती हैं ऐसी घटनाएं - तिब्बत में 1978 से लेकर 2005 तक कई बार ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड आए हैं. लोंगबसाबा और पीडा नाम की हिमालय पर 5700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित झीलें अक्सर ऐसे बाढ़ लेकर आती हैं. साल 2006 में एक अनुमान लगाया गया था कि अगर इन दोनों बर्फीली झीलों की वजह से बाढ़ आती है तो नेपाल के 23 कस्बे-गांव इसमें बर्बाद हो जाएंगे. इन इलाकों में 12,500 से ज्यादा लोग रहते हैं. अगस्त 2000 में ग्लेशियर टूटने की वजह से आई बाढ़ से 10 हजार घर, 98 पुल बर्बाद हो गए थे. किसानों को खाने की दिक्कत हो गई थी. इससे पहले 1978 में शक्सगम नदी की घाटी में भी ऐसी बाढ़ आई थी.
स्विस एल्प्स (Swiss Alps): ग्लेशियर वाली बाढ़ का इतिहास रहा है - साल 1818 में गिट्रो ग्लेशियर ने भारी तबाही मचाई थी. इसकी वजह से आई बाढ़ से दक्षिण-पश्चिम स्विट्जरलैंड में 44 लोग मारे गए थे. इससे पहले इसी ग्लेशियर ने 1595 में 140 लोगों की जान ली थी. जब ये गिट्रो ग्लेशियर की वजह से बनी झील की गहराई मापी गई तो यह 2 किलोमीटर गहरी निकली. इसके फटने का इंतजार ने करते हुए इंजीनियर इग्नाज वेतेंज ने इसमें छेद करना शुरू किया ताकि पानी निकाला जा सके. काम सफल हुआ. वेंतेज ने आसपास के गांववालों को कुछ दिन दूर रहने के लिए कहा. लेकिन 16 जून को बर्फ का बांध टूट गया और घाटी में स्थित गांवों में भारी तबाही आई. (फोटोःगेटी)