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हिंदू दोस्त के बेटे के अंतिम संस्कार में जुटे मुस्ल‍िम, श्मशान में भी न‍िभाई ज‍िम्मेदारी

Muslims engaged in funeral
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कोरोना महामारी के इस दौर में लोग अपने-अपने बारे में सोच रहें हैं, इंसानों की कई हरकतें मानवता को शर्मसार कर रही  है. लोग अपनों से दूर भाग रहे हैं. बेबसी का यह हाल है कि मरने के बाद आखिरी सफर में कंधा देने की भी प्रशासन ने इजाजत नहीं दी है. ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से मानवता का संदेश देने वाली खबर सामने आई है. (औरंगाबाद से इसरार च‍िश्ती की र‍िपोर्ट)

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औरंगाबाद शहर में रमज़ान के दिनों में रोजा रखने वाले मुसलमानों ने अपने हिंदू दोस्त के बेटे का अंतिम संस्कार पूरे हिंदू परंपरा के साथ किया है जिसकी तारीफ की जा रही है.

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कंधों पर अर्थी ले जाने वाले दाढ़ी, टोपी और रूमाल रखे ये चेहरे कोई फ़िल्मी सीन नहीं है बल्कि औरंगाबाद की एक सच्ची तस्वीर है. औरंगाबाद के सिटी चौक सर्राफा इलाके में रहने वाले दलाल हार्डी के बेटे सुबोध की अर्थी ले जाई जा रही है. कैलाश नगर की श्मशान भूमि में पंद्रह वर्षीय सुबोध को अग्नि दी गई. काबिले ज‍िक्र बात यह है कि पूरे अंतिम संस्कार में मुसलमानों ने आगे बढ़कर ह‍िस्सा किया.

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सुबोध जन्म से ही विकलांग था. उसके माता-पिता ने इसका बहुत इलाज किया लेकिन वह अपने बेटे को बचा नहीं सके. सुबोध की मौत की खबर जैसे ही मुस्लिम पड़ोसियों को पता चली तो सब ने मिलकर सुबोध के अंतिम संस्कार की व्यवस्था ही नहीं की बल्कि खुद भी सारी जिम्मेदारियां निभाईं. पूरे हिंदू रीति-रिवाज के साथ सुबोध को शमशान भूमि तक ले गए और वहां पर उसका अंतिम संस्कार किया.
 

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सुबोध के चाचा ने इस पूरे मामले में बताया कि हम लोग सब हिंदू-मुस्लिम एक साथ मिलजुल कर रहते हैं और एक-दूसरे के दुख दर्द में हर वक्त साथ रहते हैं.

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