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कोरोना: थाईलैंड की लंबी गर्दन वाली औरतें के कबीलों पर महामारी की मार

थाईलैंड की लंबी गर्दन वाली औरतें के कबीलों पर कोरोना की मार.
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म्यांमार से भागकर थाईलैंड बसने वाले कयान लाहवी कबीले के लोग पूरी दुनिया में अपने संस्कृति की वजह से जाने जाते है. खासकर इनके कबीले में रहने वालीं औरतों के पहनावे की पूरी दुनिया में चर्चा है. उनको दुनिया की सबसे लंबी गर्दन वाली औरतों के नाम से भी जाना जाता है. अलग अलग कबीले वासियों की तरह इस कबीले की वेशभूषा भी काफी हटकर है. थाईलैंड में इस कबीले के गांव पर्यटन का केंद्र हुआ करते थे, लेकिन अब वहां कोरोना वायरस महामारी का यहां गहरा असर हुआ है. 

थाईलैंड की लंबी गर्दन वाली औरतें के कबीलों पर कोरोना की मार.
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क्यों खास है ये कबीला


इस कबीले की औरतों को बचपन से ही एक तरह की परंपरा का पालन करना पड़ता है जिसमें वह बचपन से ही गले में पीतल के छल्ले पहनतीं हैं. फिर जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है वैसे ही उनके गले के छल्लों की गिनती बढ़ा दी जाती है. कबीले की मान्यता है कि महिला की गर्दन जितनी लंबी होगी उतनी ही वह ज्यादा सुंदर मानी जाएगी.

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पर्यटन में पहचान

उल्लेखनीय है कि कयान लाहवी कबीले के लोग मूल रूप से म्यांमार के रहने वाले हैं. 1980 से लेकर 1990 की दशकों में म्यांमार के सैन्य शासन के सताने पर ये लोग सीमा की दूसरी तरफ थाईलैंड के इलाकों में जाकर बस गए. अब इस कबीले की औरतें देश-विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. पर्यटकों को उनका ये स्वरूप काफी अलग और लुभावना लगता है. वहीं, दूसरी ओर पर्यटकों की वजह से इन लोगों की अच्छी कमाई भी हो जाती है.

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तो वहीं, पर्यटक क्रेंद्र बनने से थाईलैंड सरकार पर कई आरोप भी लगे है. उनको 'मानव चिड़ियाघर' चलाने का आरोप भी लगा है. इसके बावजूद पर्यटकों को इनकी संस्कृति काफी प्रभावित करती है. लेकिन कोरोना वायरस की महामारी के चलते पूरे पर्यटन पर ताला लग गया है.

थाईलैंड की लंबी गर्दन वाली औरतें के कबीलों पर कोरोना की मार
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स्थानीय मीडिया के मुताबिक, कोरोना वायरस के चलते उनका जीवन काफी प्रभावित हुआ है. कबीले की एक महिला ने बताया कि महामारी से पहले पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता था. ऐसे में अच्छी कमाई हो जाती थी. रोजाना थाई मुद्रा में  600 से 700 कमा लेती थी. 

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आगे महिला ने बताया कि जब से सरकार ने आपातकाल घोषित किया है तब से उनके पति को कभी-कभी मिलने वाली निर्माण और कृषि मजदूरी के काम से मिलने वाली कमाई से घर चलता है. उनका कहना है कि जिन गलियों में दुकान लगाकर समान बेचा करते थे. अब वो गलियां सूनी पड़ी हैं. 

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महिला का कहना है कि खाने-पीने के समानों की भी कमी रहती है. इसलिए किसी दिन कम खाने में भी काम चलाना पड़ता है. कभी कभी गैर सरकारी संगठनों से मदद मिल जाती है. वहीं, कई गांव वाले कोरोना महामारी के चले वापस म्यांमार चले गए हैं.लेकिन हम यही फंस गए क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से सीमायें सील हो गई हैं. अब हमारे पास कोई और रास्ता भी नहीं है.

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