ऐसी ही कहानी है 14 साल की है बिंदिया की. जो चित्रकूट के कर्वी में रहती है. पिता नहीं हैं. स्कूल जाने की उम्र में ये बेटी पहाड़ों की खदानों में पत्थर ढोती है. बिंदिया बताती है कि पहाड़ के पीछे बिस्तर लगा है नीचे की तरफ. सब हमें लेकर जाते हैं वहां. एक-एक करके सबकी बारी आती है. हमारे बाद कोई दूसरी लड़की. मना करने पर मारते हैं. गाली देते हैं. हम चिल्लाते हैं, रोते हैं, पर सब सहना पड़ता है. दुख तो बहुत होता है कि मर जाएं, गांव में ना रहें. लेकिन बिना रोटी के जिंदा कैसे रहें.