अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा बहुत जल्द ऐसे सैटेलाइट्स छो़ड़ने की तैयारी में है, जो पानी से उड़ेंगे. यानी इन सैटेलाइट्स में पानी ईंधन का काम करेंगे. ये सैटेलाइट्स धरती की लो-अर्थ ऑर्बिट यानी धरती से करीब 160 किलोमीटर की ऊंचाई. अगर ये मिशन सफल होता है तो ईंधन में लगने वाले पैसों की बचत की जा सकती है. नासा के मुताबिक भविष्य यही है. आइए जानते हैं कि क्या है नासा की तैयारी... (फोटोः NASA/CubeSat)
नासा (NASA) इस महीने के अंत तक पाथफाइंडर टेक्नोलॉजी डिमॉन्सट्रेटर (Pathfinder Technology Demonstrator - PTD) के तहत पहली बार पानी से उड़ने वाले क्यूबसैट (CubeSat) सैटेलाइट्स को लॉन्च करेगा. इन सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग स्पेसएक्स के फॉल्कन-9 रॉकेट से फ्लोरिडा स्थित केप केनवेरल स्पेस स्टेशन से की जाएगी. (फोटोः गेटी)
क्यूबसैट (CubeSat) को नासा ने V-R3x नाम भी दिया है. ये ऑटोनॉमस रेडियो नेटवर्किंग और नेविगेशन में मदद करेंगे. PTD के प्रोजेक्ट मैनेजर डेविड मेयर ने बताया कि हमें ऐसे छोटे सैटेलाइट्स के लिए बेहद नया और किफायती प्रोपल्शन सिस्टम चाहिए था. साथ ही इसकी वजह से अंतरिक्ष में प्रदूषण नहीं होगा. अगर मिशन सफल हुआ तो भविष्य में ये टेक्नोलॉजी बड़े सैटेलाइट्स के लिए भी उपयोग में लाई जा सकती है. (फोटोः गेटी)
डेविड ने बताया कि जब भी सैटेलाइट्स में ईंधन डालने की बात की जाती है तो पहले उसके खतरों की जांच की जाती है. जैसे- उसकी विषाक्तता, ज्वलनशीलता आदि. लेकिन भविष्य में पानी की वजह से उड़ने वाले सैटेलाइट्स से ऐसे खतरे नहीं रहेंगे. कम से कम सैटेलाइट्स के आपस में टकराने से विस्फोट तो नहीं होगा. (फोटोः गेटी)
क्यूबसैट (CubeSat) के प्रोपल्शन सिस्टम में ऐसी तकनीक लगाई गई है कि जिससे उसके अंदर मौजूद पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण टूटकर उसे आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा देंगे. वहीं, क्यूबसैट (CubeSat) के सोलर पैनल्स सूरज की किरणों से एनर्जी लेकर इस प्रोपल्शन सिस्टम को ऊर्जा देंगे ताकि पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के कण अलग हो सकें. (फोटोः गेटी)
डेविड मेयर ने बताया कि जब हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैस फॉर्म में आते हैं उनकी ऊर्जा बहुत ज्यादा हो जाती है. इसकी वजह से हमें सैटेलाइट्स का दिशा निर्धारण, सुरक्षा और मैन्यूवरिंग में आसानी हो जाएगी. ये ज्यादा सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली है, जिसकी वजह से भविष्य में कई सैटेलाइट्स उड़ सकेंगे. (फोटोः गेटी)
डेविड कहते हैं कि पानी में कोई विषाक्तता नहीं होती. यह ज्वलनशील नहीं होता और यह अन्य ईंधनों की तुलना में ज्यादा स्थिर होता है. इसलिए ऐसे ईंधन की मदद से सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग किफायती हो जाएगी. पानी हमें मुफ्त में मिलता है तो इसके उपयोग में किसी तरह के नुकसान की कोई आशंका नहीं है. (फोटोः गेटी)
फॉल्कन-9 रॉकेट में पहली बार 6 क्यूबसैट (CubeSat) सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएंगे. ये चार से छह महीने अंतरिक्ष में काम करेंगे. इस दौरान नासा इनकी परफॉर्मेंस जांचेगा. साथ ही इनके साथ आने वाली समस्याओं को सुधारने की तैयारी करेगा. कुछ सालों के बाद जब डीप स्पेस मिशन यानी चांद या मंगल पर यान या इंसानों को भेजने की बात आएगी तब इसी ईंधन का उपयोग किया जा सकता है. (फोटोः गेटी)