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फांसी के 2 घंटे के बाद भी नहीं हुई थी इस अपराधी की मौत, फिर ऐसे निकाली जान

फांसी के 2 घंटे के बाद भी नहीं हुई थी इस अपराधी की मौत, फिर ऐसे निकाली जान
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निर्भया मामले में अपराधियों को फांसी की सजा तय मानी जा रही है. लेकिन एक केस ऐसा भी है जिसमें फांसी के 2 घंटे बाद भी आरोपी मरा नहीं था. फिर उसे दूसरे तरीके से मारा गया था. आइए जानते हैं इस अपराधी के बारे में...
फांसी के 2 घंटे के बाद भी नहीं हुई थी इस अपराधी की मौत, फिर ऐसे निकाली जान
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खुद पीएम कर रहे थे इन अपराधियों की निगरानी

ये बात 1978 की है. दिल्ली में एक भाई-बहन का अपहरण होता है. इसके बाद बहन के साथ रेप किया जाता है. फिर दोनों भाई-बहन को मौत के घाट उतार दिया जाता है. ये अपहरण किया था रंगा-बिल्ला ने. ये उस समय के कुख्यात अपराधी थे. इस मामले की जानकारी मिलने पर खुद उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई परेशान हो गए थे.
फांसी के 2 घंटे के बाद भी नहीं हुई थी इस अपराधी की मौत, फिर ऐसे निकाली जान
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मामला है 1978 के एक अपहरण और हत्या का

रंगा और बिल्ला ने 1978 में नौसेना के अधिकारी मदन चोपड़ा के बच्चे गीता और संजय चोपड़ा का अपहरण किया था. बाद में इन दोनों भाई-बहन की हत्या कर दी थी. रंगा का असली नाम कुलजीत सिंह और बिल्ला का असली नाम जसबीर सिंह था.

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दिल्ली सहित पूरा देश हिल गया था

1978 का गीता और संजय चोपड़ा अपहरण और हत्याकांड ने दिल्ली सहित पूरे देश को हिला दिया था. इस घटना की चर्चा विदेशों तक में हुई थी.
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गीता 16 और संजय 14 साल का था

जिस समय रंगा और बिल्ला ने गीता और संजय को मारा था, उस समय उनकी उम्र बेहद कम थी. गीता साढ़े 16 साल की थी और संजय की उम्र 14 वर्ष थी.
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फिरौती के लिए किया था अपहरण

रंगा और बिल्ला ने नेवी अधिकारी मदन मोहन चोपड़ा के दोनों बच्चों को गीता और संजय चोपड़ा को 26 अगस्त 1978 को फिरौती के लिए अपहरण किया था, लेकिन जब रंगा और बिल्ला को पता चला कि बच्चों के पिता नेवी के अधिकारी हैं तो दोनों बच्चों की हत्या कर दी गई.
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1982 में दी गई थी रंगा बिल्ला को फांसी

ये बात है करीब 37 साल पहले की यानी 31 जनवरी 1982 की. जब रंगा यानी कुलजीत सिंह और बिल्ला यानी जसबीर सिंह को फांसी दी जा रही थी. इसमें से एक अपराधी तो फांसी के बाद मर गया लेकिन दूसरा दो घंटे बाद भी जिंदा था. उसकी नाड़ी चल रही थी. (फोटो में बाएं रंगा, दाएं बिल्ला)


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मेडिकल साइंस की माने तो ऐसा हो सकता है

मेडिकल साइंस की बात माने तो ऐसा तब हो सकता है जब आदमी के शरीर का वजन कम हो. या वो सांस रोकने में सक्षम हो. तिहाड़ जेल के पूर्व प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने अपनी किताब ब्लैक वारंट में इस किस्से का जिक्र किया है.
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ये था फांसी पर लटकाने का प्रोसेस

फांसी वाले दिन रंगा नहाया था. लेकिन बिल्ला नहीं. तत्कालीन जेल सुप्रीटेंडेंट आर्यभूषण शुक्ल ने रुमाल गिराकर फांसी के लीवर को खींचने का इशारा किया. 2 घंटे बाद डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि बिल्ला मर गया है. लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही है. (फोटो में बाएं रंगा, दाएं बिल्ला)

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फिर ऐसे मारा गया रंगा को...

जेल के डॉक्टरों ने जब रंगा की नाड़ी चलती देखी तो फिर जेल प्रशासन के किसी को फांसी के तख्ते के नीचे भेजकर रंगा के पैरों को दोबारा खींचने का आदेश दिया. रंगा के पैरों को खींचा गया. तब जाकर उसकी मौत हुई.  (फोटो में रंगा को गिरफ्तार कर ले जाते पुलिसकर्मी)
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