जब कुछ कर गुजरने की चाह हो तो रास्ते में आया व्यवधान कोई मायने नहीं रखता. और जो लोग सोचते हैं कि शारीरिक अक्षमता के कारण अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकते, उन लोगों के लिए राजस्थान के हनुमानगढ़ की अनुराधा ने आईना दिखाने का काम किया है. संगरिया तहसील के गांव नाथवाना की बेटी अनुराधा उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरी हैं, जो लोग शारीरिक रूप से कमजोर हैं और इस कारण खुद को कम आंकते हैं. (हनुमानगढ़ से कपिल शर्मा की रिपोर्ट)
अनुराधा के शरीर का कोई भी हिस्सा सही तरह से काम नहीं करता, सिर्फ उसके दिमाग को छोड़कर. दिव्यांग अनुराधा ने इन संघर्ष और मुसीबतों को चुनौती बनाकर पढ़ाई का ऐसा लक्ष्य साधा कि 12वीं में 85 प्रतिशत अंक हासिल कर गार्गी पुरस्कार पाया.
बोर्ड परीक्षाओं में अन्य छत्राओं के साथ अनुराधा को संगरिया में आयोजित समारोह में गार्गी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जब अनुराधा के पुरस्कार लेने की बारी आई तो सभी भौचक्के रह गए क्योंकि अनुराधा की मां उसे गोदी में उठा कर ला रही थी.
इसके बाद वहां मौजूद एसडीएम रमेश देव, पालिका अध्यक्ष सुखबीर सिंह, उपाध्यक्ष रीना महंत ने अनुराधा को माला और पगड़ी पहना कर उसकी पढ़ाई और हौसलों का सम्मान किया. मुख्य अतिथि सुखबीर सिंह ने 11000 रुपये कैश पुरस्कार दिया.
इसके बाद अनुराधा ने बताया कि कक्षा 8 तक तो दिव्यांग होने की वजह से घर पर ही रह कर पढ़ाई की. हाथ-पांव, कमर सहित कोई भी हिस्सा काम नहीं करता था और खुद से किताब भी नहीं उठाई जाती थी. ऐसे में माता-पिता सहयोग करते थे. 9वीं कक्षा की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से की और 10वीं 78.50 प्रतिशत अंक लाकर गार्गी पुरस्कार प्राप्त किया.
इसके बाद 12वीं में 85 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. स्कूल की अन्य छात्राओं ने कभी ये जाहिर नहीं होने दिया वो दिव्यांग है. 9वीं से लेकर 12वीं तक पिता ही स्कूल लेने और छोड़ने जाते. लेकिन 2 मई 2020 को पिता की अचानक मौत हो गई. अब मां ही उसका ख्याल रखती है. अनुराधा का सपना है कि वो आईएएस बनकर देश की सेवा करें. एक खास बात और अनुराधा का एक 13 साल का छोटा भाई भी है और वो भी दिव्यांग है.