साइबेरिया के ऊपर का स्ट्रैटोस्फेयर है उसका तापमान अचानक से बढ़कर 37 डिग्री सेल्सियस हो गया है. ऊपरी हवा में तापमान का बढ़ना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि उत्तरी ध्रुव पर पोलर वॉर्टेक्स यानी ध्रुवीय चक्रवात आने वाला है. यानी धरती के उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में सर्दी का सितम बढ़ने वाला है. क्योंकि, स्ट्रैटोस्फेयर का गर्म होना यानी आर्कटिक सर्किल में नीचे की तरफ ठंडी हवा का घेरा बनना शुरू हो चुका है. (फोटोःगेटी)
मौसम विज्ञानियों के अनुसार साइबेरिया के ऊपर स्ट्रैटोस्फेयर (Stratosphere) यानी समताप मंडल में तापमान आमतौर पर जनवरी के पहले हफ्ते में बढ़ता है. इस दौरान यह माइनस 33 डिग्री सेल्सियस से माइनस 13 डिग्री सेल्सियस तक जाता है. लेकिन इस बार इसमें अचानक से तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया है. ये सही इशारा नहीं है. इसका छोटा सा नजारा अमेरिका के लेक मिशिगन में देखने को मिल रहा है. लेक मिशिगन पूरी तरह से जम गई है. (फोटोःगेटी)
स्ट्रैटोस्फेयर की गर्म हवा बेहद सर्द पोलर वॉर्टेक्स (Polar Vortex) यानी ध्रुवीय चक्रवात को असंतुलित कर उत्तरी ध्रुव से बाहर भेज रही है. यानी हांड कंपाने वाली सर्द हवा अब उत्तरी गोलार्द्ध के कई देशों को कंपाएगी. इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका और यूरोप पर पड़ेगा. अमेरिका और यूरोप तक ये अगले हफ्ते तक पहुंचने की संभावना है. इसके बाद यह करीब फरवरी की शुरूआत तक रहेगा. (फोटोःगेटी)
नेशनल जियोग्राफिक में छपी रिपोर्ट के अनुसार पोलर वॉर्टेक्स (Polar Vortex) यानी ध्रुवीय चक्रवात नॉर्थ पोल के ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली तेज चक्रीय हवाओं को बोलते हैं. कम दबाव वाले मौसम की वजह से ध्रुवीय चक्रवात उत्तरी ध्रुव पर ही रुका रहता है. यानी आर्कटिक इलाके में इसका असर होता है. धरती के वायुमंडल में दो ध्रुवीय चक्रवात हैं. दोनों अलग-अलग ध्रुवों पर मौजूद हैं. (फोटोःगेटी)
नॉर्थ पोल यानी उत्तरी ध्रुव पर चलने वाले पोलर वॉर्टेक्स का व्यास 1,000 किलोमीटर होता है. यह अपना आकार कम-ज्यादा करता रहता है. साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर यही चक्रवात घड़ी की दिशा में घूमता है. सामान्य शब्दों में कहें तो जब आर्कटिक वायु में विस्फोट होने की वजह से जो ठंडी हवा धरती उत्तरी इलाकों में फैलती है, उसे पोलर वॉर्टेक्स कहते हैं. (फोटोःगेटी)
पोलर वॉर्टेक्स (Polar Vortex) यानी ध्रुवीय चक्रवात भारत पर सीधे असर नहीं डालता. लेकिन आर्कटिक हवाएं पश्चिमी विक्षोभ और नीचे की सभी मौसम प्रणालियों को प्रभावित करती हैं. इससे भारतीय जलवायु पर भी असर पड़ता है. इसलिए भारत के उत्तरी और मैदानी इलाकों में जनवरी महीने में सर्दी बढ़ जाती है. क्योंकि पोलर वॉ़र्टेक्स एशिया के ऊपर की सभी मौसम प्रणालियों को प्रभावित करता है. (फोटोःगेटी)
पोलर वॉर्टेक्स (Polar Vortex) यानी ध्रुवीय चक्रवात नॉर्थ पोल से आने वाले जेट स्ट्रीम का एख हिस्सा होता है. यही स्ट्रीम आर्कटिक की ठंडी हवा में विस्फोट की अनुमति देता है. यह विस्फोट सीधे तौर पर वैश्विक मौसम प्रणाली को प्रभावित करता है. भारत जैसे देश में पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बेन्स (Western Disturbance) की फ्रिक्वेंसी और सक्रियता बढ़ा जाती है. नतीजा भारी से मध्यम बर्फबारी होती है. (फोटोःगेटी)
पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी इलाक़ों में सर्दियों के मौसम में आने वाले ऐसे तूफान को कहते हैं जो वायुमंडल की ऊंची परतों में भूमध्य सागर और कुछ हद तक कैस्पियन सागर से नमी लाकर उसे अचानक बारिश और बर्फ के रूप में उत्तर भारत, पाकिस्तान व नेपाल पर गिरा देता है. (फोटोःगेटी)
इसलिए हम कह सकते हैं की पोलर वॉर्टेक्स सीधे तौर पर भारत उत्तरी और मैदानी इलाकों पर असर तो नहीं डालता. लेकिन ध्रुवीय जेट स्ट्रीम के टूटने से पश्चिमी विक्षोभ का स्थान-परिवर्तन दक्षिण-पश्चिम की तरफ हो जाता है. इसलिए उत्तरी भारत में बर्फबारी के साथ बारिश होने लगती है. (फोटोःगेटी)