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ऐसा मुस्लिम गांव जहां हर घर का बेटा कर रहा भारत माता की सेवा, सीमा पर तैनाती

सीमा पर तैनाती
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आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में एक गांव है जिसका नाम मल्लारेड्डी है. इस गांव को अगर आप वीरों की भूमि या फिर भारत माता की रक्षा में अपनी जान दे देने वाले बेटों का गांव कहें तो कुछ गलत नहीं होगा. प्रकाशम जिले के इस गांव में हर घर का लाल आज देश सेवा में किसी ना किसी बॉर्डर पर दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए खड़ा है.

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दूसरे विश्व युद्ध से लेकर आज चीन-पाकिस्तान के साथ मौजूदा तनाव तक इस गांव के लोग सीमा पर मातृभूमि की रक्षा के लिए डटे हुए हैं. मुस्लिम बहुल इस गांव में हर बच्चा आंखों में फौज में जाने का सपना लिए सोता है और हर सुबह उठकर उसके लिए नई कोशिशें शुरू कर देता है.
 

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प्रकाशम के इस गांव में ज्यादातर घरों से कम से कम एक व्यक्ति सेना में सेवारत है. सेना से रिटायर हो चुके ऐसे ही एक बुजुर्ग मस्तान ने बताया, 'मैं श्रीलंका में IPKF का हिस्सा था, करगिल युद्ध लड़ा, राजस्थान में देश की पश्चिमी सीमा पर सेवा करके रिटायर हुआ था. इसके बाद मैंने अपने दो बेटों को सेना में भेजा है. मेरे चाचा के दो बेटे भी सेना में सेवारत हैं. यह हमारे लिए एक गर्व की अनुभूति है.
 

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वहीं कासिम अली नाम के एक बुजुर्ग जो खुद सेना से रिटायर हो चुके हैं उन्होंने बताया मैं सेना में भर्ती हुआ था और इलाहाबाद में ट्रेनिंग ली थी. उसके बाद सिकंदराबाद में ड्यूटी ज्वाइन की. फिर शिलांग में मैं जम्मू 17 जाट रेजिमेंट का हिस्सा था. ब्रिगेड मुख्यालय में भी तैनात रहा.  24 साल तक देश की सेवा करने के बाद लेह लद्दाख में आखिरी ड्यूटी के बाद रिटायर हुआ.  बेहद गर्व के साथ कासिम अली ने कहा कि अब गांव में वह युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं.

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गांव में कई दिग्गज हैं जो भारत-पाक युद्धों, करगिल युद्ध, श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षा बल (IPKF) के संचालन और हाल ही में चीन के साथ सीमा पर होने वाली झड़प में शामिल रहे हैं. इस गांव में बुजुर्ग बच्चों को देश की सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं और इसे गांव की परंपरा बताते हैं.
 

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गांव के नौजवान सेना से सेवानिवृत्त हो चुके बड़े-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित होते हैं. रोप क्लाइम्बिंग, रनिंग, बाधा दौड़ यहां के युवाओं के लिए पसंदीदा खेल हैं जो उन्हें सेना की रैलियों में भर्ती के लिए तैयार रखते हैं.आंध्र प्रदेश के किसी भी अन्य गांव की तरह यहां के ग्रामीण खेती या अन्य हस्तशिल्प का काम नहीं करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के युवा एमसीए, एमबीए, इंजीनियरिंग जैसी उच्च शिक्षा की डिग्री हासिल करते हैं लेकिन भारतीय सेना को ही अपना करियर बनाते हैं.

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सेना में जाने की तैयारी कर रहे ऐसे ही एक शख्स अहमद बाशा ने कहा कि अब मेरे पिता सेना से रिटायर हो चुके हैं और मेरा भाई सेना में ड्यूटी कर रहा है. मैं भी सेना में जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं. इससे मुझे गर्व होता है कि मैं इस गांव का निवासी हूं. गांव में 86 परिवार रहते हैं और 130 सदस्य वर्तमान में राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं.

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