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सबसे महंगा कबूतर...इसकी कीमत में आप दिल्ली में एक दर्जन फ्लैट खरीद लेंगे

Racing pigeon record price 14 crore rupees
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मामूली से दिखने वाले इस कबूतर की कीमत का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. इस कबूतर की कीमत इतनी है जिसमें आप दिल्ली या मुंबई में 1-1 करोड़ के एक दर्जन फ्लैट खरीद सकते हैं. ये कोई आम कबूतर नहीं है जो कभी भी आपकी बालकनी में आकर बैठे और गुटर गूं करें. ये कबूतर अपनी प्रजाति का सबसे तेज उड़ने वाला कबूतर है. हाल ही में हुई एक नीलामी इसे 14 करोड़ रुपयों से ज्यादा कीमत में खरीदा गया है. 

Racing pigeon record price 14 crore rupees
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इस कबूतर का नाम है 'न्यू किम'. बेल्जियन प्रजाति का यह कबूतर 14.14 करोड़ रुपयों में बिका है. जिसे के रईस चीनी ने बेल्जियम के हाले स्थित पीपा पीजन सेंटर में हुई नीलामी के दौरान खरीदा. इसे खरीदने के लिए दो चीनी नागरिकों ने बोलियां लगाईं. दोनों ने अपनी पहचान का खुलासा नहीं किया. ये दोनों चीनी नागरिक सुपर डुपर और हिटमैन के नाम से बोलियां लगा रहे थे. हिटमैन ने न्यू किम के लिए पहले बोली लगाई बाद में सुपर डुपर ने. सुपर डुपर ने 1.9 मिलियन यूएस डॉलर यानी 14.14 करोड़ रुपयों की बोली लगाकर ये कबूतर अपने नाम कर लिया. 

Racing pigeon record price 14 crore rupees
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कुछ लोगों का मानना है कि ये दोनों चीनी नागरिक एक ही आदमी था. इस नीलामी में वो परिवार भी मौजूद था जो इन कबूतरों को रेसिंग और तेज उड़ने की ट्रेनिंग देता है. उन्हें पाल पोस कर इस लायक करता है. 76 वर्षीय गैस्टन वान डे वुवर और उनके बेटे रेसिंग कबूतरों को पालते-पोसते हैं. इस नीलामी में 445 कबूतर आए थे. इस नीलामी में बिके कबूतरों और अन्य पक्षियों से कुल 52.15 करोड़ रुपयों की कमाई हुई है. 

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Racing pigeon record price 14 crore rupees
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न्यू किम जैसे रेसिंग कबूतर 15 सालों तक जी सकते हैं. ये रेस में भाग लेते हैं. इन कबूतरों पर ऑनलाइन सट्टे लगते हैं. आजकल इन कबूतरों के जरिए चीन और यूरोपीय देशों के रईस अपने पैसे कई गुना बढ़ाते हैं और गंवाते भी हैं. यूरोप और चीन में अलग-अलग स्तर के रेस का आयोजन किया जाता है. इन रेस को जीतने वाले कबूतरों से मिलने वाली लाभ की राशि को उन लोगों में बांटा जाता है जो उस पर पैसा लगाते हैं. ये एकदम घोड़ों के रेस जैसा होता है. 

Racing pigeon record price 14 crore rupees
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बेल्जियम के पास 2.50 लाख रेसिंग कबूतरों की फौज थी. जो सूचनाओं के आदान-प्रदान में काम आती थी. इसके अलावा इन कबूतरों को लेकर एक फेडरेशन बनाया गया था, जिनमें हजारों की संख्या में लोग शामिल थे. करीब 50 साल पहले तक फ्रांस और स्पेन में मौसम की जानकारी देने के लिए भी कबूतर प्रशिक्षित किए जाते थे. ये दूर-दूर तक उड़ानभर कर मौसम की जानकारी लाते थे. मौसम की जानकारी उनके पैरों में लगे उपकरणों में दर्ज होते थे. 

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