उत्तर प्रदेश के बदायूं में रक्षाबंधन से एक दिन पहले भाई और बहन के अटूट स्नेह की एक अनोखी मिसाल देखने को मिली. जहां पर लिवर के काम नहीं करने के की वजह से गंभीर रूप से बीमार 14 साल के एक लड़के को उसकी दो बड़ी बहनों ने अपना आधा-आधा लिवर देकर अपने भाई की जान बचाई. यह सफल ऑपरेशन गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में किया गया.
डॉक्टरों ने शनिवार को इस चुनौतीपूर्ण ट्रांसप्लांट सर्जरी के बारे में जानकारी दी. यह दुर्लभ सर्जरी 12 अगस्त को मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों ने की है. अक्षत की इसी साल 14 मई को अचानक तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी. प्रारंभिक जांच में लगा कि अक्षत को पीलिया है, लेकिन कुछ दिनों बाद जब उसकी तबियत में सुधार नहीं हुआ तो उसे बरेली के एक प्राइवेट अस्पताल में दिखाया गया. जहां पर डॉक्टरों ने उसे हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया.
8 जून को अक्षत के पिता राजेश गुप्ता अपने बेटे को दिल्ली में लिवर विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाने आए. जब वो मेदांता अस्पताल आए तो उन्हें बताया गया कि उनके बेटे का लिवर फेल हो चुका है और जल्द ही नया लिवर ट्रांसप्लांट करना होगा. कैडेबल डोनर के लिए समय नहीं है. इसलिए लाइन डोनर द्वारा ही अक्षत की जान बचाई जा सकती थी. लाइन डोनर में परिवार के सदस्य ही डोनेट कर सकते हैं.
(प्रतीकात्मक फोटो)
मेदांता अस्पताल में पीडियाट्रिक लिवर डिजीज एंड ट्रांसप्लांटेशन की निदेशक डॉक्टर नीलम मोहन ने बताया कि अक्षत जब उनके पास आया. तो उसकी रिपोर्ट देख देखने के बाद पता चला कि बेहद खराब स्थिति में है. फिर उन्होंने अक्षत के पिता को सारी बात बताई कि 2 से 3 दिन में अगर लिवर ट्रांसप्लांट नहीं किया तो उसकी जान को खतरा काफी बढ़ जाएगा.
(प्रतीकात्मक फोटो)
अक्षत का वजन 93 kg था, उसके पेट में पानी भर गया था और सूजन आ गई थी. जिसकी वजह से उसकी तकलीफ बढ़ गई थी. शायद यह पहली बार हुआ होगा कि भारत ही नहीं दुनिया में 14 साल के बच्चे को दो अलग- अलग डोनर के लिवर को जोड़कर एक लिवर बनाकर ट्रांसप्लांट किया गया है.
12 अगस्त को मेदांता अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के चेयरमैन डॉ. अरविंद सिंह, डॉ. नीलम मोहन ने अपनी टीम के साथ यह सर्जरी की, जो करीब 15 घंटे तक चली. इसमें अक्षत की दो बड़ी बहनों प्रेरणा (22) व नेहा (29) ने अपने भाई की जान बचाने के लिए अपने लिवर का आधा-आधा हिस्सा दिया. डॉ. अरविंद सिंह ने अपनी टीम के साथ करीब सप्ताह भर तक तीनों के स्वास्थ्य पर बारीकी से नजर रखी. स्थिति यह है कि अब दोनों बहनों व भाई समेत तीनों पूरी तरह स्वस्थ हैं.
यह ऑपरेशन बेहद मुश्किल था. सफल ट्रांसप्लांट के लिए बहुत जरूरी है कि लीवर का वजह रोगी के शरीर के वजन का कम से कम 0.8% 1% हो. डॉक्टर ए एस सोइन ने बताया कि इस मामले में अगर हम सिर्फ एक बहन से लिवर लेते तो उसका वजन सिर्फ 0.5 से 0.55% होता है. इसलिए हमें दोनों बहनों से लिवर लेने की जरूरत पड़ी. हमें इस बात की खुशी है कि इस जटिल ऑपरेशन को करने में हमें कामयाबी मिली.