अमेरिकी वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष में किसी बुद्धिमान एलियन सभ्यता के होने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं. अब आप पूछेंगे कि आखिर इसका सबूत क्या है. आपको बता दें कि अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में मौजूद किसी बुद्धिमान एलियन सभ्यता (Intelligent Alien Civilization) द्वारा भेजे गए करोड़ों सिग्नलों को खोजा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारी टेक्नोलॉजी के अनुसार ये सिग्नल अंतरिक्ष से आ रहे हैं. हालांकि हमारी वर्तमान टेक्नोलॉजी उन सिग्नलों को कितना समझ पाती है, उसे डिकोड कर पाती है इसमें समय लगेगा.
अमेरिकी वैज्ञानिकों को जो एलियन सभ्यता द्वारा सिग्नल मिले हैं, उन्होंने उसे टेक्नोसिग्नेचर (Technosignature) का नाम दिया है. ये एक विशेष प्रकार की रेडियो वेवलेंथ हैं जो सर्च फॉर एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस (SETI) के जरिए खोजी जा रही हैं. लॉस एंजिल्स स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के अंतरिक्ष विज्ञानी जीन लुक मार्गोट ने कहा कि हम कई प्रकाश वर्ष दूर मौजूद सभ्यताओं से आ रही रेडियो वेवलेंथ से टेक्नोसिग्नेचर खोजने में सफल हुए हैं.
जीन लुक मार्गोट ने बताया कि आर्सीबो प्लेनेटरी राडार 400 प्रकाश वर्ष से भी ज्यादा दूर से आ रही रेडियो वेवलेंथ यानी एलियन सिग्नल्स को पकड़ सकता है. लेकिन जो सिग्नल आ रहे हैं वो इससे 1000 गुना ज्यादा ताकतवर सिग्नल हैं. इन्हें सही से कैच करने और उन्हें डीकोड करने के लिए हमें और ताकतवर टेक्नोलॉजी की जरूरत है. हमें ये तो पता चल गया कि हमारे पास एलियन सभ्यता के सिग्नल आ रहे हैं, लेकिन हम उन्हें अभी डीकोड नहीं कर पा रहे हैं.
जीन लुक मार्गोट और उनकी टीम ने वेस्ट वर्जीनिया में स्थित ताकतवर ग्रीन बैंक रेडियो टेलीस्कोप (फोटो में) के जरिए करोड़ों सिग्नल कैच किए हैं. ये सिग्नल अंतरिक्ष की गहराइयों से सीधे धरती की ओर आ रहे हैं. अब सवाल ये है कि क्या हम इंसानों की तरह एलियंस भी हमें देख सकते हैं. जैसे इंसानों ने कई ग्रह खोजे, क्या एलियन सभ्यताएं हमारी धरती और हमें देख रही हैं.
जीन लुक मार्गोट और उनकी टीम ने अप्रैल 2018 और अप्रैल 2019 में दो बार चार-चार घंटे के लिए ग्रीन बैंक रेडियो टेलिस्कोप से एलियन सिग्नल पकड़ने की कोशिश की. इस स्टडी के दौरान उन्हें हमारी गैलेक्सी में 31 सूरज जैसे तारे मिले. इतना ही नहीं जीन की टीम को 2.66 करोड़ से ज्यादा टेक्नोसिग्नेचर पकड़ में आए. जब गौर से अध्ययन किया गया तो पता चला कि ये टेक्नोसिग्नेचर धरती पर सीधे अंतरिक्ष से आ रहे हैं.
इन टेक्नोसिग्नेचर्स में वैज्ञानिकों को भुनभुनाहट, घंटियों के बजने जैसी आवाजें सुनाई दीं. इन आवाजों को एंथ्रोपोजेनिक रेडियो नॉयस (anthropogenic radio noise) कहते हैं. इसे साधारण भाषा में रेडियो फ्रिक्वेंसी इंटरफेस (RFI) भी कहा जाता है. इसी इंटरफेस की मदद से हमारी नैविगेशन टेक्नोलॉजी, सैटेलाइट, मोबाइल फोन, एयरक्राफ्ट, जहाज आदि की संचार प्रणाली स्थापित होती है. इस समय ये इंटरफेस इतना ज्यादा है कि इसमें से किसी एक चुनना बहुत कठिन है. ये एक प्रदूषण की तरह हो गया है.
मार्गोट ने बताया कि हमारा टेलीस्कोप हर घंटे करोड़ों-अरबों सिग्नल पकड़ता है. लेकिन RFI की वजह से दिक्कत आती है. इन अरबों सिग्नलों में से कौन से सिग्नल अंतरिक्ष से आए हैं उन्हें समझना मुश्किल होता है. लेकिन शुक्र इस बात का है कि हमारी तकनीक ऑटोमैटिकली 99.8 फीसदी सिग्नलों को क्लासिफाई कर देती है. यानी उन्हें जरूरत के हिसाब से अलग-अलग कर देती है.
जब मार्गोट और उनकी टीम ने 2.66 करोड़ सिग्नलों की गहराई से जांच की तो पता चला कि इसमें से 2.65 करोड़ सिग्नल अंतरिक्ष की गहराइयों से आ रहे हैं. यानी ये एंथ्रोपोजिनक रेडियो नॉयस हैं. इसके बाद वैज्ञानिकों ने इस 2.65 करोड़ सिग्नलों में से बारीकी से अध्ययन कर 43,020 सिग्नलों को पकड़ा जिनके बारे में साइंटिस्ट्स को पता नहीं है. बल्कि बाकी सारे सिग्नलों को उन्होंने सुन रखा है. या फिर उनका दस्तावेज पहले से मौजूद हैं.
नए अनजान 43,020 सिग्नल को वापस से वेरिफाई किया गया तो पता चला कि इसमें से 4539 टेक्नोसिग्नेचर सिग्नल बेहद खास हैं. अब मार्गोट और उनकी टीम इन टेक्नोसिग्नेचर का बारीकी से अध्ययन कर रही है. ये पता करने की कोशिश कर रही है कि ये एंथ्रोपोजिनक सिग्नेचर अंतरिक्ष के किस कोने से आ रहे हैं. क्या इसे कोई एलियन सभ्यता भेज रही है.