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समंदर में डूब रहे हैं दुनिया के ये दो बड़े शहर, सामने आई डराने वाली रिपोर्ट

डूब रहे हैं दुनिया के ये दो शहर
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जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी दुनिया में समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है. यही वजह है कि अब समुद्र के बढ़ते जलस्तर की वजह से कई शहरों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है. कुछ ऐसे शहर हैं जो अब डूबने की कगार पर पहुंच गए हैं. समुद्र तटीय शहरों में बसे लोगों को इस खतरे का सबसे ज्यादा सामाना करना पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन पर प्रकाशित किए गए अध्ययन में इसका दावा किया गया है. (सभी तस्वीरें - Getty)

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अध्ययन में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी पर मौजूद बर्फ तेजी से पिघल रही है जिससे पूरी दुनिया में समुद्र का स्तर बढ़ता जा रहा है. यही वजह है कि समुद्र के पानी का विस्तार हो रहा है. परिणाम स्वरूप न्यू ऑरलियन्स और जकार्ता जैसे शहरों में समुद्र के स्तर में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है. पानी के बढ़ने के साथ ही इन तटीय शहरों की जमीन डूब रही है.
 

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शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि समुद्र के बढ़ते स्तर की वजह से डूबती हुई भूमि ने दुनिया भर के तटीय निवासियों को असुरक्षित बना दिया है. इन तटीय शहरों में वैश्विक स्तर के मुकाबले समुद्र तट के जल स्तर में वृद्धि तीन से चार गुणा ज्यादा है.

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यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के टिंडाल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के अध्ययन के नेतृत्वकर्ता और स्टटी के लेखक रॉबर्ट निकोल्स  ने कहा कि हम कोई पूर्वानुमान नहीं बता रहे हैं बल्कि हम जो हो रहा है उसके बारे में बात कर रहे हैं. यह बेहद महत्वपूर्ण और चिंताजनक विषय है.

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शोध में सिल्वर लाइनिंग का जिक्र करते हुए बताया गया कि जिस तरह मानव गतिविधि की वजह से धरती के एक बड़े हिस्से से भूजल गायब होता जा रहा. तटीय इलाकों में मानवीय गतिविधि की वजह से समुद्र से सटे इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है.

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रिसर्च में कहा गया है कि तटीय भूमि के लगातार कम होने के कुछ कारक मानव नियंत्रण से परे हैं. पृथ्वी के कुछ हिस्सों में अभी भी ग्लेशियरों के लुप्त होने से होने वाली समस्या को प्रकृति अपने तरीके से समायोजित कर रही है.  लेकिन उन प्राकृतिक प्रक्रियाओं के अलावा, भूजल निकासी, तेल और गैस निकासी, रेत खनन, और नदियों के आसपास बाढ़ अवरोधों के निर्माण (बांध) सहित मानव गतिविधियां जमीन डूबने का कारण बन सकती हैं. 

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उन स्थानों पर जहां लोग केंद्रित हैं, ये गतिविधियां, विशेष रूप से भूजल को खत्म करने, भूमि को और अधिक तेजी से कम करने का कारण बनती है, जो अकेले भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के माध्यम से होती है. 20 वीं शताब्दी में, जकार्ता, न्यू ऑरलियन्स, शंघाई और बैंकाक के तटीय जमीन छह से 10 फीट तक पानी में डूब गए.
 

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सैटेलाइट के जरिए इन इलाकों की पैमाइश के अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि समुद्री स्तर में वृद्धि प्रति वर्ष लगभग 3.3 मिलीमीटर (एक इंच के लगभग आठवें हिस्से) हो रही है. शोधकर्ता निकोलस और उनके सहयोगियों ने पाया कि औसतन, पृथ्वी की तटरेखाओं ने वास्तव में 1993 से 2015 के बीच लगभग 2.6 मिलीमीटर प्रति वर्ष (0.1 इंच) की तुलना में थोड़े कम सापेक्ष लिफ्ट का अनुभव किया है, क्योंकि ग्लेशियल रिबाउंड के कारण भूमि अभी भी बढ़ रही है. लेकिन ऐसा वहां नहीं हो रहा जहां अधिकांश लोग रहते हैं. इसी अवधि में, पृथ्वी के तटीय निवासियों ने समुद्र जल स्तर में औसतन 7.8 से 9 मिलीमीटर सालाना (लगभग आधा इंच) की वृद्धि देखी है.
 

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शोध के मुताबिक यह इस तथ्य को दर्शाता है कि तटीय निवासी तेजी से डूबने वाले क्षेत्रों पर आश्रित हैं  जिसमें डूबते हुए डेल्टा और डूबते हुए शहर शामिल हैं. समस्या विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में है, जहां 2015 में, 185 मिलियन लोग तटीय बाढ़ के मैदानों में रहते थे. तटीय इलाकों में रहने वाली लोगों की वैश्विक संख्या के 75 फीसदी लोग इन इलाकों में रहते हैं. ऐसे लोग नदी की बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि दोनों के खतरों का सामना कर रहे हैं.

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