स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने एक स्मार्ट शौचालय बनाया है जो यह पहचान सकता है कि किसी भी व्यक्ति के शरीर के पिछले हिस्से (हिप्स) में कौन सी समस्या है. यह तकनीक मूत्र की प्रवाह से जुड़ी समस्या को दूर करने में भी कारगर साबित होगी. (सभी तस्वीरें सांकेतिक हैं/Getty)
ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि टॉयलेट का इस्तेमाल किसने किया है. इस तकनीक में टॉयलेट सीट पर बैठे शख्स के पिछले हिस्से को स्कैन कर बताया जा सकेगा कि शौचालय का उपयोग किसने किया है.
स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका नया स्कैनर विभिन्न लोगों के पिछले हिस्से के स्कैन को पहचान सकता है. इस तकनीक में शौचालय के कटोरे के अंदर एक कैमरा लगाया जाता है टॉयलेट के उपयोगकर्ता के मल को स्कैन करता है और फिर अपने डेटा बेस में उससे जुड़ी बीमारियों की जानकारी देता है.
फ्यूचरिज्म की रिपोर्ट के अनुसार, यह "यूरोफ्लोमीटर के रूप में कंप्यूटर विज़न का उपयोग करके, मूत्र की प्रवाह दर और मात्रा की गणना भी कर सकता है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्मार्ट शौचालय की लोकप्रियता बढ़ रही है और कुछ मामलों में यह जीवन रक्षक भी साबित हुआ है.
तकनीक व्यक्ति के मल को स्कैन करती है और पीड़ित को किसी पुरानी बीमारी को लेकर चेतावनी देती है और समय से पहले ही आंत में होने वाले कैंसर की पहचान भी कर सकती है. यह स्मार्ट टॉयलेट चिड़चिड़ापन सिंड्रोम (IBS) और सूजन आंत रोग (IBD) जैसी स्थितियों में मदद कर सकता है.
स्मार्ट टॉयलेट बाजार की प्रमुख कंपनी टोई लैब्स यहां तक कि रिकॉर्ड करती है कि टॉयलेट उपयोगकर्ता सीट पर कैसे बैठते हैं. यह मल की मात्रा, स्पष्टता, स्थिरता और रंग की भी जांच करता है.