कोरोना ने देश में ऐसा कोहराम मचा रखा है कि अब इससे मरने वालों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां तक कम पड़ने लगी है. गुजरात के सूरत में जब मृतकों के दाह संस्कार में लकड़िया कम पड़ने लगी तो वहां गन्ने की खोई का इस्तेमाल किया जा रहा है. चीनी मिलों से गन्ने की पेराई के बाद जो बगास (वेस्ट) बच जाता है अब उसका इस्तेमाल इस काम में किया जा रहा है.
गुजरात कोरोना से बुरी तरह प्रभावित राज्यों में शामिल है यही वजह है कि वहां कोरोना संक्रमण से रोजाना कई मरीजों की मौत हो रही है. सूरत शहर के तीन श्मशान कुरुक्षेत्र, रामनाथ घेला और अश्वनीकुमार में मृतकों की संख्या इतनी बढ़ गई कि अंतिम संस्कार के लिए दो नए श्मशान गृह शुरू करने पड़े.
नया श्मशान लिंबायत क्षेत्र में और दूसरा पाल इलाके में बनाया गया है. इतनी तेजी से वहां मृतकों के शव पहुंच रहे हैं कि 24 घंटे अंतिम संस्कार की प्रक्रिया जारी रहती है. अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां तक कम पड़ने लगी है. ऐसे में चीनी मिल से बगास यानी खोई भेजी जा रही है जिसका इस्तेमाल अंतिम क्रिया में किया जा रहा है.
सायण चीनी मिल के डायरेक्टर दर्शन नायक ने बताया कि शहर और जिले के सभी श्मशानों में जरूरत के हिसाब से मुफ्त में बगास भेजे जा रहे हैं. सूरत शहर के जिन श्मशान में बगास का इस्तेमाल शवों के अंतिम संस्कार के लिए किया जाता है उनमें से एक कैलाश मोक्ष धाम श्मशान घाट भी है.
हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि एडवांस में शवों के अंतिम संस्कार के लिए चिताएं तैयार की गई हैं. इन चिताओं पर लकड़ियां भी रखी गयी हैं और उसके साथ ही लकड़ियों के बीच बगास भी रखा गया है. कैलाश मोक्ष धाम श्मशान से जुड़े नितिन भाई भजियावाला ने बताया कि बगास अत्यंत ज्वलनशील होता है और इसमें आग जल्दी लग जाति है जिससे कम लकड़ी में ही अंतिम संस्कार हो जाता है.