रतलाम जिले के आदिवासी अंचल के एक शिक्षक ने अपने बेटे के साथ मिलकर लॉकडाउन के कारण बंद स्कूल की अवधि का फायदा उठाकर कमाई कर डाली. इस शिक्षक ने अपनी डेढ़ हेक्टेयर की भूमि पर जैविक खेती से सब्जियां उगाईं और पूरे चालीस हजार की कमाई की, जिसमें सिर्फ एक हजार की लागत आई थी.
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यह शिक्षक रतलाम जिले के गांव नरसिंह नाका में प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने वाले गोविंद सिंह कसावत हैं. उनके बेटे मनोज ने भी पिता का बखूबी साथ दिया. नरसिंह नाका, आदिवासी अंचल का छोटा सा गांव है.
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आज इस किसान से जैविक खेती के गुर आसपास के किसान सीखने के लिए आने लगे हैं. वहीं, सब्जी खरीदने के लिए लोग उसके खेत ही पहुंचने लगे हैं.
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जैविक खेती के बारे में इस शिक्षक ने सुना था लेकिन कभी की नहीं थी. उसके मन में लॉकडाउन के कारण मिले समय का उपयोग करने के लिए जैविक खेती को अपनाने का विचार आया.
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उसने अपने बेटे के साथ मिलकर यू ट्यूब और गूगल पर जैविक खेती के बारे में जानकारी जुटाई और फिर उस जानकारी के आधार पर अपने खेत में लौकी, करेला सहित अन्य सब्जियां लगाईं.
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इस फसल में उसने जैविक खेती के तहत जैविक खाद का उपयोग किया. सब्जियों की खेती खूब लहलहा उठी. अपने खेत की सब्जियों को बेचने के लिए शिक्षक खुद आदिवासी अंचल से ऱतलाम आता था और सब्जियां मंडी में बेचकर जाता था. कुछ समय बाद तो सब्जी व्यापारी उसके खेत से ही सब्जियां ले जाने लगे.
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अप्रैल से शुरू हुआ यह काम उन्हें आज चालीस हजार रुपये की कमाई दे गया. उनके खेत में आज भी ककड़ी, लौकी, तुरई, गिलकी की सब्जियों की फसल लहलहा रही है. दोनों पिता-पुत्र अब दिनभर जैविक खेती में ही लगे रहते हैं.
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शिक्षक गोविंद ने बताया कि यूट्यूब पर मुझे राष्ट्रीय जैविक खेती अनुसंधान केंद्र, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के महानिदेशक डॉक्टर किशन चंद्रा का वीडियो देखने को मिला. उसमें उन्होंने मात्र 20 रुपये की एक छोटी सी डिब्बी और प्रति 100 लीटर पानी में 1 किलो गुड़ से रासायनिक खाद व दवाई उत्पादन करने का तरीका बताया था. उसी तरीके को आजमाकर आज बढ़िया फसल हुई है. मैं अपने बेटे का सहयोग लेकर आज बहुत अच्छी जैविक खेती की ओर बढ़ रहा हूं. मेरा उद्देश्य है कि ज्यादा से ज्यादा किसान भाई इस खेती को पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल बाजना-रावटी क्षेत्र में करें और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएं.
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किसान के बेटे मनोज ने बताया कि मैंने डीएड किया है और नौकरी पाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन उम्मीद नहीं है. पिता ने जैविक खेती की ओर रुझान किया और सिखाया. अब यही करने का मन बना लिया है. नए-नए तरीके से खेती करने का प्रयास कर रहा हूं.