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1962 में एक हफ्ता पैदल चलकर गलवान घाटी पहुंचते थे सैनिक

1962 में एक हफ्ता पैदल चलकर गलवान घाटी पहुंचते थे सैनिक
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लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अब भी तनाव बना हुआ है. लोग ऐसे में आशंका जता रहे हैं कि क्या एक बार फिर 1962 की तरह भारत और चीन में युद्ध हो सकता है. ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कि 1962 में कैसे हमारे वीर जवानों ने चीन का मुकाबला किया था.
1962 में एक हफ्ता पैदल चलकर गलवान घाटी पहुंचते थे सैनिक
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आजतक ने 1962 के युद्ध में हिस्सा ले चुके कुछ पूर्व सैनिकों से बात की है. श्रीन टैंसी ऐसे ही शख्स हैं जिन्होंने भारत की तरफ से युद्ध में हिस्सा लिया था. वो उस वक्त बतौर हवलदार भारतीय सेना का हिस्सा थे. उन्होंने बताया कि '1962 में हथियार नहीं थे मगर हौसला काफी था'
1962 में एक हफ्ता पैदल चलकर गलवान घाटी पहुंचते थे सैनिक
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टैंसी ने बताया कि गलवान से मैं छुट्टी के लिए जा रहा था तो वहां जाट रेजिमेंट के लोग आए और उनकी मदद के लिए मुझे भेजा गया. जिस पोस्ट पर मुझे जाना था, उसपर चीन का कब्जा था. तो हम वहां तक गये एक कैप्टन के कहने पर. जब चीन ने घेर लिया तो हमें पीछे जाना पड़ा.

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उन्होंने कहा, तब बाल वाली टोपी मिलती थी. उस समय जो बाहर से आते थे, उनके लिए ये कपड़े कम थे लेकिन फिर भी जाट रेजिमेंट के जवान रुके रहे और हिम्मत दिखायी. वहां रहते रहते उंगली सड़ चुकी थी और हाथ खराब हो गया तो पीछे हटना पड़ा था. उस समय हमारे पास जवान भी कम थे जहां दस होने चाहिए वहां सिर्फ तीन थे.
1962 में एक हफ्ता पैदल चलकर गलवान घाटी पहुंचते थे सैनिक
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श्रीन टैंसी ने कहा 'अब हम चीन को पक्का हरा सकते हैं' उन्होंने कहा, अभी हमारे पास शक्ति है, हथियार हैं तो हम जीत सकते हैं. उस वक्त हमारे पास 303 राइफल थी लेकिन चीन के पास ऑटोमैटिक हथियार थे, वो अंधाधुंध गोली चलाते थे.
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रेमन मैग्सेसे विजेता सोनम वांगचुक ने बताया था कि 'तब 303 राइफल से जवानों ने किया था ऑटोमैटिक गन का मुकाबला. उन्होंने बताया कि उस समय मोर्टार था, गोलियां सीमित थी. चीन के पास ऑटोमैटिक गन थे. उनके पास गाड़ी थी हमारे पास नहीं थी लेकिन अब हमारे पास रोड, गाड़ियां दोनों हैं, हथियार भी हैं, छक्का छुड़ा सकते है. वांगचुक ने कहा अब हमारी सेना बड़े आराम से चीन को हरा सकती है.
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वहीं रिटायर्ड सिपाही दोर्जी नांगियाल ने अपना युद्ध अनुभव साझा करते हुए कहा, 'अब चीन को पक्का हरा देंगे'
उस वक्त दो लोगों पर एक घोड़ा मिलता था. पहले एक जवान घंटे भर तक घोड़े पर पेट्रोलिंग करता था, फिर दूसरा. हम ऊनी कपड़े साथ लेकर चलते थे और एक हफ्ते चलने के बाद गलवान घाटी तक पहुंचते थे. हमने सुना था कि गलवान इलाका तो हमारा है. अभी तो हम चीन को ऐसा जवाब दे सकते है कि वो उंगली नहीं उठा पाएगा.
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