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गुजरात के CM ने जिस फल का नाम 'कमलम' रखा, जानिए वो Dragon Fruit क्या है?

Dragon Fruit Vijay Rupani Kamalam
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पूरी दुनिया में ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) नाम से प्रचलित फल को अब गुजरात में कमलम फ्रूट (Kamalam Fruit) के नाम से जाना जाएगा. गुजरात सरकार ने फैसला लिया है कि इस फ्रूट में ड्रैगन शब्द का इस्तेमाल ठीक नहीं है. मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा ड्रैगन फ्रूट कमल जैसा दिखता है इस लिए इस फ्रूट का नाम संस्कृत शब्द कमलम से दिया जाता है. आखिर ये ड्रैगन फ्रूट है क्या? ये कहां पैदा होता है? ये इतना महंगा क्यों है? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ...(फोटोःगेटी)

Dragon Fruit Vijay Rupani Kamalam
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ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) को पिटाया (Pitaya), पिटाहाया (Pitahaya) भी कहते हैं. यह कैक्टस प्रजाति का अमेरिकी फल है. फिलहाल इसकी खेती दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, अमेरिका, कैरीबियन देश, ऑस्ट्रेलिया, चीन, वियतनाम जैसे देशों में की जाती है. इस फल का नाम ड्रैगन फ्रूट साल 1963 में दिया गया था. क्योंकि इसकी बाहरी परतों पर ड्रैगन की खाल की तरह कांटे निकले रहते हैं. (फोटोःगेटी)

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पिटाया (Pitaya) और पिटाहाया (Pitahaya) शब्द मेकिस्को से आया था. जबकि मध्य, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में इसे पिटाया रोजा (Pitaya Roja) कहते हैं. इस फल को अमेरिका में ही कुछ जगहों पर स्ट्रॉबेरी पीयर (Strawberry Pear) यानी स्ट्रॉबेरी नाशपाती भी कहा जाता है. (फोटोःगेटी)

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ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की ओरिजिन मेकिस्को, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, कोस्टारिका, अल-सल्वाडोर और दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी इलाके में हुआ था. हालांकि फिलहाल इसकी खेती भारत, साउथईस्ट एशिया, ऑस्ट्रेलिया, चीन समेत कई देशों में होती है. ये फल ज्यादातर ट्रॉपिकल और सब-ट्रॉपिकल देशों में उपजाया जाता है. इस फल की कुछ वैराइटी भी हैं. (फोटोःगेटी)
 

Dragon Fruit Vijay Rupani Kamalam
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अमेरिका के सूखे इलाकों में स्टेनोसेरेस यानी कड़वा ड्रैगन फ्रूट खाया जाता है. अमेरिका के स्वदेशी लोगों का यह पारंपरिक खाना है. उत्तर-पश्चिम मेकिस्को में रहने वाले सेरी समुदाय के लोग इस फल की खेती करते हैं वो भी इसकी कड़वी वाली प्रजाति का उपयोग करते हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मीठी प्रजाति ही सबसे ज्यादा बिकती है. इस प्रजाति को पिटाया डुल्से या ऑर्गन पाइप कैक्टस भी कहते हैं. (फोटोःगेटी)

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इन सबके अलावा एक बेहद खुशबूदार ड्रैगन फ्रूट भी आता है, जिसे हाइलोसेरेस फ्रूट (Hylocereus Fruit) कहते हैं. यह स्वाद में बहुत कुछ तरबूज की तरह होता है. मीठा और पानी से भरपूर. आमतौर पर इस फल का रंग गुलाबी होता है. अंदर की तरफ सफेद गूदा होता है. लाल रंग का ड्रैगन फ्रूट अंदर से भी लाल रंग का होता है लेकिन इसके छोटे-छोटे बीज काले ही होते हैं. इनके अलावा पीले रंग का ड्रैगन फ्रूट भी आता है, इसके अंदर सफेद गूदा होता है. (फोटोःगेटी)

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जहां भी इस फल की कॉमर्शियल खेती होती है वहां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि एक हेक्टेयर खेत में 1100 से 1350 पौधे ही लगाए जाएं. पहली बार पूरी तरह से फल से आने में करीब पांच साल लग जाते हैं, इसलिए इनकी कीमत ज्यादा हो जाती है. एक बार फल आने के बाद मौसम और पौधे की क्षमता के अनुसार फिर साल में दो या तीन बार इसकी फसल मिलती है. (फोटोःगेटी)

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एक बार फल आता है तो एक हेक्टेयर से करीब 25 से 30 टन ड्रैगन फ्रूट निकलते हैं. ड्रैगन फ्रूट के पौधे 40 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बर्दाश्त कर सकते हैं. लेकिन ज्यादा समय के लिए अगर सर्दी आ गई तो ये फसल खराब हो जाती है. इसलिए इनकी खेती गर्मियों और बारिश के आसपास के महीनों में ही की जाती है. सर्दियों में ड्रैगन फ्रूट नहीं उगता. (फोटोःगेटी)

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अगर आप इस फल का 100 ग्राम हिस्सा खाते हैं तो आपको कुल मिलाकर 260 से 264 किलो कैलोरी ऊर्जी मिलती है. इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट, सुगर, डाइटरी फाइबर, प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्सियम और सोडियम पर्याप्त मात्रा में मिलता है. इसे लगातार खाने से शरीर में इन विटामिन्स और मिनरल्स की कमी नहीं होती. साथ ही शारीरिक शक्ति बनाए रखने में मदद करता है. (फोटोःगेटी)

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भारत में ड्रैगन फ्रूट ज्यादातर बाहर से आता है. इसलिए इसकी कीमत ज्यादा होती है. ऑनलाइन स्टोर्स पर इसकी कीमत आपको बाजार की तुलना में कम मिलेगी. लेकिन 75 रुपए प्रति पीस से कीमत शुरू होकर 300 रुपए प्रति पीस या उससे ज्यादा तक जाती है. लेकिन कुछ लोग इसे 400 रुपए किलोग्राम तक बेंचते हैं. यह निर्भर करता है ड्रैगन फ्रूट के आकार, मिठास और गुणवत्ता पर. (फोटोःगेटी)

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