झारखंड के रांची में नौ वर्षीय मासूम एक ऐसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहा है, जिसका भारत में इलाज ही नहीं है. अमेरिकी कंपनी इस गंभीर बीमारी की दवा बनाती है, उसकी कीमत भी करोड़ों में है. आइए जानते हैं क्या होता है हंटर सिंड्रोम और इसकी वजह से शरीर में क्या बदलाव आते हैं, इस बीमारी की दवा इतनी महंगी क्यों है.
दरअसल, रांची के रहने वाले सौरभ सिंह को अपने नौ वर्षीय बेटे शौर्य की इस गंभीर बीमारी के बारे में पता चला है. पता चला कि अमेरिका की एक कंपनी इस बीमारी की दवा बनाती है, लेकिन उस दवा की कीमत करोड़ों में है. बेटे के लिए उन्होंने हार नहीं मानी.सौरभ सिंह ने अपने बेटे के इलाज में मदद के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री को चिट्ठी लिखी. फिलहाल शौर्य का इलाज चल रहा है. (सभी तस्वीरें- सांकेतिक)
क्या है हंटर सिंड्रोम: हंटर सिंड्रोम एक रेयर बीमारी है. इस आनुवांशिक बीमारी में किसी एक क्रोमोजोम में विकृति के कारण शर्करा को तोड़ने के लिए जरूरी एंजाइम बहुत कम मात्रा में बनते हैं. इस बीमारी से बच्चे की शारीरिक और मानसिक बढ़त पर असर दिखता है. शरीर में कई असामान्य बदलाव होते हैं. खासकर इसमें मरीज का बौद्धिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है.
इस बीमारी के लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, जब बच्चे की सोचने-समझने की क्षमता, शारीरिक बढ़त और ऑर्गन फंक्शन अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की अपेक्षा सुस्त होने लगते हैं. फिर एक वक्त के बाद बच्चे का बढ़ना एकदम बंद हो जाता है.
हंटर सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है जो सिर्फ लड़कों को प्रभावित करती है. लड़कियां इस बीमारी के वाहक का काम करती हैं यानी एक से दूसरी पीढ़ी में ले जाती हैं. इसे ट्राइसोमी 21, एमपीएसएस और डाउन सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है. ये सिंड्रोम मां से बच्चे में जाता है. लड़कियों पर इसका कोई खतरा नहीं. इसकी वजह ये है कि उनमें दो X क्रोमोजोम होते हैं.
इसके लक्षण जन्म के साथ दिखाई नहीं देते हैं लेकिन 2 से 4 साल की उम्र तक संकेत दिखने लगते हैं. ये लक्षण हैं- सिर का आकार सामान्य से काफी बड़ा होना, होंठों का मोटा हो जाना, फैली हुई नाक, जिसके छेद भी सामान्य से काफी बड़े लगें, मोटी आवाज. हंटर सिंड्रोम में पेट काफी फूला हुआ दिखता है क्योंकि पेट के भीतर के सभी ऑर्गन फूल जाते हैं. बच्चे को बार-बार डायरिया होता है. जोड़ों में कड़ापन होने की वजह से बच्चा ठीक से चल-फिर नहीं पाता.
डॉक्टर इसकी जांच के लिए कई तरीके अपनाते हैं. इसमें ब्लड टेस्ट से लेकर, यूरिन व शुगर टेस्ट भी शामिल है. इसके अलावा व्यवहारगत लक्षणों की भी जांच होती है क्योंकि इसके लक्षण कई दूसरी बीमारियों से मिलते-जुलते हैं. गर्भ में भी इस जीन की जांच हो सकती है अगर मां को लगता है कि उसकी फैमिली हिस्ट्री में ये बीमारी भी है.
एंजाइम रिप्लेसमेंट थैरेपी (ERT) के जरिये इसका इलाज हो सकता है लेकिन ये भी स्थायी नहीं है. एंजाइम केवल शर्करा के टूटने में मदद करता है, जिससे बीमारी के लक्षण कुछ हद तक माइल्ड हो जाते हैं. या फिर ये मान सकते हैं कि बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है. इलाज से बच्चे के कसे हुए जोड़ खुल जाते हैं और वो आसानी से चलने-फिरने लगता है. उसका शारीरिक विकास होने लगता है. हालांकि ये थेरेपी बच्चे के बौद्धिक विकास में कोई मदद नहीं करती. बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी एक विकल्प है, जिससे हो सकता है कि बच्चे में मिसिंग या डैमेज्ड क्रोमोजोम की भरपाई हो सके. हालांकि इसमें काफी खतरे हैं और अब भी रिसर्च चल रही है.
हंटर सिंड्रोम की थेरेपी के लिए एक इंजेक्शन की जरूरत होती है जो केवल अमेरिका और कोरिया में ही मिलती है. एक इंजेक्शन की कीमत करीब दो करोड़ रुपये है. हर हफ्ते अस्पताल में भर्ती कराकर इनफ्यूजन कराना पड़ता है, जिसे एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी कहा जाता है, ये काफी कष्टकारी होता है. इलाज का खर्च करोड़ों रुपए आता है.