मनोज वाजपेयी की वेब सीरीज फैमिली मैन 2 के रिलीज होने के बाद से ही एक बार फिर एलटीटीई (LTTE) संगठन सुर्खियों में है. इस वेब सीरीज में एक खतरनाक गुरिल्ला आतंकी(समांथा) भारत के पीएम बासु(सीमा बिस्वास) को हवाई हमले के जरिए खत्म करना चाहती है. हालांकि वो अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाती है. लेकिन आज से 30 साल पहले एलटीटीई के आतंकियों का भारत के पीएम को मारने का मंसूबा कामयाब हो गया था. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
वेलुपिल्लई प्रभाकरण के नेतृत्व में एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) की स्थापना की गई थी. तमिल राष्ट्रवाद का पुरजोर समर्थक प्रभाकरण श्रीलंकाई तमिलों के खिलाफ लगातार भेदभाव और हिंसक उत्पीड़न से आजिज आ चुका था और एक स्वंतत्र तमिल राष्ट्र बनाना चाहता था. साल 1983 में एलटीटीई ने श्रीलंका के 13 सैनिक मार गिराए थे जिसके बाद साल 2009 तक श्रीलंका में गृहयुद्ध चलता रहा. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
प्रभाकरण कुछ लोगों की नजर में एक खतरनाक चरमपंथी था. वहीं, कुछ लोग खासकर तमिल राष्ट्रवादियों के लिए एक महान योद्धा और स्वतंत्रता सेनानी. प्रभाकरण ने एक दशक के भीतर एलटीटीई को मामूली हथियारों के साथ 50 से कम लोगों के समूह से 10 हजार लोगों के प्रशिक्षित संगठन में तब्दील कर दिया था जो एक देश की सेना से टक्कर ले सकता था. (फोटो क्रेडिट: LTTE ग्रुप)
श्रीलंका में जब ये अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ था तब भारत और खास कर तमिलनाडु में बहुत से संगठन लिट्टे का समर्थन करते थे. हालांकि, अगले कुछ सालों में तस्वीर बदलने लगी. श्रीलंका में गई भारत की शांति सेना और राजीव गांधी की हत्या ने इस सपोर्ट को नफरत में तब्दील कर दिया. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
एलटीटीई और श्रीलंका के बीच लगातार तनाव के बीच साल 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच एक शांति समझौता हुआ था. इस समझौते के अनुसार भारत से एक विशेष सैन्य दल को श्रीलंका भेजा जाना था. भारत की इस शांति सेना का मकसद था एलटीटीई से आत्मसमर्पण कराना. हालांकि, इस समझौते के तीन हफ्ते बाद ही लिट्टे ने हथियारों का समर्पण बंद कर दिया. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
प्रभाकरण ने भारतीय शांति सेना के अधिकारियों को बताया कि भारतीय खुफिया विभाग लिट्टे के विरोधी संगठनों को हथियार दे रहे हैं. अक्तूबर 1987 तक स्थिति यह पैदा हो गई कि भारतीय शांति सेना का लिट्टे से सीधा टकराव होने लगा. श्रीलंका में भारत के हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके थे. 1989 में राजीव गांधी की जगह वीपी सिंह भारत के पीएम बन गए. इसके बाद उन्होंने भारत की शांति सैनिकों को श्रीलंका से वापस बुला लिया था. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
एलटीटीई का इस फैसले के बाद उत्साह बढ़ा और इस संगठन ने अलग तमिल राष्ट्र बनाने की पुरजोर कोशिशें शुरू कर दी. भारत में 1991 में एक बार फिर चुनाव होने थे. राजीव गांधी ने श्रीलंका की एकता को बनाए रखते हुए तमिलों की समस्याओं को हल करने पर जोर दिया. हालांकि, उनका ये बयान एलटीटीई की विचारधारा के खिलाफ था. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
एलटीटीई उस दौर में ये मानकर चल रहे थे कि वे अपना नया राष्ट्र पा सकते हैं लेकिन राजीव गांधी के चुनाव जीतने पर चीजें मुश्किल हो सकती हैं. इसलिए राजीव गांधी की हत्या का प्लान बनाया गया. 21 मई 1991 को तमिलनाडु की एक चुनावी सभा में एक महिला आत्मघाती हमलावर ने धमाका कर राजीव गांधी की जान ले ली. (फोटो क्रेडिट: Getty Images)
राजीव गांधी पर को 1987 में कोलंबो में एक परेड के दौरान भी मारने की नाकाम कोशिश की गई थी. इसके बाद 1 मई 1993 को एलटीटीई के आत्मघाती हमले में राष्ट्रपति प्रेमादासा की भी हत्या कर दी गई. इससे कुछ हफ्तों पहले ही श्रीलंका के नेता और मंत्री ललित अथुलाथमुदाली की हत्या भी कर दी गई थी. 18 मई 2009 में श्रीलंकाई सेना द्वारा प्रभाकरन की हत्या के साथ ही लिट्टे का आंदोलन खत्म हो गया. (फोटो क्रेडिट: रानासिंघे प्रेमदासा)