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अंतरिक्ष की विचित्र घटनाः हर महीने चांद की निकलती है पूंछ, धरती पहनती है स्कॉर्फ

Lunar tail Earth wears it like scarf
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क्या आपको पता है धरती के चारों तरफ चक्कर लगा रहे चांद की पूंछ होती है. ये महीने में किसी भी समय एक बार निकलती है. जब यह निकलती है तो इसका असर धरती पर भी पड़ता है. इस पूंछ के प्रभाव में आते ही धरती भी एक स्कॉर्फ जैसा आवरण अपने ऊपर ओढ़ लेती है. यह स्थिति ऐसी होती है जिसमें चांद पुच्छल तारा यानी कॉमेट बन जाता है. आइए जानते हैं कि चांद की पूंछ कब निकलती है... (फोटो: JAXA/जेम्स ओ डोनोघ)

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चांद हर महीने एक बार पुच्छल तारा (Comet) बनता है. JGR Planets नाम के जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक चांद के पुच्छल तारा बनने के पीछे उल्कापिंडों का बड़ा हाथ है. ये उल्कापिंड तेजी से आकर जब चांद की सतह से टकराते हैं, तब उस टकराहट से बड़ी मात्रा में सोडियम के परमाणु अंतरिक्ष में निकलते हैं. (फोटो: गेटी)

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चांद की सतह से निकले सोडियम के परमाणु सूरज से आने वाले रेडिएशन के बहाव में आकर तेजी से करोड़ों किलोमीटर तक एक पूंछ बनाते हैं. ऐसा तब होता है जब सूरज और धरती के बीच चांद आता है. जब चांद की सतह से निकले सोडियम की लहर धरती की तरफ आती है तो उसके पीछे दो कारण होते हैं, पहला सूर्य की रेडिएशन वाला तूफान और दूसरा धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति. (फोटो: JAXA/जेम्स ओ डोनोघ)

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चांद की यही पूंछ धरती को चारों ओर से घेर लेती है. अच्छी बात ये है कि चांद की पूंछ (Lunar Tail) नुकसानदेह नहीं होती. इससे धरती पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता. चांद की पूंछ (Lunar Tail) खुली आंखों से नहीं दिखती. ये स्थिति हर महीने नए चांद के आने पर होती है. ये सिर्फ अत्यधिक ताकतवर टेलीस्कोप से दिखाई देता है. आसमान में नारंगी रंग की पूंछ दिखाई देगी. (फोटो: गेटी)

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चांद की पूंछ (Lunar Tail) की चौड़ाई चांद के व्यास से पांच गुना ज्यादा होता है. जबकि, इसकी रोशनी इंसान की खुली आंखों से देखने की क्षमता से 50 फीसदी कम होती है. चांद से निकलने वाले सोडियम की पूंछ (Lunar Sodium Tail) का पहली बार 1990 में चला था. हर महीने चांद पर एक Sodium Spot बनता है. जो दिखता तो हर महीने था, लेकिन इसकी रोशनी कम-ज्यादा होती रहती थी. (फोटो: JAXA/जेम्स ओ डोनोघ)

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चांद की पूंछ (Lunar Tail) को पढ़ने के लिए साइंटिस्ट्स ने ऑल-स्काई कैमरा तैनात किया. इस कैमरे ने 2006 से 2019 के बीच 21 हजार तस्वीरें ली. जब साइंटिस्ट्स ने इन तस्वीरों का अध्ययन किया तो उन्हें एक खास तरह के पैटर्न का पता चला. ऐसा सबसे ज्यादा तब होता है जब कई उल्कापिंड (Meteor) चांद की सतह से टकराते हैं. इनकी वजह से उड़ने वाली धूल अंतरिक्ष में फैलती है. (फोटो: गेटी)

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चांद की पूंछ (Lunar Tail) का सबसे ज्यादा नजारा नवंबर के महीने में दिखता है. क्योंकि इस समय लियोनिड उल्कापिंड (Leonid Meteor) की बारिश ज्यादा होती है. इस समय चांद की सतह से सोडियम के कण अंतरिक्ष में तेजी से फैलते है. सूरज से निकलने वाले सौर तूफान यानी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पार्टिकल्स भी इससे टकराते हैं. इनकी वजह से ये पूंछ बेहद तेजी से फैलती है और लंबी होती जाती है. (फोटो: JAXA/जेम्स ओ डोनोघ)

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जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के प्नैटेरी साइंटिस्ट जेम्स ओ डोनोघ कहते हैं कि ये पूंछ खुली आंखों से दिखाई नहीं देगी. लेकिन अगर कोई बड़ा एस्टेरॉयड चांद की सतह टकराएगा तो उसकी वजह से निकलने वाली सोडियम की पूंछ बहुत बड़ी और लंबी होगी. ये तो चांद से आने वाली एक बेहतरीन धूल है जो धरती को ढंकती है. (फोटो: गेटी)

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