भारत के कई राज्यों में बर्ड फ्लू फैल रहा है. इसकी वजह से देश के अन्य कई राज्यों ने अलर्ट जारी कर दिया है. राजस्थान, मध्यप्रदेश, केरल, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों से पक्षियों के मरने की खबरें आ रहीं है. सैंपल में बर्ड फ्लू की पुष्टि भी हो रही है. अब सवाल उठता है कि सरकार इससे बचने के लिए क्या करेगी? क्या ऐसे पक्षियों को मारने का आदेश जारी किया जाएगा जिनसे इंसानों का सीधा संपर्क है? क्योंकि इंसानों को बचाने के लिए उन पक्षियों को मारना जरूरी है जिन्हें इंसान किसी भी तरीके से खाते या पालते हैं. आइए जानते हैं कि बर्ड फ्लू में पक्षियों को क्यों मारा जाता है. (फोटोःगेटी)
बर्ड फ्लू से बचने के लिए तीन चरणों में अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं. पहला फेज प्री-पैनडेमिक यानी महामारी से पहले. इसमें इंसानों को बीमार से होने बचाने के लिए सारे प्रयास किए जाते हैं. इसी में पक्षियों को मारना भी शामिल है. इसके बाद अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को मजबूत किया जाता है. दूसरे फेज में संक्रमण के सोर्स यानी वायरस के रोकथाम की व्यवस्था की जाती है. तीसरे फेज में महामारी घोषित कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे रोकने के प्रयास किए जाते हैं. (फोटोःगेटी)
बर्ड फ्लू के दौरान पक्षियों को मारना कलिंग (Culling) कहलाता है. इन पक्षियों को इसलिए मारा जाता है क्योंकि ये इंसानों के खाने में उपयोग होते हैं. या फिर ऐसे पक्षियों को मारा जाता है जिनसे सीधे तौर पर इंसानों का संपर्क होता है. जैसे- कौवे, बत्तख, कबूतर आदि. ये पक्षी आमतौर पर पर्यटन स्थलों पर मिल जाते हैं. मुर्गियां आदि खाने के उपयोग में आती हैं. इसलिए इन पक्षियों में जैसे ही बर्ड फ्लू के लक्षण दिखते हैं, सरकार कलिंग को एक प्रावधान बनाकर रखती है. स्थिति गंभीर होने पर पक्षियों को मारने का आदेश दिया जाता है. (फोटोःगेटी)
जब भी किसी पोल्ट्री फार्म में पक्षियों को मारा जाता है तो उसके चारों तरफ 1 से 5 किलोमीटर की दूरी को प्रतिबंधित इलाका घोषित कर दिया जाता है. ये इलाका अत्यधिक निगरानी में रखा जाता है. 2 से 10 किलोमीटर की दूरी के बफर जोन माना जाता है. यानी अगर बीमारी फैलती है तो इस इलाके को प्रतिबंधित इलाका घोषित कर बफर जोन को बढ़ा दिया जाए. H5N1 वायरस को रोकने के लिए साल 2004 और 2005 में इसी तरह के प्रयास दुनियाभर में किए गए थे. (फोटोःगेटी)
2004 और 2005 के बीच H5N1 बर्ड फ्लू वायरस को रोकने के लिए सिर्फ एशिया में 10 करोड़ से ज्यादा मुर्गियों को मार दिया गया था. हालांकि, इससे उन किसानों को बहुत नुकसान हुआ था जिनकी रोजी रोटी मुर्गी पालन से होती है. फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द यूनाइटेड नेशंस (FAO) के नियमों के अनुसार अगर बर्ड फ्लू या एवियन इंफ्लूएंजा फैलने की आशंका है तो पक्षियों को मारना कानूनसंगत है. हालांकि, साल 2003 और 2004 में वियतनाम में किसानों ने अपनी मुर्गियां मारने को देने से मना कर दिया था. इसके बाद वहां नए कानून बनाए गए. (फोटोःगेटी)
कुछ एक्सपर्ट और वैज्ञानिकों का मानना है कि पक्षियों को मारने से बर्ड फ्लू से नहीं बचा जा सकता. यह एक अप्रभावशाली बचाव का तरीका है. यह थोड़े समय के लिए भले ही इंसानों को बचा सकता है, लेकिन लंबे समय के लिए पक्षियों को मारना ठीक नहीं है. HPAI (Highly Pathogenic Avian Influenza) को रोकने अन्य तरीके भी हो सकते हैं. प्रभावशाली तरीके से अगर पक्षियों को मारना है तो सही जगह का चयन होना चाहिए. किसान को मुर्गियों के बदले कुछ आर्थिक मदद मिलनी चाहिए. (फोटोःगेटी)
HPAI (Highly Pathogenic Avian Influenza) यानी बर्ड फ्लू अब तक दुनिया में चार बार फैल चुका है. यहां तक कि 60 से ज्यादा देशों में महामारी का रूप भी ले चुका है. एवियन इंफ्लूएंजा के कई प्रकार हैं, लेकिन पांच प्रकार के वायरस इंसानों को संक्रमित करते हैं. ये हैं- H5N1, H7N3, H7N7, H7N9 और H9N2. बर्ड फ्लू पक्षियों के जरिए ही इंसानों में फैलता है. इसलिए पक्षियों को सुरक्षित रखने के लिए सभी देशों की सरकारें अलग-अलग मुहिम चलाती रहती हैं. (फोटोःगेटी)