लगातार आठवें साल, फिनलैंड ने वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 में पहला स्थान हासिल किया है. फिनलैंड के अलावा, डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन भी टॉप चार में बने हुए हैं. ये सभी देश नॉर्डिक देश भी कहलाते हैं. वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट करने वाले देश हमेशा टॉप पर क्यों रहते हैं. यह एक महज संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई ठोस वजहें हैं. आइए समझते हैं कि आखिर नॉर्डिक देश इतने खुशहाल क्यों हैं.
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के 6 फैक्टर होते हैं-प्रति व्यक्ति जीडीपी, सामाजिक सहयोग, स्वस्थ जीवन, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार का स्तर. इन्हीं के आधार पर देशों की खुशहाली रैंकिंग तय होती है.इन्हीं आधारों पर किसी देश की खुशहाली का स्तर मापा जाता है और वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में उसकी रैंकिंग तय की जाती है.
इस देश के लोग अपने जीवन के निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकते हैं और उन्हें बोलने की भी पूरी आजादी होती है. इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा और इंश्योरेंस प्रणाली इतनी मजबूत है कि यहां के हर शख्स को जिंदगी में आर्थिक असुरक्षा महसूस नहीं होती. पेंशन जैसी सुविधाओं की गारंटी होने से लोग तनावमुक्त और संतुष्ट जीवन जीते हैं, जिससे उनकी खुशहाली बढ़ती है.
नार्वे और आइसलैंड का गिनी गुणांक स्वीडन (0.28) से भी कम है, और अमेरिका (0.41) की तुलना में बहुत कम है. इसके मायने है कि इन दोनों नॉर्डिक देशों में अमीर और गरीब के बीच का अंतर स्वीडन बेहद कम है, और अमेरिका की तुलना में तो काफी कम है. इस वजह से नार्वे और आइसलैंड में सामाजिक तनाव और नाराजगी और भी कम होती है.
नॉर्वे में कार्य-जीवन संतुलन को बेहद अहम माना जाता है. यहां प्रति सप्ताह औसतन 37.5 घंटे काम करने का नियम है, जिससे लोग अपने निजी जीवन और आराम के लिए समय निकाल सकें. यहां वर्क लाइफ बैलेंस शब्द की अहमियत इस देश के लोग बेहतर तरीके से समझते हैं.
वहीं, स्वीडन में कुछ जगहों पर 6 घंटे का कार्यदिवस अपनाया गया, जिससे कर्मचारियों की उत्पादकता और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ. इसके अलावा, नॉर्डिक देशों में हर साल कम से कम 25 दिन की सैलरी के साथ छुट्टी मिलती है, जिससे तनाव कम होता है.