चीन की विस्तारवादी नीति से अब तक सिर्फ उसके पड़ोसी देश ही परेशान थे लेकिन अब अमेरिका और यूरोप के देशों को भी चिंता सताने लगी है. नाटो देश भी अब ये मानने लगे हैं कि चीन दुनिया की शांति के लिए खतरा बन गया है. चीन को लेकर नाटो देशों की चिंता बेवजह नहीं है. चीन अपनी नीतियों की वजह से दुनिया के लिए सबसे बड़ी मुसिबत बनता जा रहा है .इस खतरे से निपटने के लिए नाटो देशों ने अब एक अहम रणनीति बनाई है.
दिल्ली से 6 हजार किलोमीटर दूर ब्रसेल्स में नाटो देशों की बैठक चल रही थी. भारत ना तो नाटो का मेंबर है और ना ही उस बैठक में शामिल था लेकिन फिर भी उस बैठक में जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई उसका संबंध भारत से भी है. नाटो देशों की बैठक में जो फैसले लिए गए उसका असर भारत की विदेश और रक्षानीति पर भी पड़ेगा.
दरअसल, नाटो देशों की चिंता का विषय भारत नहीं बल्कि चीन है. चीन की बढ़ती हुई आक्रमक सैन्य गतिविधियों से नाटो देश परेशान हैं. एक सैन्य संगठन के रूप में नाटो देशों की चिंता चीन को लेकर बढ़ती जा रही है. नाटो के नेताओं को अब लगने लगा है कि चीन सुरक्षा के लिए चुनौती बनता जा रहा है. इतना ही नहीं नाटो देश ये भी सोचते हैं कि चीन अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित व्यवस्था को कमतर करने की दिशा में काम कर रहा है. नाटो देशों की चिंता ये भी है कि चीन काफी तेजी से परमाणु मिसाइल विकसित कर रहा है. चीन दुनिया का नया सुपरपावर बनने के सपने देख रहा है.
चीन चाहता है कि दुनिया के हर कोने में उसके सैनिक अड्डे हों. दुनिया के हर छोटे-बड़े विवाद पर वो अपनी टांग अड़ाए और दुनिया का हर देश उसके दरबार में हाजिरी लगाए. इसलिए चीन तेजी से अपनी सैन्य ताकत और परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाने में जुटा है.
चीन को लेकर दुनिया किस कदर चिंतित है उसका अंदाजा नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग के बयान से लगाया जा सकता है. चीन को लेकर दिए बयान में येंस स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि बाल्टिक से अफ्रीका तक चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी का मतलब ये है कि परमाणु-शक्ति संपन्न नाटो को तैयार रहना होगा. चीन हमारे करीब आता जा रहा है. हम उसे साइबरस्पेस में देख रहे हैं, अफ्रीका में देख रहे हैं, और हम देख रहे हैं कि वो अपने अहम बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है.
चीन को लेकर येंस स्टोल्टेनबर्ग या नाटो देशों की ये चिंता बेवजह नहीं है. इसके कई कारण हैं. चीन अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में चीन ने अपने उत्पाद और कर्ज के जरिए पैठ बना ली है. चीन अर्थव्यवस्था के लिहाज से कमजोर देशों को कर्ज के जाल में उलझा कर रखता है.
चीन अपनी इस नीति के जरिए 150 से ज्यादा देशों में 112 लाख करोड़ से ज्यादा रकम कर्ज या निवेश के तौर पर लगा चुका है. इतना ही नहीं चीन अब विश्व बैंक और आईएमएफ से भी बड़ा कर्जदाता बन गया है. अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ चीन विस्तारवादी नीति पर भी काम कर रहा है.चीन का लगभग अपने पड़ोसी के साथ जमीन को लेकर विवाद चल रहा है. भारत के अलावा किसी ना किसी मुद्दे को लेकर चीन का जापान, वियतनाम, अमेरिका, मलेशिया से भी विवाद चल रहा है. चीन और ताइवान के बीच तो गंभीर तनाव है.
देर से ही सही अब नाटो देशों के नेताओं को भी समझ में आ गया है कि चीन की नीतियां बेहद खतरनाक हैं और वो पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है. चीन की तेज़ी से बढ़ती हुई आर्थिक और सैन्य शक्ति उन्हें भी निशाना बना सकती है. ब्रसेल्स में हुई NATO देशों की बैठक में चीन की बढ़ती ताकत से कैसे निपटा जाए इसपर मंथन किया गया. NATO के अलावा एक और संगठन है जो चीन की विस्तारावादी नीति के खिलाफ रणनीति बनाकर काम कर रहा है और इस संगठन का नाम है क्वाड. QUAD यानी क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग जिसके 4 सदस्य देश हैं भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जिनका मकसद चीन के विस्तारवाद पर लगाम लगाना है.
QUAD की स्थापना 2007 में हुई थी और 2017 में इसे फिर से पुनर्गठित किया गया. क्वाड का संदेश चीन के लिए साफ है कि अगर उसने विस्तारवाद पर लगाम नहीं लगाई तो उसे चारों मित्र देशों की कार्रवाई का अंजाम भुगतना होगा. चीन शुरू से ही क्वाड को चार विरोधी देशों का समूह मानता रहा है. उसे लगता है कि क्वाड के ये चार देश उसकी बढ़ती ताकत के खिलाफ गुटबंदी कर रहे हैं.
चीन क्वाड को लेकर काफी चिंतित है. चीन को डर है कि क्वाड उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती हो सकता है. इसीलिए क्वाड की क्षमता देखते हुए चीन घबराया हुआ है.क्वाड से चीन पहले ही परेशान था और अब नाटो देशों ने उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. अपनी विस्तारवादी नीतियों की वजह से पूरी दुनिया के लिए परेशानी की वजह बन चुका चीन अब खुद बहुत बड़ी परेशानी में घिर गया है.