अपनी रफ्तार और फुर्ती की वजह से अलग पहचान रखने वाले चीतों की करीब 50 साल बाद देश में वापसी होने वाली है. नवंबर माह में इन्हें दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया जा रहा है. इनमें 5 नर एवं 5 मादा चीते शामिल हैं. इन चीतों को मध्य प्रदेश के चंबल नदी क्षेत्र में स्थित कूनो नेशनल पार्क में रखा जाएगा. (फोटो/Getty images)
वैसे चीतों का भारत देश से जुड़ा पुराना इतिहास काफी रोचक रहा है. 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह जहांगीर के शासन के दौरान दुनिया का पहला चीता कैद में पाला गया था. मुगलिया इतिहास की मानें तो मुगल बादशाह अकबर के समय में 10 हजार चीते थे, जिसमें से 1 हजार चीते उनके दरबार में थे. हालांकि, अब विलुप्त की कगार पर पहुंचे सबसे तेज शिकारी के रूप में विशेष पहचान रखने वाले इन चीतों को देश में लाए जाने पर सहमति बन गई है. (फोटो/Getty images)
bbc.com की रिपोर्ट के मुताबिक चीतों को वर्षों से भारत में बसाए जाने संबंधी योजनाओं के प्रयास में जुड़े भारतीय वन्यजीव संस्थान के डीन यादवेंद्र देव झाला कहते हैं कि यह दुनिया में पहली बार होगा, जब एक बड़े मांसाहारी को संरक्षण के लिए एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में स्थानांतरित किया जाएगा. (फोटो/Getty images)
डॉ. झाला ने कहा कि मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों में तीन स्थलों राष्ट्रीय उद्यान और दो वन्यजीव अभयारण्यों को इनके लिए चिन्हित किया गया है. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में रखा जाएगा, जहां हिरण और जंगली सुअर जैसे पर्याप्त शिकार हैं. (फोटो/Getty images)
बता दें चीता करीब 120 किमी/घंटा की तेज रफ़्तार से भागने में सक्षम हैं. घास के मैदान में शिकार को पकड़ने के लिए इनकी रफ्तार और फुर्ती का कोई तोड़ नहीं है. अब दुनिया के 7 हजार चीतों में से अधिकांश दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और बोत्सवाना में पाए जाते हैं. कथित तौर पर लुप्तप्राय चीते को 1967-68 में भारत में आखिरी बार देखा गया था, लेकिन उनकी संख्या 1900 तक काफी कम हो गई थी. (फोटो/Getty images)
शोध से पता चला कि 1799 और 1968 के बीच जंगल में कम से कम 230 चीते थे. यह आजादी के बाद विलुप्त होने वाला एकमात्र बड़ा स्तनपायी है. शिकार की अनुपलब्धता तो उनके घटने का मुख्य कारण रही ही साथ ही ब्रिटिश शासन के दौरान चीतों को भरपूर शिकार के माध्यम से समाप्त कर दिया गया था, क्योंकि ये गांवों में प्रवेश कर पशुओं को मार रहे थे. (फोटो/Getty images)
भारत 1950 के दशक से चीतों को फिर से लाने के प्रयास कर रहा है. 1970 के दशक में एक प्रयास के तहत ईरान के शाह से चीतों को भारत लाए जाने पर चर्चा हुई थी. क्योंकि ईरान के पास उस समय 300 चीते थे, लेकिन शाह के पद से हटने के बाद बात बन नहीं पाई. (फोटो/Getty images)
डॉ. झाला ने बताया कि दक्षिणी अफ्रीका में 60 प्रतिशत चीते रहते हैं, इनके घर रेगिस्तान, टीले के जंगलों, घास के मैदानों, जंगलों और पहाड़ों में हैं. हालांकि, भारत में इन्हें लाए जाने पर कई प्रकार की चिंताएं हैं. चीता अक्सर पशुओं के शिकार के लिए खेतों में घुस जाते हैं, जिससे मानव-पशु संघर्ष शुरू हो जाता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्हें शिकारियों द्वारा लक्षित किया जाता है. (फोटो/Getty images)
डॉ. झाला जैसे वन्यजीव विशेषज्ञ भारत के घास के मैदानों की "प्रमुख प्रजातियों" की वापसी को लेकर उत्साहित हैं. उन्होंने कहा कि "किसी भी पुनरुत्पादन के लिए, आपको कम से कम 20 जानवरों की आवश्यकता होती है" वे कहते हैं कि "हम अगले पांच वर्षों में 40 चीते आयात करने पर विचार कर रहे हैं." (फोटो/Getty images)