आज से 67 साल पहले जब कराची में जवाहरलाल नेहरू छात्रों के साथ बातचीत कर रहे थे तो एक छात्र ने उनका चित्र बनाकर उसे अपने खून से इस उम्मीद से रंग दिया था कि नेहरू उसे जरूर देखेंगे.
इस छात्र का नाम था एच जी हिंगोरानी. वैज्ञानिक से चित्रकार बने 88 वर्षीय हिंगोरानी ने वह चित्र आज भी संभाल कर रखा है और इस चित्र की हर वषर्गांठ (दस जनवरी) पर वे इसकी झलक प्रशंसकों को दिखाना नहीं भूलते.
एच जी हिंगोरानी ने कहा, ‘नेहरू ने वह चित्र सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि उन्होंने उस पर अपने हस्ताक्षर करके मेरी पीठ भी थपथपाई थी.’ भारत सरकार के हैदराबाद स्थित एक्सटेंशन स्कूल के पूर्व प्राध्यापक हिंगारोनी याद करते हैं कि उन्होंने एक दूसरा चित्र कैसे बनाया था.
30 जनवरी 1948 को जब महात्मा गांधी को गोली मारी गई, हिंगोरानी की उम्र महज 23 साल थी. विभाजन के बाद उनका परिवार सिंध से यहां चला आया था और वे दिल्ली के एक शरणार्थी शिविर में रह रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘रेडियो पर महात्मा गांधी की हत्या की खबर सुनते ही मैं अपनी चित्रकारी का सामान लेकर बिरला हाउस की ओर भागा.’ हिंगोरानी ने कहा कि ज्यादा सुरक्षा और पुलिस न होने की वजह से वे सीधे उस कमरे में पहुंच गए जहां गांधीजी का पार्थिव शरीर जमीन पर रखा हुआ था. उन्हें सफेद कपड़े में लपेटकर रख गया था. उनके सीने, सफेद कपड़े और फर्श पर अब भी खून के निशान ताजा थे.
उन्होंने कहा, ‘बिरला हाउस के भीतर और बाहर अफरातफरी का माहौल था. लोग रो-रोकर चीख पुकार कर रहे थे. मैंने चित्र बनाना शुरू किया. बापू के शरीर और कपड़ों पर खून के निशान अब भी ताजा थे.’ उन्होंने बताया, ‘जब मुझे खींचकर उस कमरे से बाहर किया गया तब तक मैं आधे से ज्यादा चित्र पूरा कर चुका था. उस धक्कामुक्की में मैंने चित्र को तो बचा लिया लेकिन मेरी चित्रकारी का सारा सामान खो गया.’ हिंगोरानी के पास आज भी बापू की उस आखिरी झलक का चित्र सुरक्षित है.
उन्होंने कहा, ‘चूंकि मैं पाकिस्तान के सिंध से आया एक शरणार्थी था इसलिए सुरक्षाकर्मियों ने मुझे घंटों तक रोककर रखा. बाद में मुझे छोड़ दिया गया. मैंने शरणार्थी शिविर में आकर देर रात उस चित्र को पूरा किया.’