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9/11:ओसामा से ओबामा तक का सफरनामा...

दस साल तक ज़मीन-आसमान एक करने के बाद एक ऐसी खबर आई थी, जिसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका ने अपनी सारी दौलत, सारी ताकत और सदियों में कमाई साख तक दांव पर लगा दी थी.

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9/11:ओसामा से ओबामा तक
9/11:ओसामा से ओबामा तक

दस साल तक ज़मीन-आसमान एक करने के बाद एक ऐसी खबर आई थी, जिसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका ने अपनी सारी दौलत, सारी ताकत और सदियों में कमाई साख तक दांव पर लगा दी थी.
देखें कहां और कैसे मारा गया ओसामा | अमेरिका में जश्‍न 

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2 मई 2011 की रात करीब एक बजे अमेरिकी नौसेना के कमांडो सील का दस्ता अपने सबसे मुश्किल, सबसे खुफिया और सबसे खौफनाक मिशन पर था...एक पराए मुल्क में आधी रात को ऑपरेशन नेप्च्यून स्पीयर शुरू हो चुका था.

सील की एक-एक हरकत पर सीआईए हेडक्वॉर्टर की नज़र थी. व्हाइट हाउस के सिचुएशन रूम में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने चुनींदा सलाहकारों के साथ मौजूद थे. सामने स्क्रीन पर सीआईए चीफ लियोन पेनेटा सीआईए हेडक्वॉर्टर से आंखों देखा हाल सुना रहे थे, जबकि अफगानिस्तान के बगराम एयर बेस में ऑपरेशन नेप्च्यून स्पीयर के कमांडर विलियम एच मैकरेवन मौजूद थे.
ये हैं ओसामा के हमले के शिकार... 

अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने करीब 9 साल की मेहनत के बाद पुख्ता सबूत जुटा लिए थे कि अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद की हवेली में छिपा है, लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि नेवी सील के ऑपरेशन के वक्त ओसामा वहां मिलेगा भी या नहीं. किसी को ये भी पता नहीं था कि हवेली में ओसामा बिन लादेन के साथ कितने लोग, किस पोज़ीशन में होंगे.

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एबटाबाद की हवेली पहुंचे नेवी सील को ओसामा के इस अड्डे का वो नक्शा मालूम था, जिसे सीआईए ने नेशनल जियोस्पैशियल इंटेलिजेंस एजेंसी की मदद से तैयार किया था.

सीआईए ने नौसेना के ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशंस कमांड के चीफ वाइस एडमिरल विलियम एच मैकरेवन को एबटाबाद की हवेली का ब्यौरा जनवरी में ही बताया था. खुद नेवी सील कमांडो रह चुके मैकरेवन एक्शन के लिए तैयार थे. उन्होंने नेवी सील के खास दस्ते डेवग्रु से 76 कमांडो चुने और उनकी ट्रेनिंग शुरू कर दी. सीआईए के लांग्ले कंपाउंड के प्रिंटिंग प्लांट को ट्रेनिंग सेंटर में तब्दील कर दिया गया.

वाइस एडमिरल मैकरेवन ऑपरेशन ओसामा के लिए तैयार तो थे, लेकिन उन्हें ये फिक्र भी सता रही थी कि कहीं एबटाबाद में सील के दाखिल होते ही पाकिस्तानी एयरफोर्स कोई रुकावट ना खड़ी कर दे. राष्ट्रपति ओबामा की भी सबसे बड़ी चिंता यही थी, जिसकी वजह से वो पाकिस्तान को बताए बिना एबटाबाद में कमांडो की छापेमारी से हिचक रहे थे.

नेवी सील के खास दस्ते की ट्रेनिंग जारी थी, लेकिन किसी भी कमांडो को ये नहीं मालूम था कि एक्शन कब, कहां और किसके खिलाफ होना है. ओसामा के अड्डे के बारे में सिर्फ सीआईए के चीफ लियोन पेनेटा, वाइस एडमिरल मैकरेवन, राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके बेहद भरोसेमंद सलाहकारों को पता था. राष्ट्रपति ओबामा दुविधा में थे कि ओसामा को खत्म करने के लिए क्या किया जाए.

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पहला विकल्प था पाकिस्तान को भरोसे में लेकर एबटाबाद में अमेरिकी खुफिया एजेंसी साझा कार्रवाई करे, लेकिन सीआईए को पाकिस्तान सरकार पर रत्ती भर भरोसा नहीं था. खुद राष्ट्रपति ओबामा मान रहे थे कि अगर पाकिस्तान सरकार को भनक भी लगी, तो एक सेकंड से भी कम समय में ये सूचना ओसामा तक पहुंच जाएगी.

नेवी सील की काबिलियत पर अमेरिका में किसी को शक नहीं था, लेकिन डिफेंस सेक्रेटरी रॉबर्ट गेट्स और दूसरे मिलिट्री अफसर सोच में डूबे थे कि अगर सील्स के ऑपरेशन के दौरान ओसामा हवेली में मौजूद ना रहा तो क्या होगा? वो सिर्फ उम्मीद के सहारे अपने कमांडोज़ की बेशकीमती ज़िंदगियां दांव पर लगाने से हिचक रहे थे, इसलिए चाहते थे कि क्यों ना रात के अंधेरे में एबटाबाद की पूरी हवेली को ही मटियामेट कर दिया जाए.

अमेरिकी रक्षा मंत्री को यकीन था कि उनके दो स्टील्थ बी-2 बॉम्बर बड़ी आसानी से पाकिस्तान के रडार को गच्चा देकर एबटाबाद दाखिल हो सकते हैं और ओसामा की हवेली को पलक झपकते बम से उड़ा सकते हैं, लेकिन इसमें भी बड़ा खतरा था. सीआईए को पता नहीं था कि हवेली में बंकर है या नहीं. रक्षा मंत्रालय के एक्सपर्ट बता रहे थे कि अगर मान लें कि कोई बंकर है, तो फिर हवेली को बंकर के साथ ध्वस्त करने के लिए 910 किलो वजन का बम गिराना होगा. इतना शक्तिशाली धमाका होता, तो एबटाबाद की हवेली के साथ आस-पास के मकान भी ध्वस्त होने का खतरा था. इसमें कम से कम दर्ज़न भर बेगुनाह मारे जाते.

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एबटाबाद में बम गिराने की बात 29 मार्च की मीटिंग में हो रही थी. ये तरीका असरदार तो था, लेकिन सवाल ये था कि बम धमाके में ओसामा मरा या नहीं, इसकी तस्दीक कैसे होगी. राष्ट्रपति ओबामा परेशान थे कि अगर बमबारी में ओसामा बच गया और बेगुनाह मारे गए, तो पूरी दुनिया में अमेरिका की किरकिरी होगी. साथ ही पाकिस्तान से रिश्ते और बिगड़ेंगे, जिसका खामियाज़ा अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिका और नाटो फौज को भुगतना पड़ेगा.

आखिरकार ओबामा ने बम गिराने का प्लान खारिज कर दिया और वाइस एडमिरल मैकरेवन को एबटाबाद में हेलीकॉप्टर रेड की तैयारी करने को कहा. 10 अप्रैल को नॉर्थ कैरोलिना और 18 अप्रैल को नेवादा में सील्स कमांडो ने रिहर्सल कर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दिया, तो दूसरी ओर राष्ट्रपति ओबामा के सुरक्षा सलाहकार एक्शन के दौरान पेश आने वाली दिक्कतों से निपटने की रणनीति बनाते रहे.

अमेरिका को भरोसा था कि उसके खास हेलीकॉप्टर पाकिस्तानी रडार को गच्चा देकर एबटाबाद पहुंच जाएंगे. फिर भी अगर पाकिस्तान को भनक लगी, तो पाकिस्तानी एयर फोर्स के लड़ाकू विमानों के उड़ते ही अमेरिका को खबर मिल जाती, क्योंकि पाकिस्तान को अमेरिका ने एफ-16 फाइटिंग फैल्कॉन दिए थे और अमेरिकी खुफिया एजेंट ही फाइटिंग फैल्कॉन की निगरानी कर रहे थे.

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ये तय हो चुका था कि अगर सील्स ने ओसामा को जिंदा पकड़ा, तो उसे फौरन बगराम एयर बेस ले जाया जाएगा. अगर सील्स को पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने घेर लिया, तो उस सूरत में एडमिरल माइक मुलेन को पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल अशफाक परवेज़ कियानी से संपर्क साधने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

19 अप्रैल की मीटिंग में राष्ट्रपति ओबामा ने एबटाबाद में नेवी सील को हेलीकॉप्टर रेड की तैयारी करने को कहा, लेकिन वो अब भी हिचक रहे थे कि कहीं सारा खेल उलटा ना पड़ जाए. अमेरिका को पता था कि अगर इस बार नाकाम हुए, तो फिर ओसामा को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ पाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा. इस मिशन का सारा दारोमदार अब नेवी सील की काबिलियत पर था.

सीआईए ने इस बीच अफगानिस्तान के बगराम में एक एकड़ ज़मीन पर एक हवेली बनाई, जो हू ब हू एबटाबाद वाली हवेली जैसी ही थी. बगराम की इसी हवेली में सील कमांडो की फाइनल ट्रेनिंग शुरू हुई. नेवी सील अब तक सिर्फ इतना बताया गया था कि उनके शिकार का नाम है ओसामा बिन लादेन, लेकिन ओसामा के जिस अड्डे पर कमांडो को कहर बरपाना है, उसकी जानकारी सील टीम सिक्स को तब तक नहीं दी गई.

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29 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर राष्ट्रपति ओबामा ने इस मिशन से जुड़े अपने सलाहकारों को व्हाइट हाउस के डिप्लोमेटिक रिसेप्शन रूम में बुलाया और एबटबाद में कमांडो कार्रवाई की हरी झंडी दे दी. सील को अब आगे बढ़ना था, लेकिन शाम को एक बुरी खबर आई. राष्ट्रपति ओबामा को बताया गया कि एबटाबाद में बादल घिरे हुए हैं, इसलिए आज रात में ऑपरेशन मुमकिन नहीं है.

30 अप्रैल को राष्ट्रपति ओबामा ने वाइस एडमिरल मैकरेवन से बात की. उन्होंने सील कमांडोज़ के लिए शुभकामना दी. ये इशारा था कि काम ज़ल्द खत्म करना है. एक मई को ओबामा सुबह-सुबह गोल्फ खेलने निकल गए, लेकिन खेल खत्म किए बिना वापस लौट आए.

ओबामा सिचुएशन रूम में अपने सहयोगियों के साथ थे. एबटाबाद की हवेली के ऊपर मंडरा रहे अमेरिकी ड्रोन का नाइट विज़न कैमरा दिखा रहा था कि स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस दो ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर सील कमांडो को लेकर एबटाबाद की हवेली तक पहुंच चुके हैं. बगराम में मौजूद एडमिरल मैकरेवन बता रहे थे कि इमरजेंसी के लिए दो शिनूक हेलीकॉप्टर और 24 सील कमांडो जलालाबाद और एबटाबाद के बीच मौजूद हैं. एबटाबाद की हवेली में मौजूद ओसामा बेखबर था कि उसके सिर पर मौत मंडरा रही है. ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर से सील कमांडो रस्सी के सहारे नीचे उतरे और बिना एक पल गंवाए शुरू हो गया इतिहास का सबसे सनसनीखेज़ एनकाउंटर.

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सील कमांडो ने एबटाबाद की हवेली से बाहर निकलने के सभी रास्तों पर मोर्चा संभाल लिया. हवेली का एक-एक कोना साफ करते हुए सील टीम आगे बढ़ी. इस दौरान ओसामा का डाकिया अल कुवैती, उसका रिश्तेदार अबरार, अबरार की बीवी बुशरा और ओसामा के दो जवान बेटे सील टीम की गोलियों का शिकार हो चुकी थी.

एबटाबाद की हवेली की दूसरी और तीसरी मंज़िल पर ओसामा और उसकी बीवियां और बच्चे रहते थे. सील कमांडो जब ओसामा के बेडरूम में दाखिल हुए, तो वहां कुर्ता-पायजामा पहने ओसामा मौजूद था. साथ ही थीं उसकी दो बीवियां-ओसामा की सबसे छोटी बीवी अमल ने ओसामा को अपने पीछे छिपा लिया. सील कमांडो ने अमल के पैर में गोली मारी और फिर एक सील कमांडो के राइफल से निकली गोली ओसामा के सीने में पैबस्त हो गई. ओसामा पीठ के बल ज़मीन पर गिरा. तभी एक दूसरे कमांडो ने उसके माथे पर गोली मार दी. मिशन कामयाब हो चुका था. वायरलेस रेडियो पर सील की आवाज़ गूंजी...फॉर गॉड एंड कंट्री...जिरोनिमो, जिरोनिमो...जिरोनिमो...ईकेआईए.

सिचुएशन रूम में अब तक शांत बैठे रहे राष्ट्रपति ओबामा के चेहरे पर पहली बार राहत के भाव चमके. ऑपरेशन ओसामा कामयाब हो चुका था, लेकिन अभी खत्म नहीं हुआ था. सील कमांडो ने ओसामा की लाश अपने कब्ज़े में ली. वहां मौजूद कंप्यूटर की हार्ड डिस्क, सीडी, डीवीडी और दूसरे दस्तावेज़ समेटे और बिना वक्त गंवाए वापस लौट आए बगराम एयर बेस. आनन-फानन ओसामा की लाश का डीएनए सैंपल उसकी सौतेली बहन के सैंपल से मैच कराया गया. पूरी तरह निश्चित होने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुनिया के सामने एलान किया कि दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी ओसामा बिन लादेन खत्म हो चुका है.

अमेरिकी कमांडो पाकिस्तान की छावनी में घुसकर अपना शिकार कर गए और पाकिस्तान को भनक भी तब लगी, जब ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ्स के चेयरमैन एडमिरल माइक मुलेन ने फोन करके जनरल कियानी को बताया. ये दुनिया का सबसे सनसनीखेज़ कमांडो ऑपरेशन था. शायद इस मास्टर प्लान के अलावा आतंक फैलाने के मास्टर माइंड ओसामा को खत्म करने का कोई रास्ता भी नहीं था.

ये उस दुश्मनी का अंत था. उतना ही सनसनीखेज़, जितनी खौफनाक थी इस दुश्मनी की शुरुआत. तारीख थी 11 सितंबर 2001. उस दिन अमेरिका की सुबह आम दिनों जैसी ही थी. इस बात से बेखबर कि दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन अमेरिका को दहलाने के लिए दुनिया का सबसे खौफनाक प्लान बना चुका है.

11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क में, सुबह 8.46 बजे वर्ल्ड ट्रे़ड सेंटर से पहले विमान की टक्कर हुई. अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 11 न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी टावर से टकराई. लोगों को जब तक कुछ समझ में आता, तब तक दक्षिणी टावर में मिसाइल की तरह पैबस्त हुआ एक और विमान. ये विमान यूनाइटेड एयरलाइंस का था फ्लाइट नंबर 175.

न्यूयॉर्क की पहचान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के जुड़वा टावर देखते ही देखते ज़मींदोज़ हो गए...लोगों को एहसास हो चुका था कि ये मामूली हादसा नहीं है..., ये अमेरिका पर हमला है..., लेकिन तब भी किसी को ये नहीं मालूम था कि ये तो बस हमले की शुरुआत है...

11 सितंबर 2001 को पेंटागन में सुबह 9.37 बजे अगली दहलाने वाली खबर आई. अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 77 पेंटागन की बिल्डिंग से टकराई. इसके थोड़ी ही देर बाद सुबह 10 बजकर 3 मिनट पर खबर आई कि पेन्सिल्वेनिया में भी यूनाइटेड एयरलाइंस की फ्लाइट 93 की टक्कर हो गई है.

डेढ़ घंटे से भी कम समय में एक के बाद एक चार यात्री विमानों की इस टक्कर से अमेरिका में कोहराम मच गया. अमेरिका में किसी को नहीं सूझ रहा था कि ये हमला कौन कर रहा है ? सबसे पहला डर यही था कि कहीं व्हाइट हाउस भी तो निशाने पर नहीं है? सीआईए ने बिना देरी किए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को उनके हवाई किले एयरफोर्स-वन में पहुंचा दिया. अमेरिका के सभी हवाई अड्डे बंद कर दिए गए. अमेरिकी एयर फोर्स के लड़ाकू जहाज़ आसमान में संदिग्ध विमानों की टोह लेने में जुट गए. दोपहर होते-होते साफ हो गया कि अब कोई नया खतरा अमेरिका के सिर पर नहीं है, लेकिन ज़मीन पर जो मंज़र था, वो दुनिया की इकलौती महाशक्ति अमेरिका को खून के आंसू रुलाने के लिए काफी था.

9/11 की तारीख ने ना सिर्फ यहां की तस्वीर बदली, बल्कि ये तारीख पूरी दुनिया के दिलो-दिमाग पर खौफ की मिसाल के तौर पर चस्पा हो गई. ओसामा बिन लादेन के आतंकी संगठन अलक़ायदा से अमेरिका को खतरा पहले से था. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को मालूम था कि आतंकी प्लेन हाइजैक कर सकते हैं और यात्रियों से भरे विमानों में धमाका भी कर सकते हैं, लेकिन ये बात कोई सोच भी नहीं सकता था कि अमेरिका पर सबसे बड़ा हमला करने के लिए ओसामा बिन लादेन अमेरिकी यात्री विमानों को ही बम के तौर पर इस्तेमाल करने वाला है.

अमेरिका पर आतंक का ये भयानक हमला पांच साल की तैयारियों का नतीज़ा था. प्लेन हाइजैक करके उसे अमेरिका के अहम ठिकानों से टकराने का खौफनाक प्लान सबसे पहले ओसामा बिन लादेन के डिप्टी खालिद शेख मुहम्मद के दिमाग में आया.

खालिद शेख मुहम्मद को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से जाने क्या दुश्मनी थी. 26 फरवरी 1993 को खालिद के भतीजे रमज़ी युसूफ़ ने विस्फोटक से लदी एक कार को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टावर के बेसमेंट में प्लांट किया और उसे उड़ा दिया. इस धमाके में 6 लोग मारे गए थे.

खालिद शेख मुहम्मद का आइडिया 1996 में ओसामा ने मुल्तवी कर दिया. वो तब सूडान से अल क़ायदा का बोरिया-बिस्तर समेट कर अफगानिस्तान में अपना बेस तैयार कर रहा था. हालांकि 1996 में ही ओसामा ने अमेरिका को चेतावनी दी थी कि वो सऊदी अरब से अपनी फौज हटा ले, मगर ओसामा की चेतावनी को अमेरिका ने गंभीरता से नहीं लिया. फिर 1998 में ओसामा ने अमेरिका के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया.

7 अगस्त 1998 की तारीख भी अहम है. अफ्रीकी देशों तंजानिया और केन्या में अमेरिकी दूतावासों पर एक साथ आतंकी हमला हुआ. इस हमले में विस्फोटकों से लदे ट्रकों का इस्तेमाल किया गया. केन्या में 212 लोग और तंजानिया में 11 लोग इन आतंकी हमलों में मारे गए.

तंजानिया और केन्या में अमेरिकी दूतावासों पर हमले के बाद पहली बार अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को गंभीरता से अपने लिए खतरा मानना शुरू किया. 20 अगस्त 1998 को अमेरिका ने अफगानिस्तान में ओसामा को खत्म करने की कोशिश की. अमेरिका ने अफगानिस्तान के खोस्त में अल क़ायदा के ट्रेनिंग कैंपों पर 66 मिसाइलें दागीं, लेकिन ओसामा बच गया और घायल नाग की तरह अमेरिका को डंसने का मौका तलाशने लगा.

अमेरिका से बदला लेने के लिए 1999 में ओसामा ने खालिद शेख मुहम्मद को हमले का प्लान बनाने की जिम्मेदारी सौंपी. खालिद शेख तो तीन साल पहले ही खाका बना चुका था कि प्लेन हाइजैक करके उसे बम की तरह इस्तेमाल करना है. इसके लिए पैसों का इंतज़ाम ओसामा ने किया और उसी ने खालिद शेख के साथ मिलकर उन 19 आतंकवादियों की लिस्ट तैयार की, जिन्हें प्लेन हाइजैक करना था.

जिन आतंकवादियों से प्लेन हाइजैक कराना था, उनमें हानी हनजौर के पास कमर्शियल पायलट लाइसेंस था. ओसामा ने नवाफ अल हाज़मी, खालिद अल महाज़िर, मोहम्मद अत्ता, मारवान अल शेही और ज़ियाद जर्राह को प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग लेने का फरमान सुनाया. जब ओसामा को यकीन हो गया कि उसके गुर्गे अब कामचलाऊ तौर पर विमान उड़ाना सीख गए हैं, तब उसने बाकी आतंकियों को अंतिम तैयारी के लिए अमेरिका भेजा.

जुलाई 2001 में ओसामा के गुर्गों ने अमेरिका पर जल्द से जल्द हमले की हरी झंडी देने को कहा. ओसामा का सिग्नल मिलते ही आतंकी हमले के लिए तैयार 19 आत्मघाती आतंकवादियों ने बोस्टन, नेवादा और वॉशिंगटन डीसी से अलग-अलग चार विमानों में उड़ान भरी. पांच-पांच-पांच और चार की टीम में बंटे आतंकियों ने पहले विमान हाइजैक किया और फिर बारी-बारी से विमानों को मिसाइल बनाकर कर दिया अमेरिका पर सबसे बड़ा आतंकी हमला.

इन हमलों ने अमेरिका की सोच बदल दी. अपनी ताकत पर गुमान करने वाला अमेरिका पहली बार खौफज़दा हुआ. 9/11 के आतंकी हमलों में 19 आतंकियों समेत 2977 लोग मारे गए. अब बारी थी अमेरिका के पलटवार की. अमेरिका को अब ओसामा चाहिए था. किसी भी कीमत पर, ज़िंदा या मुर्दा. अमेरिका ने आतंक के खिलाफ आर-पार की जंग का एलान कर दिया, जिसकी कीमत किस-किस चुकानी थी, इसका अंदाज़ा तब किसी को नहीं था.

हालांकि पिछले 10 साल में अमेरिका में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ. ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अमेरिका के लोगों का हौसला भी बढ़ा है, लेकिन, न्यूयॉर्क टाइम्स और सीबीएस न्यूज़ के साझा सर्वे में आज भी न्यूयॉर्क के 38 फीसदी लोग मानते हैं कि क्या पता अगले कुछ दिनों में कोई आतंकी हमला हो जाए.

पूरे अमेरिका में आतंकी हमले के डर के साए में जीने वालों की तादाद 42 फीसदी है. हर साल 9/11 को ग्राउंड ज़ीरो पर मातम मनाने वाले आते हैं. अपनों की याद में आंसू बहाते हैं और खुद से ये सवाल पूछते हुए चले जाते हैं कि क्या वाकई आतंक के खिलाफ इस जंग का कोई अंत है?

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