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दिन के अंधेपन से जूझता राजस्थान का एक परिवार

राजस्थान के एक गांव में एक परिवार के लिए दो पीढ़ियों से अंधेरा जीवन का हिस्सा बन गया है. इस परिवार में 15 सदस्य हैं, जिनमें आठ बच्चे शामिल हैं. ये सभी दिन के अंधेपन से पीड़ित हैं.

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राजस्थान के एक गांव में एक परिवार के लिए दो पीढ़ियों से अंधेरा जीवन का हिस्सा बन गया है. इस परिवार में 15 सदस्य हैं, जिनमें आठ बच्चे शामिल हैं. ये सभी दिन के अंधेपन से पीड़ित हैं. राजधानी जयपुर से कोई 150 किलोमीटर दूर झुंझुनू जिले में अलसीसर कस्बे के पास स्थित चंदवा गांव की 80 वर्षीय इलायची देवी के छह पुत्र हैं और एक पुत्री. तीन पुत्र जीताराम, जगदीश व पालाराम और पुत्री सुरसी देवी जन्म से इस तरह की बीमारी से पीड़ित हैं कि वे दिन में नहीं देख सकते, लेकिन सूर्यास्त के बाद वे देख सकते हैं.

जीताराम की पत्नी शारदा, उसकी छह पुत्रियां और एक पुत्र भी दिन के अंधेपन से पीड़ित हैं. जगदीश की पत्नी रैना और पुत्र राहुल तथा सुरसी देवी की दोनों पुत्रियां भी अंधी हैं.

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जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में नेत्र रोग विभाग में प्रोफेसर किशोर कुमार ने कहा, 'मैं इस परिवार के सदस्यों से मिल चुका हूं. जिस समस्या से वे ग्रस्त हैं, उसे कोन डिस्ट्रोफी कहते हैं. वे दिन के उजाले में देख पाने में अक्षम हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद वे देख सकते हैं. इस परिवार में यह बीमारी आनुवांशिक है.'

किशोर कुमार ने स्पष्ट किया कि इस बीमारी को चमकीले प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता और दृष्टि हानि के रूप में समझा जा सकता है. कुछ मामलों में रंगीन दृष्टि कमजोर होती है. इस बीमारी से पीड़ित मरीज सूर्यास्त के बाद बेहतर देख सकते हैं.

कुमार ने कहा, 'यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है. नेत्र चिकित्सक के रूप में अपने 25 वर्षों के अनुभव में मुझे इस परिवार के अलावा इस बीमारी से ग्रस्त दो-तीन मरीज ही मिले हैं.'

अपाहिज और आजीविका कमा पाने में अक्षम इस परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन है. गांव में कोई अंध विद्यालय नहीं है, लिहाजा बच्चे घर पर रहते हैं. जीताराम ने कहा कि जीवन एक संघर्ष बन गया है, और स्थिति असहनीय हो गई है.

जीताराम ने कहा, 'लोग हमें अशुभ मानते हैं. वे हमारा मजाक उड़ाते हैं. मेरे परिवार को कोई भी सुबह देखना नहीं चाहता. गांव के लोग हमारे घर की तरफ से निकलने से बचते हैं, क्योंकि वे हमें अभिशप्त समझते हैं और यह अभिशाप उन्हें भी लग जाएगा.'

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इसके कारण यह परिवार सुबह लगभग 10 बजे तक घर के अंदर रहता है. जीताराम ने कहा, 'हम अपने गांववासियों के लिए कोई असुविधा नहीं पैदा करना चाहते. यदि वे सुबह हमें नहीं देखना चाहते, तो ऐसा ही सही.'

जीताराम ने कहा, चूंकि वह और उसके दो भाई दिन में साफ नहीं देख सकते, लिहाजा उन्होंने गांव में और पास के एक कस्बे में जूते पॉलिश करके अपनी रोटी कमाने की कोशिश की है. लेकिन वे जो कमाते हैं, वह नाममात्र का होता है, और उससे इतने बड़े परिवार का पोषण हो पाना कठिन है.

जीताराम ने कहा, 'इस तरह की आमदनी से अच्छा जीवन असम्भव है. हम पूरी तरह टूट गए हैं.' उन्होंने कहा, 'स्थानीय चिकित्सक कहते हैं कि बीमारी आनुवांशिक है और ठीक हो पाना बहुत कठिन है. हम बड़े शहरों में विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श लेना चाहते हैं, लेकिन हम उसका खर्च वहन नहीं कर सकते.'

इस परिवार का कहना है कि उसने आर्थिक मदद के लिए जिला प्रशासन और स्थानीय राजनीतिज्ञों से कई बार सम्पर्क किया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.

जीताराम ने कहा, 'हमें इस जीवन संघर्ष से बाहर निकालने के लिए कोई भी सामने नहीं आया है. कुछ सामाजिक संगठनों ने कुछ वर्ष पहले मेरी बेटी की शादी में मदद की थी, लेकिन सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिली है.'

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