आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ऐसी नींव रखी जिस पर भारत का भविष्य निर्मित हुआ. आजादी के बाद अपने विचारों और नीतियों की वजह से वह भारत के युगद्रष्टा बन गये.
कश्मीरी मूल के ब्राह्मण मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी के घर पर जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 में इलाहाबाद में हुआ था. भारत और ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त करने वाले नेहरू ने भारत के आजाद होने के बाद शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीतियों और औद्योगीकरण सहित कई क्षेत्रों में एक नयी क्रांति का सूत्रपात किया जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई है.
विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने बताया ‘हमारी विदेश नीति का मूलाधार आज भी नेहरू का दिया हुआ ही है. समय के साथ विदेश नीति में बदलाव तो होता रहता है लेकिन बुनियादी अवधारणा में आज भी कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है.’ भारत के आजाद होने से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने 1925 में विदेशी मामलों की एक इकाई बनायी जिसके अध्यक्ष पंडित नेहरू थे. उसी समय उन्होंने औपनिवेशिक देशों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास शुरू कर दिया जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहे.
आगा ने बताया ‘‘आजादी से पहले ही नेहरू ने यूरोप और कई देशों की यात्रा की थी. उन्होंने कई औपनिवेशिक देशों के नेताओं से संपर्क स्थापित किया. यहां तक की औपनिवेशिक देशों की एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस भी आयोजित की गयी थी. यही वजह है कि आजादी के बाद हमें कई सारे राष्ट्रों से संबंध स्थापित करने में किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.’’
आजादी के समय की तत्कालीन परिस्थितियों को भांपते हुए नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया. दो ध्रुवीय शक्तिशाली गुटों के बीच संतुलन बनाने की उसी नीति पर भारत आज भी खड़ा है हालांकि आज दुनिया में एकमात्र महाशक्ति बची हुई है. गुटनिरपेक्षता को स्पष्ट करते हुए आगा कहते हैं कि इसका यह मतलब नहीं है कि भारत किसी खास देश से संबंध रखेगा या अमुक देश से नहीं रखेगा. गुटनिरपेक्षता का मतलब यह है कि भारत किसी भी गुट की नीतियों का समर्थन नहीं करेगा और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बरकरार रखेगा.
नेहरू गांधी परिवार के करीबी एवं पूर्व कांग्रेसी नेता अरूण नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री काल को ‘स्वर्ण युग’ बताया. उन्होंने कहा कि वे एक ऐसे युगद्रष्टा थे जिन्होंने आने वाले समय की पदचाप को सुना और शायद यही वजह है कि उन्होंने न केवल आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की बल्कि देश में उद्योग धंधों की भी शुरूआत की.
नेहरू इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे और वे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे. बच्चों में ‘चाचा नेहरू’ के नाम से मशहूर पंडित नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
नेहरू के साथ बिताये गये लम्हों को याद करते हुए अरूण नेहरू ने कहा कि आज भी उनके जेहन में पंडित जी की यादें मौजूद हैं. ‘मेरी दादी उमा नेहरू सांसद हुआ करती थी और हम लोग सप्ताह में या दस-पन्द्रह दिनों के अंतराल पर उनके तीन मूर्ति निवास पर खाना खाने के लिए जाया करते थे. खाने में उन्हें दलिया बहुत पसंद था.
इस दौरान वह नौकरों को वहां नहीं रखते थे और हम लोग खुद अपने हाथों से परोस कर खाना खाते थे. ’’
उन्होंने बताया ‘पंडित नेहरू एक सरल और सादगी पसंद व्यक्ति थे तथा समय मिलने पर वह हमारे यहां आते थे.’ पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन 27 मई 1964 को हुआ था.