आंध्र प्रदेश में 18 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनावों में जबरदस्त जीत दर्ज कर 15 महीने पुरानी वाईएसआर कांग्रेस ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है और इसने राज्य में ‘जगन लहर’ पैदा की है.
लहर भी ऐसी कि हर कोई उनकी तुलना एनटी रामा राव से करने लगा है जिन्होंने 1982 में तेलगू देशम पार्टी का गठन कर राज्य में फिर से राजनीति का इतिहास लिखा था. हालांकि, एनटीआर और जगन के बीच समानता देखना तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि दोनों हर पहलू से एक-दूसरे से भिन्न स्तंभ हैं.
वाईएस जगनमोहन रेड्डी को आंध्र प्रदेश में इतना लोकप्रिय बना देने का एक कारण यह है कि उन्होंने सोनिया गांधी की खुलेआम अवहेलना की. वह उनके (सोनिया) प्रति वहां तक वफादार रहे जहां तक उन्हें यह लगा कि इससे उनके ‘आत्म सम्मान’ को ठेस नहीं पहुंचती है. जब भी कांग्रेस प्रमुख ने कोई दखल दिया तो उन्होंने इसे अपने ‘निजी मामले’ में दखल माना और इसका विरोध किया.
जगन के नाटकीय उभार से राज्य में कांग्रेस का पतन हुआ है. वर्ष 2004 में अगर कांग्रेस आंध्र प्रदेश में सत्ता में आने में सफल रही तो यह एकमात्र केवल राजशेखर रेड्डी की वजह से था और इसी शख्स की वजह से कांग्रेस 2009 में लगातार दूसरी बार सत्ता में आ पाई. कांग्रेस कभी भी इससे इनकार नहीं कर पाई.
यह भी एक दूसरा कारण है जिसने जगन के राजनीतिक उभार में मदद की जो उनके दिवंगत पिता की विरासत पर आधारित है. जगन के उभार में मदद करने वाला तीसरा कारक ‘विश्वसनीयता के संकट’ का था जिसमें तेलगू देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू अटक गए. वाईएसआर के निधन के बाद कांग्रेस में नेतृत्व का खालीपन 39 वर्षीय नेता के लिए सही साबित हुआ जिनका स्पष्ट लक्ष्य मुख्यमंत्री पद की कुर्सी है.
जगन आम लोगों के साथ संवाद बनाने में सफल रहे. यह संवाद मुख्य रूप से उस साख पर आधारित था जो उनके दिवंगत पिता ने अपने विभिन्न ‘कल्याणकारी’ कार्यक्रमों के जरिये बनायी थी. उन्होंने केवल लोगों को यह याद दिलाया कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके पिता ने उनके लिए क्या किया और उनसे वादा किया कि वह उसी को आगे भी जारी रखेंगे.
पर्यवेक्षकों का कहना है, ‘लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया क्योंकि उनका मानना था कि जगन भी वह सभी चीजें लागू करने के लिए उतने ही तत्पर रहेंगे जितना उनके पिता थे.’ उन्हें नजदीक से जानने वालों का कहना है कि निश्चित रूप से उनमें भी कुछ नकारात्मक चीजें हैं. उनका मानना है, ‘वह अपने पिता के बिल्कुल ही विपरीत हैं जिनमें कि काफी दया भाव था.’
इसके बावजूद जगन के लिए अपने लक्ष्य (मुख्यमंत्री की कुर्सी) तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा तेलंगाना मुद्दा है. वह निश्चित रूप से आंध्र रायलसीमा क्षेत्रों में एक बड़ी ताकत हैं लेकिन तेलंगाना में नहीं. जब तक वाईएसआर कांग्रेस अलग राज्य के मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाती हो सकता है कि जगन तेलंगाना क्षेत्र में पैठ नहीं बना पायें और इससे उनकी संभावना को धक्का लग सकता है. 294 सदस्यीय आंध्र प्रदेश विधानसभा में तेलंगाना क्षेत्र की 119 सीटें हैं और इसलिए जगन का राजनीतिक भाग्य अंतत: अलग राज्य की मांग पर टिका हुआ है.