म्यांमार की जुंता सरकार हिरासत में चल रही विपक्षी नेता आंग सान सू च्यी को शुक्रवार को रिहा कर दिया गया. सू च्यी पिछले दो दशक में ज्यादातर समय नजरबंद थीं.
इससे पहले एक अधिकारी ने सैन्य शासित म्यांमार में विवादास्पद चुनाव के बाद नाम नहीं बताये जाने की शर्त पर कहा, ‘प्रशासन उन्हें रिहा कर देगा. यह निश्चित है.’
कौन है सू
आंग सान सू की म्यांमार (बर्मा) में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही प्रमुख राजनेता हैं. 19 जून 1945 को रंगून में जन्मी आंग सान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई प्रधानमंत्री, प्रमुख विपक्षी नेता और म्यांमार की नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी की नेता हैं. आंग सान को 1990 में राफ्तो पुरस्कार व विचारों की स्वतंत्रता के लिए सखारोव पुरस्कार से और 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया है.
1992 में इन्हें अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य के लिए भारत सरकार द्वारा जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लोकतंत्र के लिए आंग सान के संघर्ष का प्रतीक बर्मा में पिछले 20 वर्ष में कैद में बिताए गए 14 साल गवाह हैं. बर्मा की सैनिक सरकार ने उन्हें पिछले कई वर्षों से घर पर नजरबंद रखा हुआ है.
आंग सान सू के पिता आंग सान ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी और युनाईटेड किंगडम से 1947 में बर्मा की स्वतंत्रता पर बातचीत की थी. इसी साल उनके प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी हत्या कर दी. वह अपनी माँ, खिन कई और दो भाइयों आंग सान लिन और आंग सान ऊ के साथ रंगून में बड़ी हुई.
नई बर्मी सरकार के गठन के बाद सू की की माँ खिन कई एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में प्रसिद्ध हासिल की. उन्हें 1960 में भारत और नेपाल के बर्मा का राजदूत नियुक्त किया गया. अपनी मां के साथ रह रही आंग सान सू की ने लेडी श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली से 1964 में राजनीति में स्नातक हुईं. सू की ने अपनी पढ़ाई सेंट ह्यूग कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में जारी रखते हुए दार्शनिक, राजनीति और अर्थशास्त्र में 1969 में डिग्री हासिल की. स्नातक करने के बाद वह न्यूयॉर्क शहर में परिवार के एक दोस्त के साथ रहते हुए संयुक्त राष्ट्र में तीन साल के लिए काम किया.{mospagebreak}
1972 में आंग सान सू की ने तिब्बती संस्कृति के एक विद्वान और भूटान में रह रहे डॉ. माइकल ऐरिस से शादी की। अगले साल लंदन में उन्होंने अपने पहले बेटे, अलेक्जेंडर ऐरिस, को जन्म दिया. उनका दूसरा बेटा किम 1977 में पैदा हुआ. इस के बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ओरिएंटल और अफ्रीकन स्टडीज में से 1985 में पीएच.डी. हासिल की.
1988 में सू की बर्मा अपनी बीमार माँ की सेवाश्रु के लिए लौट आईं, लेकिन बाद में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया. 1995 में क्रिसमस के दौरान माइकल की बर्मा में सू की आखिरी मुलाकात साबित हुई क्योंकि इसके बाद बर्मा सरकार ने माइकल को प्रवेश के लिए वीजा देने से इंकार कर दिया. 1997 में माइकल को प्रोस्टेट कैंसर होना पाया गया, जिसका बाद में उपचार किया गया.
इसके बाद अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ और पोप जान पाल द्वितीय द्वारा अपील किए जाने के बावजूद बर्मी सरकार ने उन्हें वीजा देने से यह कहकर इंकार कर दिया की उनके देश में उनके इलाज के लिए माकूल सुविधाएं नहीं हैं. इसके एवज में सू की को देश छोड़ने की इजाजत दे दी गई, लेकिन सू की ने देश में पुनः प्रवेश पर पाबंदी लगाए जाने की आशंका के मद्देनजर बर्मा छोड़कर नहीं गईं.
माइकल का उनके 53 वें जन्मदिन पर देहांत हो गया. 1989 में अपनी पत्नी की नजरबंदी के बाद से माइकल उनसे केवल पाँच बार मिले. सू की के बच्चे आज अपनी मां से अलग ब्रिटेन में रहते हैं. 2 मई 2008 को चक्रवात नरगिस के बर्मा में आए कहर की वजह से सू की का घर जीर्णशीर्ण हालात में है, यहां तक रात में उन्हें बिजली के अभाव में मोमबत्ती जलाकर रहना पड़ रहा है. उनके घर की मरम्मत के लिए अगस्त 2009 में बर्मी सरकार ने घोषणा की.