कहते हैं, बाघ के नाखून या दांत रखने से घर पर बुरा साया नहीं पड़ता. शेर के नाखून का ताबीज बनाकर गले में पहनने से डर नहीं लगता. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी खाल और हड्डियों की मुंह मांगी कीमत मिलती है. बेशक कारण कोई भी हो सकता है. लेकिन इतना साफ है कि ये वजहें बाघ को शिकारियों के निशाने पर बनाए रखने के लिए काफी हैं.
इसी के मद्देनजर देश भर में बाघों को बचाने के लिए जहां बड़े स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छुरिया इलाके में वन अधिकारियों के सामने एक बाघिन को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया. इस घटना को ऐसे समय में अंजाम दिया गया जब पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों के सफाए की बात सामने आ रही है. अहम यह कि समस्या का समाधान तलाशने के बजाए सभी विभाग असफलता का ठीकरा एक-दूसरे के सिर फोड़ने में व्यस्त हैं.
बाघों की इस दुर्दशा की दास्तान में एक नया वाकया 24 सितंबर को छत्तीसगढ़ के छुरिया इलाके से जुड़ा जहां तकरीबन डेढ़ माह पहले महाराष्ट्र से एक बाघिन भटक कर आ गई थी. शनिवार तड़के बखरुटोला के एक ग्रामीण ने बाघिन को देखा तो उसने और लोगों को बता दिया. देखते-देखते आसपास के गांवों से 5,000 से अधिक लोग जमा हो गए.
लाठी, डंडे, फरसा लिए लोगों ने बाघिन को एक खेत में घेर लिया. सुबह आठ बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक ग्रामीण बाघिन को इधर-से-उधर दौड़ाते रहे. बताया जाता है कि शेरनी को ग्रामीणों द्वारा घेरने की जानकारी सुबह आठ बजे वन विभाग को दे दी गई थी. बचाव दल पांच घंटे बाद जाल और ट्रेंक्यूलाइजर लेकर दोपहर 1 बजे पहुंचा. टीम के पास वन्यजीवों के प्रशिक्षित डॉक्टर भी नहीं थे.
पशुपालन विभाग से डेपुटेशन पर आए डॉक्टर ने बेहोश करने वाली ट्रेंक्यूलाइजर गन को भी दागने नहीं दिया. डॉक्टर का कहना था कि पहले जाल में फंसाओ तब ट्रेंक्यूलाइजर का उपयोग किया जाएगा जबकि, वन्य प्राणी विशेषज्ञ कहते हैं कि शेर जैसे जानवर को पकड़ने के लिए सबसे पहले इसी का इस्तेमाल करना चाहिए.
बाघिन जैसे ही जाल में फंसी, लाठी, डंडे और पत्थर लिए सैकड़ों लोग उस पर टूट पड़े. लोगों के गुस्से के आगे वन और पुलिस का अमला कुछ नहीं कर पाया. बाघिन की कुछ ही देर में मौत हो गई. किसी ने उसकी पूंछ काट डाली तो कोई उसके दांत और मूंछें उखाड़ ले गया. बाघिन को मारने के बाद ग्रामीणों ने जुलूस भी निकाला.
ग्रामीणों को संदेह था कि बाघिन ने एक महिला को शिकार बनाने के साथ-साथ एक दर्जन से ज्यादा मवेशियों को मारा था. घटना के बाद वन विभाग अब पुलिस के सिर ठीकरा फोड़ रहा है. वन मंत्री विक्रम उसेंडी कहते हैं, ''भीड़ के आगे वन विभाग का अमला बेबस था. पुलिस से मदद मिलती तो आक्रोशित ग्रामीणों को नियंत्रित किया जा सकता था.''
जबकि गृह मंत्री ननकीराम कंवर कहते हैं, ''शेर पकड़ना वन विभाग का काम है. इस मामले में पुलिस कहां से आ गई.'' उधर, राजनांदगांव के एस.पी. बद्रीनारायण मीणा कहते हैं, ''वन विभाग ने भीड़ के बारे में स्पष्ट सूचना नहीं दी. स्थानीय थाने के आधे जवान मौके पर थे. नक्सली इलाका होने की वजह से पूरा थाना खाली नहीं किया जा सकता था. फिर भी वन अधिकारी और बल मांगते तो उसका इंतजाम किया जाता.''
हैरत की बात यह है कि राज्य में पिछले चार साल में टाइगर प्रोजेक्ट के तहत केंद्र से 32 करोड़ रु. मिले हैं. राज्य का 30 करोड़ रु. का बजट रहा, सो अलग. इसके बाद भी वन्यजीव अधिकारी सोते रहे. डेढ़ माह से मीडिया में आ रही खबरों पर भी किसी ने सुध नहीं ली. राज्य वन्य प्राणी बोर्ड की सदस्य मीतू गुप्ता कहती हैं, ''17 सितंबर को नेशलन टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी दिल्ली के डिप्टी डायरेक्टर एस.पी. यादव को ई-मेल पर पूरी जानकारी दी गई थी.'' हालांकि इंडिया टुडे से फोन पर बातचीत में यादव ने बताया कि इस बारे में रिपोर्ट मांगी गई थी, मगर अब तक उसका कोई जवाब नहीं मिला. यह गंभीर घटना है. घटना की जांच के लिए एनटीसीए की टीम भेजी जा रही है. हालांकि, वन विभाग राज्य में 22 से 25 बाघ होने का दावा करता है. मगर वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है, बाघों की संख्या इसकी भी आधी होगी.
यही नहीं, रायपुर जिले के ही बारनवापारा अभयारण्य में शिकारियों ने करंट लगाकर एक तेंदुए को मार डाला. 27 सितंबर को लकड़ी बीनने गई एक महिला ने तेंदुए के शव को देखा और वन विभाग के कर्मचारियों को इसकी जानकारी दी. शिकारियों ने तेंदुए के दांत, मूंछ और नाखून निकाल लिए थे. पोस्टमार्टम में पता चला, तेंदुए को दो दिन पहले मारा गया था.
उधर, पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश पर नजर डालें तो यहां के टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय पशु बाघ के लिए अब पहले जैसे सुरक्षित आशियाने नहीं रहे. खासतौर से पन्ना टाइगर रिजर्व गायब हुए बाघों के चलते देश का दूसरा सरिस्का बनने की ओर अग्रसर है. पन्ना टाइगर रिजर्व के निदेशक श्रीनिवास मूर्ति ने राज्य सरकार के वन विभाग को जनवरी 2011 में एक रिपोर्ट भेजी थी. उनके मुताबिक, यहां 20 वर्ष की अवधि में (1990 से 2010) तक 19 बाघों का शिकार हुआ था.
इसमें से छह बाघ 2005 में मारे गए थे. यह शिकार पन्ना टाइगर रिजर्व की चंद्रनगर रेंज में देखने को मिला, लेकिन वन विभाग के अफसरों ने किसी प्रकार की कार्रवाई में दिलचस्पी नहीं दिखाई, बल्कि वहां पर मौजूद कर्मचारियों ने सबूत मिटाने का काम किया. निदेशक मूर्ति की रिपोर्ट बताती है कि शिकारी जातियों, बहेलिया और पारदी समुदाय के लोग अब भी शिकार में लिप्त हैं और ये लोग बंदूक से लेकर वन्य प्राणियों को जहर देने, फंदा बनाकर और शिकंजे में फांसने का काम कर रहे हैं.
दूसरी ओर, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी ) डॉ. एच. एस. पाबला ने भी इसी अवधि में एक रिपोर्ट भेजी थी. इस रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि टाइगर रिजर्व में नर बाघों की संख्या ज्यादा होने और उनमें वर्चस्व की लड़ाई होने के चलते बाघ मारे गए हैं. डा. पाबला मूर्ति की रिपोर्ट को गलत बताते हुए कहते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के निदेशक मूर्ति ने 20 वर्ष पुराने मामलों को निकाला. उसमें उन्हें ऐसा लगा कि बाघों की हत्या हुई है. कुछ शिकार के मामले जरूर सामने आए हैं, लेकिन उसमें बाघ की नहीं, बल्कि भालू की हड्डियां बरामद हुई थीं.
अगर ताजा आंकड़ों को देखें तो प्रदेश के टाइगर रिजर्व से 49 बाघ गायब हो चुके हैं. इसमें से सबसे ज्यादा नुकसान पन्ना टाइगर रिजर्व में हुआ है, जहां से सभी 35 बाघ गायब माने जा रहे हैं. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में हुआ था, जहां से बाघों की सारी आबादी ही गायब हो गई थी और पूरे मामले की सीबीआई जांच हुई, जिसमें यह तथ्य सामने आया कि शिकार के चलते बाघ गायब हुए.
डॉ. पाबला कुछ भी कहें, लेकिन पन्ना टाइगर रिजर्व में कुप्रबंधन के चलते ही बाघ गायब हुए. बाघों के गायब होने के बारे में कई एजेंसियों ने पहले भी चेतावनी दी थी. केंद्र सरकार ने एक विशेष जांच टीम बनाई और उसने भी यही कहा कि बाघ प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि शिकार के चलते गायब हुए हैं. इस रिपोर्ट से राज्य वन विभाग के अधिकारी संतुष्ट नहीं हैं और बाघों की मौत का कारण प्राकृतिक मानते आ रहे हैं. सभी तथ्यों के सामने आने के बाद भी राज्य का वन विभाग सीबीआइ से जांच कराने को तैयार नहीं है. पांच माह पहले तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जब पन्ना टाइगर रिजर्व का दौरा किया था तो उन्होंने भी सीबीआइ जांच नहीं कराने पर अफसोस जाहिर किया था. इस मामले में अब प्रयत्न संस्था द्वारा पहल की जा रही है और वह सीबीआइ जांच के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है.
उधर, वन विभाग पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है. कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से तीन मादा और एक नर बाघ को यहां लाया गया है. इससे यहां पर बाघ के चार शावकों सहित कुल दस बाघ होने का दावा किया जा रहा है. लेकिन राज्य सरकार के पन्ना को बफर जोन अधिसूचित करने में देरी करने से बाघों के अस्तित्व को खतरा बना ही हुआ है. कान्हा टाइगर रिजर्व में भी बाघों की संख्या 89 से 64 पर आ गई है. राज्य के वन विभाग ने इन आंकड़ों पर संदेह जताया और फिर से गणना कराई है. ऐसे में सवाल वहीं का वहीं है कि आखिर पन्ना के बाघ कहां गायब हो गए और फिर से इन बाघों को यहां बसाया जा रहा है, लेकिन उन्हें बचाने के पुख्ता बंदोबस्त क्यों नहीं किए जा रहे हैं. अगर यही ढुल-मुल रवैया रहा तो इसमें कोई शुबहा नहीं कि नए बसाए गए बाघ भी जल्द गायब हो जाएं.