अधेड़ उम्र की भंवरीदेवी एक चबूतरे पर कुछ प्रतिमाओं के आगे पादुकाएं यानी खड़ाऊं चढ़ा रही हैं. मनोकामना पूरी होने की उत्सुकता लिए भंवरीदेवी बताती हैं, ''मेरी रिश्तेदारी में उनके काफी समय से पुत्र नहीं हुआ. हर तरह का डॉक्टरी इलाज लेने के बाद वे यहां आए. और नवें महीने में बेटा हो गया.''
यहां चबूतरे पर रखी इन प्रतिमाओं के आगे पहले से भी दर्जनों पादुकाओं का ढेर लगा हुआ है. भंवरी की मानें तो परिवार पर किसी तरह का संकट या परेशानी आने पर सब गांव वाले यहीं आते हैं क्योंकि यह चबूतरा 'बवल का धणी' का है, जो इस गांव के प्रथम देव हैं. इनका प्रमुख चढ़ावा पादुकाएं हैं. इसी से वे खुश होते हैं.
नागौर जिले के डेगाना से सटे तामड़ोली गांव में बने इस 'बवल का धणी' पर आसपास के 10-15 गांवों का पगफव्रा (आना-जाना) है. इनके लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी होने या शादी-विवाह या अन्य अवसरों पर यहां आते हैं. और आस्था के साथ पादुकाएं चढ़ाते हैं. तामड़ोली के लोग यहां साल में दो बार जगराता और प्रसादी भी करते हैं, जिससे बवल के धणी की गांव पर कृपा दृष्टि बनी रहे और गांव अकाल, बीमारी या महामारी की चपेट में न आए. गांव वाले उत्सुकता के साथ बताते है कि तामड़ोली पर कभी भी अकाल या महामारी की मार नहीं पड़ी.
कैसी-कैसी मान्यताएं
मोटरसाइकिल वाले महाराज! जोधपुर-पाली के बीचोबीच ओमजी बना का स्थान है. मान्यता है कि यहां रखी बुलेट मोटरसाइकिल को धागा बांधने से मन्नतें पूरी होती हैं.
मनौती पूरी करने वाली ऐसी किसी भी मान्यता के बारे में आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर लेना चाहिए. विवेक का प्रयोग जरूरी है
खड़ाऊं का चढ़ावाः नागौर जिले के डेगाना से सटे तामड़ोली गांव में बने 'बवल का धणी' पर आसपास के 10-15 गांवों के लोग मन्नत पूरी होने पर पादुकाएं चढ़ाते हैं.
पत्थरों का अर्पणः डूंगरपुर जिले के लक्ष्मणपुरा गांव में पार्या देव के थान पर लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर पांच पत्थर चढ़ाते हैं. चढ़ावे के पत्थरों से वहां छोड़ा पहाड़ बन गया है.
ग्रामीणों की गहरी आस्था से जुड़े उनके प्रथम देव का इतिहास भी कम रोचक नहीं है. महाभारत काल की एक घटना कथित तौर पर इस जगह से जुड़ी हुई है. महाभारत काल में अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित आखेट पर निकले हुए थे. इसी दौरान उनकी नजर एक ऋषि पर पड़ी जो तपस्या कर रहे थे. लेकिन ऋषि के राजा का अभिवादन न करने पर राजा परीक्षित नाराज हो गए और ऋषि के गले मे सर्प डाल दिया.
नाराज ऋषि ने राजा को सात दिन बाद मरने का शाप दे दिया. तमाम उपाय करने के बाद भी राजा की 7 दिन बाद सर्पदंश से मौत हो गई. परीक्षित के बेटे जनमेजय ने पिता की मौत का बदला लेने की सोची और नाग यज्ञ करवाया. आसमान से आकर सर्प अग्नि कुंड के हवाले होने लगे. आग की इन लपटों से जनमेजय को कोढ़ की बीमारी हो गई. ऋषियों-मुनियों के बताने पर वे कोढ़ के इलाज के लिए मारवाड़ क्षेत्र की अरावली पहाड़ी की तरफ निकल गए, जहां उन्हें सूर्यास्त से पहले पहुंचना था. गलती से वे दूसरी पहाड़ी के पास पहुंच गए.
यहां उनकी घोड़ी रेवती के बीमार हो जाने से उसकी मौत हो गई. इस घोड़ी के नाम से इस गांव का नाम रेवत पड़ा. जहां पूरे देश की टंगस्टन की एकमात्र खान है. जनमेजय को सूर्यास्त से पहले उस पहाड़ी पर पहुंचना था. यहां से जनमेजय पैदल गए. और तामड़ोली गांव में बबूल के एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम किया. और थोड़े विश्राम के बाद वे अपनी पादुकाएं यहीं खोलकर नंगे पांव रवाना हो गए.
गांव के पूर्व सरपंच भंवरसिंह बताते हैं, ''जिस स्थान को आज भी हम बवल का धणी के नाम से पूजते हैं, ऐसी मान्यता है कि जनमेजय ने अपनी पादुकाएं वहीं खोली थीं.'' तामड़ोली के पास ही अच्छोजाई गांव की एक अरावली पहाड़ी पर जनमेजय पहुंच गए और मान्यता है कि वहां का पानी शरीर पर लगाने से उनकी कोढ़ की बीमारी भी ठीक हो गई. इस पहाड़ी को आज भी कोढ्या डूंगरी के नाम से जाना जाता है. ग्रामीणों का मानना है कि बरसात के समय इस पहाड़ी पर बने झ्रने के तले नहाने से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं क्योंकि इस पहाड़ी मे कई तरह की धातुएं हैं.
वर्षों पहले बने चबूतरे के आज भी मंदिर में तब्दील न होने के पीछे गांव के उपसरपंच गणेश मीणा दलील देते हैं, ''क्योंकि मान्यता है कि यहां निर्माण कार्य पूरा होने से बवल के धणी नाराज हो जाएंगे और गांव महामारी की चपेट में आ जाएगा. पहले एक बार पत्थर डलवाकर गांव वालों ने कोशिश की तो पूरे गांव मे घर-घर बीमारी फैल गई.
भंवर सिंह बताते हैं, ''गांव में पक्के मकान बनाने के लिए रेवत की शूंगरी से पत्थर नहीं ले सकते. यहां महाराज की घोड़ी रेवती की मृत्यु हुई थी.'' गांव में जरूरत पड़ने पर लोग दूर स्थित पहाड़ी से ही पत्थर लाते हैं. खैर जो भी हो, आज मनोकामनाएं पूरी होने के बाद तामड़ोली और आसपास के गांवों की महिलाएं बड़ी आस्था के साथ पादुकाएं चढ़ाती हैं.
वहीं प्रदेश के दक्षिणी जिले डूंगरपुर शहर से 6 किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्मणपुरा गांव में कुछ ऐसे ही देव और पुजारे है. यहां लोग पार्या देव पर आकर पांच पत्थर चढ़ाते हैं. फिर अपनी मनोकामना पूरी होने की अर्जी लगाते हैं. मनोकामना पूरी होने पर फिर एक बार मत्था टेकने आते हैं. लक्ष्मणपुरा सहित आसपास के कई गांवों के लोगों की इस स्थान से गहरी आस्था जुड़ी है. स्थान की प्राचीनता और इससे जुड़ी लोगों की आस्था प्रदेश में ही नहीं, गुजरात तक पहुंच गई.
यहां पार्या देव के प्रकट होने की दास्तान भी काफी रोचक है. ग्रामीणों की बातों पर जाएं तो तकरीबन 300 वर्ष पहले गांव के मान्य व्यक्ति मोगजी भाई अपनी बकाया रकम के बदले गुड़ बनाने का कड़ाहा लेने के लिए थाना गांव गए हुए थे. वहां उनको न तो रकम मिली और न कड़ाहा. तीन दिन तक भूखे-प्यासे रहते हुए जब वहां से मोगजी भाई पैदल लौट रहे थे तो लक्ष्मणपुरा गांव के पास उनकी मृत्यु हो गई. उस वक्त मृत्यु के समाचार कैसे मिले?
गांव के एक व्यक्ति को वो सपने में आए और अपनी लाश लक्ष्मणपुरा में पड़ी होने की बात कही. साथ ही कहा कि जिस जगह पर मेरी मौत हुई है, अगर कोई व्यक्ति वहां आकर पांच पत्थर चढ़ाएगा तो उसकी मनोकामना पूरी होगी. अगले दिन सुबह जब गांव वाले भागकर लक्ष्मणपुरा गए तो वहां मोगजीभाई की लाश मिली. आज उस स्थान पर छोटा मंदिर बना है, जिसके पीछे लोगों के चढ़ाए पत्थरों का पहाड़ बन गया. ढेर ज्यादा होने पर समय समय पर गांव वाले इनको हटाते भी हैं. केशुभाई बताते हैं, ''पांच पीढ़ियों से हम पार्या देव पर पत्थर चढ़ाते आ रहे है.'' युवा मयंक जोशी की मानें तो युवाओं का भी इस स्थान से काफी जुड़ाव है. ''सीधी-सी बात है, मनोकामना पूरी होती है तो कोई क्यों न आएगा?''
इधर मारवाड़ में जोधपुर-पाली के ठीक बीच रोहित पुलिस थाने के पास ओमजी बना भी रोजाना सैकड़ों लोगों को अपनी तरफ खींच लाते हैं. यहां एक पेड़ के नीचे रखी बुलेट मोटरसाइकिल पर लोग धागा और प्रसाद चढ़ाने आते हैं. यह स्थान इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि यहां प्रसाद, खिलौने और नाश्ते-पानी की दुकानें सज गईं.
जोधपुर-पाली मुख्य राजमार्ग पर होने से हर कोई दर्शन करने आसानी से आ जाता है. इस स्थान की दास्तान भी दिलचस्प है. लोगों की मानें तो एक दुर्घटना में मोटरसाइकिल सवार ओम बना की मृत्यु हो गई. पुलिस वाले मोटरसाइकिल को पास ही के थाने ले गए.
बताते हैं, रात के वक्त वह स्वतः दुर्घटनास्थल पर आ गई. ऐसा कई बार हुआ. तब पुलिस और गांव के लोगों ने मिलकर मोटरसाइकिल को एक पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया जो आज एक आस्था का केंद्र बन चुका है. यहां पर भी प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्र के लोग आते हैं. यहां आने वाली भीड़ देखकर लगता है कि उनके दुख-दर्द दूर होते ही होंगे. यहां एक बात जोड़ना जरूरी है कि लोक मान्यताओं पर आंख मूंदकर भरोसा न करें.