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खालिस्‍तान के नाम पर खून-खराबे की साजिश

भारत का सबसे वांछित खालिस्तानी आतंकवादी लाहौर के अल्लामा इकबाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सटे भव्य फौजी अंदाज वाले क्वार्टर में रहता है. वधवा सिंह बब्बर अपने इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) मेजबानों के साथ अपने स्वदेश के खिलाफ कत्लेआम की साजिशें रचने में मसरूफ रहता है.

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खालिस्तानी आतंकवादी
खालिस्तानी आतंकवादी

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भारत का सबसे वांछित खालिस्तानी आतंकवादी लाहौर के अल्लामा इकबाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सटे भव्य फौजी अंदाज वाले क्वार्टर में रहता है. वधवा सिंह बब्बर अपने इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) मेजबानों के साथ अपने स्वदेश के खिलाफ कत्लेआम की साजिशें रचने में मसरूफ रहता है.

शायद सबसे खतरनाक खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआइ) का सफव्द दाढ़ी वाला 65 साल का सरगना, अपने आइएसआइ नियंताओं के साथ, पंजाब में काफी पहले परास्त खालिस्तानी मुहिम को फिर से शुरू करने की कोशिश में जुटा है. उसके कामकाज के अड्डे के चारों तरफ की दीवारों पर न केवल पंजाब, बल्कि उससे सटे उत्तर भारत के दूसरे राज्‍यों के विस्तृत खंडों में नक्शे हैं, जो बीकेआइ का लड़ाई का विस्तारित मैदान हैं. शतरंज के प्यादों की तरह अलग-अलग रंगों की पिनें उन नक्शों पर इधर से उधर लगाई जाती हैं, जो संभावित लक्ष्यों को चिन्हित करती हैं.

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कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी गुटों के अपेक्षाकृत बिखराव के बाद अपने बड़े पड़ोसी को ''हजार घावों से मौत'' देने की पाकिस्तान की पुरानी महत्वाकांक्षा पैसे से संपन्न और हथियारों से अच्छी तरह लैस खालिस्तानी गुटों के जरिए आगे बढ़ाई जा रही है. 12 अक्तूबर को हरियाणा के अंबाला में आरडीएक्स की खेप के पकड़े जाने से उनके खतरनाक इरादों का सबूत मिलता है. हाल की घटनाओं ने पंजाब में आतंकवादी सिख गुटों में फिर से जान फूंक दी है.जरनैल सिंह भिंडरावाले

2007 में अलग हुए सच्चा सौदा पंथ के समर्थकों और सिखों के बीच हिंसक झ्ड़पें हुई थीं. और हाल में देविंदरपाल सिंह भुल्लर की दया याचिका खारिज किए जाने पर व्यापक स्तर पर नाराजगी जताई गई थी. भुल्लर को 1993 में युवा कांग्रेस के तत्कालीन प्रमुख मनिंदरजीत सिंह बिट्टा पर हमले की कोशिश में 9 लोगों के मारे जाने पर मौत की सजा सुनाई गई थी.

हाशिए पर पड़े कट्टरपंथी तीन चीजें हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. उसे ऑपरेशन ब्लूस्टार-जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकियों के सफाए के लिए भारतीय सेना का हमला-का बदला लेना है. वह इसके चार महीने बीतने पर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए 3,000 से ज्‍यादा सिखों के नरसंहार का बदला लेना चाहता है. उसके लिए 'इंसाफ' की एक ही परिभाषा हैः भारत से अलग होना. एक पूर्व आतंकवादी, जिसे पूरा विश्वास है कि उसकी ''मौत खालिस्तान में होगी'', कहता है, ''सिखों को गैरों के राज में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.''अंबाला में मिला आरडीएक्‍स का जखीरा

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पिछले चार साल के दौरान अकेले पंजाब में ही 'स्लीपर्स' सहित 170 आतंकी पकड़े जा चुके हैं. उनसे मिली जानकारी के बाद एक सब मशीनगन 20 एके-47 रायफल, कई छोटे हथियार, बख्तरभेदी गोलाबारूद के सैकड़ों राउंड, और आरडीएक्स, पीईटीएन (पेंटा इराइथ्रीटॉल टेट्रानाइट्रेट) और जेलिग्नाइट समेत चुनिंदा किस्म का 100 किग्रा से ज्‍यादा विस्फोटक जैसे कई तरह के असलहे और विस्फोटक बरमाद किए गए. सुंघाकर बेहोश करने वाला एनेस्थेटिक पदार्थ भी बरामद किया गया है, जिससे संकेत मिलता है कि अपहरण करना भी आतंकवाद के एजेंडा में फिर शामिल हो गया है.

12 अक्तूबर का आइएसआइ समर्थित खालिस्तानी हमला, जिसका इरादा दिल्ली को निशाना बनाना था, दो लैब्राडोर स्निफर कुत्तों-जेम्स और चिली-ने नाकाम कर दिया. कुत्तों ने अंबाला छावनी के बाहर एक मेटैलिक ब्लू इंडिका कार के दरवाजों के बाहर छिपा कर रखा गया 5.6 किलोग्राम आरडीएक्स सूंघ लिया था.खालिस्‍तान समर्थक

पंजाब की फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री के प्रमुख और बाद में राज्‍य पुलिस के एक सलाहकार की हैसियत से 500 से ज्‍यादा विस्फोट स्थलों की जांच कर चुके गोपालजी मिश्र कहते हैं, ''5 किग्रा आरडीएक्स से भरी एक इम्प्रोवाइज्‍ड एक्सप्लोजिव डिवाइस (आइईडी) आसपास के क्षेत्र के कई लोगों को तुरंत मार देगी और दर्जनों दूसरे लोगों को गंभीर रूप से घायल कर देगी.''

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नेपाल से किए गए एक संदिग्ध मोबाइल कॉल से सतर्क दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा  ने यह विस्फोटक बरामद किया. जम्मू सीमा से तस्करी कर पाकिस्तान से लाई गई यह जानलेवा खेप राजधानी से 200 किमी उत्तर में इस छावनी शहर तक बेखटके पहुंच चुकी थी.

पुलिस का मानना है कि दिल्ली में 'स्लीपर' गुर्गों में वितरित किए जाने के लिए भेजे गए इस आरडीएक्स का मकसद दीवाली के पहले दिल्ली के बाजारों में वैसा ही कहर बरपाने का था, जैसा इस शहर में छह साल पहले हुआ था, जिसमें 67 लोग मारे गए थे और 224 घायल हुए थे. 23 अक्तूबर को जगतार सिंह तारा ने, जो कभी बीकेआइ के शीर्ष कर्ताधर्ताओं में से एक हुआ करता था और 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त है, नाकाम कर दी गई आतंकी साजिश की जिम्मेदारी ली.

उसने पाकिस्तान से आए खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) के कागज पर छपे एक बयान में कहा कि आरडीएक्स की खेप इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के दंगों में कांग्रेस नेता सज्‍जन कुमार की कथित भूमिका के कारण उनको निशाना बनाने के लिए भेजी गई थी. पुलिस को उसकी इस साजिश से वास्ता न रखने वाले बेकसूर सिखों के पीछे ''शिकारी कुत्तों की तरह'' न पड़ने की चेतावनी देते हुए तारा ने कहा, ''केटीएफ सिख कौम के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक, सज्‍जन कुमार के कत्ल को अपना फर्ज समझ्ता है. (सज्‍जन कुमार पर) हमारा अगला हमला बहुत जल्द होगा.''

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दिल्ली पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, तारा के इस दावे की पुष्टि नहीं की जा सकती कि आरडीएक्स सज्‍जन कुमार को निशाना बनाने के लिए था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया, ''यह बीकेआइ के कारिंदों को उकसाने की आइएसआइ की एक चाल भी हो सकती है.''

तारा बीकेआइ के उन चार लोगों में से एक था, जो तीन स्तरों की दीवारों वाली चंडीगढ़ की अधिकतम सुरक्षा वाली बुड़ैल जेल से जनवरी, 2004 की जमा देने वाली रात को 104 फुट लंबी सुरंग से भाग गए थे, जो हाल के समय में जेल से फरार होने की सबसे नाटकीय घटना थी. बीकेआइ के शीर्ष सदस्य जगतार सिंह हवारा और बेअंत सिंह हत्याकांड में सह-अभियुक्त परमजीत भेवरा और साथ ही उनका लांगरी (रसोइया) देवी सिंह भी जेल से भाग गए थे.

हालांकि हवारा और भेवरा दोबारा पकड़ लिए गए लेकिन इन चारों में सबसे कम महत्वपूर्ण, तारा ने आइएसआइ से संपर्क साध लिया था. बाद में वह सीमा पार कर पाकिस्तान भाग गया. वह सात साल बाद नए खालिस्तानी हमले के मनहूस चेहरे के तौर पर फिर सामने आ गया है, जिसने भारत के सुरक्षा और खुफिया ताने-बाने को चिंता में डाल दिया है.
फटे में पैर डालना 

हाल की घटनाओं को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि 1990 के दशक के मध्य में मुख्यतः पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक कंवर पाल सिंह गिल के नेतृत्व में और सेना की मदद से की गई पुलिस की कुछ शानदार और अनथक कोशिशों से सिख अलगाववाद को कुचले जाने के बावजूद आइएसआइ ने कभी उसे पूरी तरह नहीं छोड़ा.

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आइएसआइ ने वधवा सिंह, खालिस्तानी कमांडो फोर्स (केसीएफ) के प्रमुख परमजीत पंजवाड़ और इसी तरह खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के रंजीत नीता और दल खालसा के संरक्षक गजिंदर हाइजैकर को संरक्षण देना जारी रखा हुआ है. ये सारे लोग पिछले दो दशकों से ज्‍यादा अरसे से लाहौर में आइएसआइ की पनाह में रह रहे हैं और विभिन्न इस्लामवादी गुटों और पश्चिम में खालिस्तानी समर्थकों से संपर्क गांठ रहे हैं.

हालांकि दिल्ली स्थित आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ अजय साहनी मानते हैं कि आम लोगों के जिस बुनियादी समर्थन ने मुहिम को 1984 के बाद दो दशकों से ज्‍यादा समय तक जीवित बनाए रखा था, उसके अभाव में इनके प्रयासों के सफल होने की संभावना नहीं है. वे मानते हैं कि आइएसआइ का उद्देश्य कभी-कभार आतंकी हमलों से भारत को 'अस्थिर' बनाए रखना है.

अन्य विश्लेषक भी इस विचार से सहमत हैं कि आइएसआइ के 'डर्टी ट्रिक्स' विभाग को पंजाब में सिख गड़बड़ी शुरू करने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ेगी. चंडीगढ़ के इंस्टीट्यूट फॉर डेवलेपमेंट ऐंड कम्युनिकेशन के प्रमोद कुमार कहते हैं, ''खालिस्तान के विचार का पंजाब में अब कोई जीवंत आधार नहीं बचा है...मैं नहीं मानता कि हाशिए पर पड़े गुटों, और उसमें भी सीमित उग्रता वालों को छोड़कर, वैचारिक तौर पर खालिस्तान के विचार के लौटने की कोई गुंजाइश है.''

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पंजाब में आतंकवाद के सबसे काले दिनों की याद आज भी पंजाबियों में सिहरन पैदा कर देती है. कई इलाकों में आतंकी समानांतर प्रशासन चलाते थे, टैक्स वसूलते थे, अवैध अदालतें लगाकर मनमाना 'न्याय' सुनाते थे. चंडीगढ़ के सेवानिवृत्त सरकारी डेंटिस्ट गुरप्रीत सिंह कहते हैं, ''खालिस्तान एक छोटे से वर्ग का ख्याली पुलाव है.'' 

लेकिन बीकेआइ के पूर्व आतंकवादी और अब अमृतसर स्थित एक सिख अलगाववादी गुट दल खालसा के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह विट्टू का का दावा है कि हालांकि 1995 के बाद से पंजाब में सशस्त्र संघर्ष कम होता जा रहा है लेकिन वह खत्म नहीं हुआ है.

कई खालिस्तानियों की तरह विट्टू आज भी आजाद सिख होमलैंड की धारणा के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन अब वे विरोध के लोकतांत्रिक तरीकों को तरजीह देते हैं, जिनमें धरने और सड़कों पर प्रदर्शन शामिल हैं.

यहां तक कि तरनतारन के पूर्व सांसद सिमरनजीत सिंह मान जैसे कट्टर अलगाववादी भी, जिनके शिरोमणि अकाली दल अमृतसर ने सितंबर में हुए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के चुनावों में खालिस्तान के नारे पर 16 प्रतिशत से ज्‍यादा वोट हासिल किए थे, कहते हैं कि सशस्त्र आंदोलन फिर शुरू होने की बात ''महज अटकलबाजी'' है. लेकिन मान यह भी कहते हैं कि दिल्ली और पंजाब की एक के बाद एक सरकारें हरियाणा से चंडीगढ़ और पंजाबीभाषी इलाकों का हस्तांतरण और नदियों के पानी का समान बंटवारे जैसे उन मसलों को सुलझाने में नाकाम रही हैं, जिनके कारण 1980 के दशक में सिख अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ था, और इस वजह से असंतोष बढ़ रहा है.
दहशतगर्दी के लिए एकजुट 

खुफिया अधिकारी कहते हैं कि नए किस्म के खालिस्तानी गुटों के मौजूदा नेतृत्व क्रम के बारे में अपेक्षाकृत काफी कम जानकारी उपलब्ध है. लेकिन वे इस बात से सहमत हैं कि तारा 'आइएसआइ के नए पसंदीदा' के तौर पर उभरा है और केटीएफ को पाकिस्तान जी खोलकर पैसे दे रहा है. एकमात्र उपलब्ध सूचना यह है कि इसे सबको जोड़कर रख सकने वाले एक आधार की तलाश कर रहे आतंकियों से समर्थन मिल रहा है. खालिस्तानी कमांडो फोर्स के प्रमुख परमजीत पंजवाड़ का पूर्व ड्राइवर रतनदीप सिंह और वधवा सिंह का रिश्तेदार रेशम सिंह हाल ही में इसमें शामिल हुए हैं. 

पंजाब में अलगाववादी आंदोलन के चरम दिनों में बम विस्फोटों और अपहरणों में माहिर एक दूसरा बड़ा आतंकवादी गुट खालिस्तान लिबरेशन फोर्स 40 वर्षीय हरमिंदर मिंटू के नेतृत्व में फिर सक्रिय हो गया है. मिंटू एक गुरुद्वारा प्रशासक था जो एक समय में गोवा के कुख्यात अवैध खनन गठजोड़ का हिस्सा हुआ करता था.

मिंटू 2007 में गुरमीत राम रहीम सिंह के नेतृत्व वाले विवादास्पद डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों और सिखों के बीच गुटीय संघर्षों के बाद सिख होमलैंड आंदोलन में शामिल हो गया था. सिख एक विज्ञापन को लेकर नाराज थे, जिसमें डेरा प्रमुख ने कथित तौर पर 10वें सिख गुरु गोविंद सिंह का स्वांग किया था.

2010 में लुधियाना में बम विस्फोट की नाकाम साजिश में अपनी कथित भागीदारी के बाद मिंटू मलेशिया भाग गया. लुधियाना में बम विस्फोटों के लिए उसने अपने खनन क्षेत्र के संपर्कों के जरिए लगभग 80 किग्रा विस्फोटक जेलिग्नाइट पंजाब पहुंचवाया था. पुलिस का कहना है कि दल खालसा का गजिंदर सिंह, जो ऑपरेशन ब्लूस्टार के कुछ ही समय बाद इंडियन एयरलाइंस का एक विमान अपहरण करके लाहौर ले गया था, लॉजिस्टिक मदद के लिए इस गुट का आइएसआइ संपर्क सूत्र है.

पंजाब के नवनियुक्त डीजीपी अनिल कौशिक कहते हैं कि पश्चिमी देशों में सहानुभूति रखने वालों की तरफ से वित्तीय मदद अब कम हो गई है, लेकिन वे बीकेआइ को एक 'दुर्जेय' खतरा मानते हैं. उनके अनुसार यह गुट हाल के वर्षों में हिंसा भड़काने की ज्‍यादातर घटनाओं के लिए जिम्मेदार रहा है. सबूतों पर गौर कीजिए-2004 में जेल से भागने के बाद लाहौर में वधवा सिंह के प्रतिनिधि के तौर पर तारा के सामने आने की घटना के साथ ही उत्तरी भारत में बीकेआइ की हरकतें तेज हो जाती हैं.

2005 में दिल्ली के दो सिनेमाघरों में विस्फोट होते हैं. दो साल बाद लुधियाना में फिल्म देखने जाने वालों को निशाना बनाकर एक बम विस्फोट होता है. और 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत (जो आरएसएस से निकटता से जुड़ा हुआ है) के प्रमुख रुल्दा सिंह की पटियाला में हत्या कर दी जाती है. इस गुट ने अमृतसर रेलवे स्टेशन के बाहर, हलवारा में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर और चंडीगढ़ से 100 किमी दूर नाभा में एक गैस बॉटलिंग संयंत्र में विस्फोट करने की कई बार कोशिश की.

सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि बीकेआइ और केटीएफ, दोनों इस समय आइएसआइ की देखरेख में पंजाब की सीमा से परे 'हमलावरों' की भर्ती कर रहे हैं. पिछले साल जुलाई में ब्रिटेन की वेस्ट मिडलैंड्स पुलिस ने ब्रिटेन के चार नागरिकों-परमजीत पम्मा, गुरशरण बीर सिंह, पियारा सिंह गिल और अमृतबीर सिंह को-तारा के निर्देश पर रुल्दा सिंह की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया.

उसके थोड़े ही समय बाद पंजाब पुलिस ने एक फ्रेंच नागरिक पाल सिंह और बीकेआइ के चार अन्य आतंकियों को 15 किलो आरडीएक्स और दो क्लाशनिकोव रायफल जालंधर लाते हुए पकड़ा. इनके गिरोह का छठा सदस्य नारायण चौड़ा, जिसने बुड़ैल जेल से भागने के लिए वाहन की व्यवस्था की थी, पुलिस को चकमा देने में सफल रहा और एक पूछताछ रिपोर्ट के मुताबिक वह अभी भी कम-से-कम 5 किलो आरडीएक्स के साथ फरार है.

वरिष्ठ अधिकारियों को बढ़ते सिख आतंकवाद के चिंताजनक लक्षण नजर आ रहे हैं. मसलन, दिसंबर 2006 में ब्रिटेन के वॉल्वरहैम्प्टन निवासी परमजीत ढाढी सहित केसीएफ के तीन आतंकियों को रोपड़ में 11 किलो आरडीएक्स के साथ पकड़ा गया.  पंजाब के पूर्व डीजीपी सर्भदीप सिंह विर्क कहते हैं कि पकड़ी गई खेप एक बड़ी खेप का हिस्सा थी, जिसमें कई तरह के छोटे हथियार भी थे, जो अमृतसर के पास सीमा पार से छह महीने पहले लाए गए थे.

विर्क कहते हैं, ''केसीएफ ने गलती यह कर दी कि उसने हमारे (पुलिस के) कुछ लोगों से, जो पाकिस्तान के ननकाना साहिब गए एक सिख जत्थे में शामिल थे, एक सीमावर्ती गांव में यह सामान छिपाने के लिए मदद मांगी.'' इसके बाद गिरफ्तारियों से पता चला कि अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार जसबीर सिंह रोड़े के दो नजदीकी रिश्तेदार और सिख रूढ़िवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले के एक भतीजे समेत कई स्थानीय लोग आतंकी घटनाओं में सक्रिय थे.

पंजाब पुलिस की काउंटर-इंटेलिजेंस शाखा के एस.एस. श्रीवास्तव के मुताबिक, अधिकतर सामग्री अमृतसर, गुरदासपुर और फिरोजपुर से और राजस्थान और जम्मू सीमाओं से पाकिस्तान से तस्करी करके लाई जाती है. मसलन, सिंध के थारपारकर, जहां आइएसआइ विशेष तौर पर सक्रिय है, से सटे बाड़मेर जिले में राजस्थान पुलिस ने सितंबर, 2009 में बीकेआइ काडर के लिए भेजी जा रही विस्फोटकों और छोटे हथियारों की एक खेप बीच में पकड़ी.
वर्चुअल दुनिया में तलाश 

स्वतंत्र सिख होमलैंड का आंदोलन बरकरार रखने के लिए 40 वेबसाइट और फेसबुक पर 200 ग्रुपों के साथ खालिस्तानी आतंकियों के लिए साइबर दुनिया रंगरूटों की भर्ती का मैदान साबित हो रहा है. खुफिया अधिकारी कहते हैं कि आतंकी गुट संभावित गुर्गों की तलाश में www.neverforget84.com जैसे वेबपोर्टल के चर्चा मंचों पर लगातार निगाह रखते हैं. युवा पीढ़ी के बीच बेहद लोकप्रिय यह साइट चित्रों, वीडियो और मारे गए आतंकियों के बारे में विस्तृत कहानियों का स्त्रोत हैं, जिनमें एक 'निर्दयी और दमनकारी' सरकार के खिलाफ उनकी 'बहादुरी' के कारनामों का गुणगान किया गया होता है.

एक अन्य लोकप्रिय वेबसाइट www.prisonerwelfare.com कैदियों के कल्याण के लिए एक सिख संगठन चलाती है. यह पंजीकृत ब्रिटिश धर्मार्थ संस्था आतंकवाद संबंधी आरोपों में भारतीय जेलों में बंद सिखों की मदद के लिए रकम इकट्ठा करती है. खुफिया ब्यूरो के सूत्रों का कहना है कि पंजाब के आतंकवादी तानेबाने को पुनर्जीवित करने की कोशिशों को उत्तरी अमेरिका, यूरोप, दक्षिण-पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया में सहानुभूति रखने वालों से अभी भी कुछ धन मिल जाता है. जहां इसमें से ज्‍यादातर पैसा हवाला नेटवर्क के जरिए हस्तांतरित किया जाता है, वहीं आतंकवाद विरोधी अधिकारी मानते हैं कि स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों को सालाना भेजे जाने वाले 120 करोड़ रु. में से भी एक हिस्सा आतंक का वित्त पोषण करने की दिशा में मुड़ जाता है.

इसकी वजह से पंजाब के चिंतित गृह विभाग ने हाल ही में रीएनजीओ (गैर-सरकारी संगठनों की समीक्षा) शुरू की, जिसमें स्वयंसेवी संगठनों को भेजी गई तमाम विदेशी रकम की विस्तार से जांच की गई. पंजाब के गृह सचिव डी.एस. बैंस कहते हैं, ''हम जानते हैं कि विदेश से धार्मिक संगठन, चैरिटीज और कुछ व्यक्ति पंजाब में स्थित हाशिए पर पड़े गुटों को भारी-भरकम रकम भेजते आ रहे हैं.''

फरवरी, 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले ''तमाम जाने-माने लक्ष्यों को मुश्किल बनाने'' के लिए पुलिस रात-दिन एक करके उनके इर्दगिर्द सुरक्षा का घेरा सख्त कर रही है. पूर्व डीजीपी गिल और अतिरिक्त डीजीपी सुमेध सैनी को-जो दोनों ही पंजाब का आतंकवाद समाप्त करने में अग्रिम मोर्चे पर रहे थे-सचल इलेक्ट्रॉनिक जैमर दिए गए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के काफिले को आगामी चुनाव अभियान के दौरान ऐसी ही सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने का प्रस्ताव है.

यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि हालात 1980 और 1990 के दशकों जैसे पहले ही हो चुके हैं, लेकिन आइएसआइ का भारत प्रकोष्ठ खुद को मुबारकबाद दे सकता है. उसने एक लगभग भुला दिए गए ताबूत का ढक्कन खोल दिया है और खालिस्तान के खून पीने वाले चमगादड़ को फिर जीवित कर दिया है.

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