चीन के सबसे बड़े रेगिस्तान में 1,500 वर्ष पुराने एक बौद्ध मंदिर के खण्डहर का पता चलने के बाद इतिहासकारों को इस विषय पर अध्ययन के लिए मूल्यवान सामग्री उपलब्ध हो गई है कि बौद्ध धर्म का चीन में विस्तार भारत से हुआ था.
खबरों के अनुसार मंदिर के मुख्य कक्ष की संरचना दुर्लभ है, जो लगभग तीन चौकोर गलियारों और एक विशाल बौद्ध प्रतिमा पर आधारित है. उत्खनन परियोजना के प्रमुख पुरातत्वविज्ञानी, वू सिन्हुआ ने कहा, 'इस इलाके में पुरातत्वविद 20वीं सदी में जब से काम करने आए हैं, तकलीमाकन रेगिस्तान में अपने तरह का यह सबसे बड़ा कक्ष पाया गया है.'
अध्येताओं के लिए इस विषय पर अध्ययन करने का यह सबसे अच्छा बौद्ध स्थल है कि यह धर्म भारत से चीन कैसे पहुंचा, और चीन में इसके प्रारम्भिक विकास की क्या स्थिति थी.
वू, चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के जिनजियांग पुरातात्विक दल का नेतृत्व भी करते हैं. उन्होंने कहा कि चीन के जिनजियांग उइगर क्षेत्र में दो महीने के कठिन परिश्रम के बाद इस मुद्दे का खुलासा हो सकता है.
यह खण्डहर तारिम बेसिन में स्थित तकलीमाकन रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित है. इसे प्राचीन खोतान साम्राज्य के दौरान दामागो ओएसिस के नाम से जाना जाता था. इस राज्य की बौद्ध सभ्यता ईसा पूर्व तीसरी सदी की मानी जाती है.