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राहुल बचाओ मोर्चाः कौन-कौन होंगे शहीद...

चुनाव नतीजे आने के बाद विपक्षी पार्टियां कांग्रेस की शर्मनाक हार के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराने में जुट गई है. तो कांग्रेस पार्टी के अंदर एक नया खेमा बन हो गया. जिसका मंत्र है...'राहुल बचाओ मोर्चा'

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राहुल गांधी
राहुल गांधी

विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं. उत्तर प्रदेश में सपा की लहर चली, तो पंजाब में प्रकाश सिंह बादल पर जनता ने एक बार फिर भरोसा जताया. गोवा में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. वहीं उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. मणिपुर में कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई.

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इन नतीजों से एक बात साफ हो गई है कि कांग्रेस पार्टी को विधानसभा चुनावों में करारा झटका लगा है. खासकर यूपी में जहां पर पार्टी ने अपने 'युवराज' राहुल गांधी के सहारे चमात्कारिक परिणाम के दावे किए थे. दरअसल पार्टी ने जाने-अनजाने में यूपी चुनाव को राहुल की प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दी. जिसका खामियाजा पार्टी और राहुल गांधी दोनों को भुगतना पड़ा.

विपक्षी पार्टियों से लेकर राजनीतिक विश्लेषक चुनाव में पार्टी की इस शर्मनाक प्रदर्शन के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराने में जुटे हैं. तो कांग्रेस पार्टी के अंदर एक नया खेमा बन हो गया. जिसका मंत्र है...'राहुल बचाओ मोर्चा'

दरअसल कांग्रेसी नेताओं को पहले से चौंकाने वाले नतीजों की उम्मीद नहीं थी. इसका पहला इशारा पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने दे दिया था.

सातवें चरण का चुनाव खत्म होने के बाद दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अगर प्रदेश में पार्टी जीतती है तो यह राहुल की जीत होगी और हार की परिस्थिति में यह मेरी हार है.

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दिग्विजय सिंह ने दरअसल इस बयान के जरिए पार्टी के नेताओं को एक इशारा दे दिया था कि खराब नतीजों के बाद राहुल बचाओ मोर्चा पर लग जाना होगा. जिसका अमल पार्टी के हर बड़ा-छोटा नेता कर रहे हैं.

यूपी चुनाव में बेहतरीन परिणाम देने के लिए राहुल गांधी के साथ पार्टी के कई मंत्री यूपी की रणभूमि में लामबंद हुए. मंत्रियों के इस गुट में कानून मंत्री सलमान खुर्शीद.केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश सिंह जायसवाल, जगदंबिका पाल, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे कई बड़े नाम थे.

पार्टी के लिए दुखद बात यह है कि हार की जिम्मेदारी के लिए इतने नेता सामने आ गए, काश चुनावी प्रचार के दौरान इतनी जिम्मेदारी से भूमिका निभाई होती तो शायद नतीजे और बेहतर होते.

पर कांग्रेसियों के बयान एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हैं. क्योंकि अगर विपक्षी राहुल गांधी पर हमला करेंगे, तो भ्रष्टाचार विरोधी माहौल में 2014 के आम चुनाव से पहले पार्टी का आखिरी दाव भी फेल हो जाएगा.

ऐसे में इस शर्मनाक हार के लिए कइयों को कुर्बानियां भी देनी पड़ सकती है. जिसका फैसला तो हाइकमान ही करेगा. फिलहाल नेता अपना 'राहुल बचाओ' धर्म निभाएंगे.

पर एक कहावत है, 'नाम बड़े और दर्शन छोटे'. कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन इस कहावत को सार्थक साबित कर दिया.

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अब जब परिस्थितियां विपरीत हैं तो इन नेताओं ने अपना वो धर्म निभाना शुरू कर दिया जिसकी कांग्रेस पार्टी की संस्कृति का हिस्सा माना जाता है. यानी हाइकमान के लिए कुछ भी करेगा.

हार के बाद दिग्विजय सिंह मीडिया रूबरू होने आए. चेहरे पर वो कुटिर मुस्कान नहीं थी. हार के लिए खुद को जिम्मेदार बताया. साथ ही राहुल गांधी के बचाव करते हुए हार का सारा ठीकरा स्थानीय नेतृत्व पर फोड़ डाला. और संकेत दे दिया कि वे पार्टी के महासचिव के पद से इस्तीफा दे देंगे.

कुछ ऐसा ही श्रीप्रकाश जायसवाल ने भी किया. परिणामों को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि मैं इस हार के लिए जिम्मेदार हूं. और जरूरत पड़ी तो इस्तीफा भी देने को तैयार हूं. उनके हाइकमान भक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पार्टी के लिए अपनी जान तक देने की बात कर डाली.

वहीं कांग्रेस पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने भी हार की जिम्मेदारी ले डाली.

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