scorecardresearch
 

भ्रष्‍टाचार: एक गया, अब किसकी बारी

जब 9 नवंबर की सुबह अशोक चव्हाण को एक झटके में हटा दिया गया तो वे सन्न रह गए. लेकिन नैतिकता या कुशासन के कारण कुर्सी से बेदखल होने वाले मुख्यमंत्रियों की कतार में वे प्रथम हैं. उनके पीछे अभी कई मुख्यमंत्री लाइन में लगे हैं.

Advertisement
X

Advertisement

जब 9 नवंबर की सुबह अशोक चव्हाण को एक झटके में हटा दिया गया तो वे सन्न रह गए. लेकिन नैतिकता या कुशासन के कारण कुर्सी से बेदखल होने वाले मुख्यमंत्रियों की कतार में वे प्रथम हैं. उनके पीछे अभी कई मुख्यमंत्री लाइन में लगे हैं. अगले साल असम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु में नए मुख्यमंत्री आ सकते हैं. इन राज्‍यों के मौजूदा मुख्यमंत्रियों को या तो आलाकमान बाहर का रास्ता दिखा देगा या मतदाता ही उन्हें कुर्सी से उतार देंगे.

बराक ओबामा का स्वागत करते समय अशोक को गुमान भी नहीं था कि उनकी यह अंतिम मुख्य भूमिका है. टीवी के एक पत्रकार ने 6 नवंबर को उनसे ऐसी आशंका जताई तो उन्होंने नाराजगी से उसे खारिज कर दिया था. नतीजे से अनजान अशोक ने 10 नवंबर को कैबिनेट की बैठक भी बुला रखी थी.

Advertisement

इससे एक दिन पहले वे अपने गुरु साईं बाबा के दो भक्तों से मिलने वाले थे. पर होनी को कौन टाल सकता है, 'भगवान' भी नहीं. सुबह  9.15 बजे उन्हें सूचित किया गया कि  सोनिया गांधी ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया है.

पृथ्वीराज चव्हाण उनका एकमात्र विकल्प थे, क्योंकि महाराष्ट्र कांग्रेस में वे अकेले नेता हैं जिन पर किसी घोटाले का दाग नहीं है. शुरू में पृथ्वीराज यह पद स्वीकार करने से हिचके. पर आज मिस्टर क्लीन को मुख्यमंत्री की कुर्सी की जितनी जरूरत है, उससे ज्‍यादा कांग्रेस को मिस्टर क्लीन की जरूरत है, पर पार्टी हित हावी रहे. {mospagebreak}

खुद को बचाने की आखिरी कोशिश में अशोक ने आदर्श घोटाले में विलासराव देशमुख, नारायण राणे और सुशील कुमार शिंदे जैसे सभी दावेदारों को लपेट लिया. पर वे पृथ्वीराज की छवि को कलंकित नहीं कर पाए. पूर्व मुख्यमंत्री को राहुल गांधी से नजदीकी पर भरोसा था. राहुल को लेकर वे इतने आश्वस्त थे कि जब वे इस्तीफा देने के  लिए 10 जनपथ जा रहे थे तो पहली बार सोनिया के ताकतवर राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के निवास पर गए.

64 वर्षीय पृथ्वीराज को कांग्रेस की ताकतवर तिकड़ी-मां, बेटे और प्रधानमंत्री-का आशीर्वाद हासिल है. भले ही वे जमीनी नेता नहीं हैं. कांग्रेस के बहुत कम मुख्यमंत्री ऐसे हैं. शरद पवार के साथ उनका समीकरण भी अच्छा नहीं. 10 जनपथ की मार्कशीट में पृथ्वीराज के  लिए यह बोनस है, पर राकांपा के  साथ गठबंधन सरकार चलाने में यह एक बाधा भी है.

Advertisement

बहरहाल, पवार ने नए मुख्यमंत्री का स्वागत किया है. निजी बातचीत में राकांपा खुश नहीं है. उसे दुख है कि कांग्रेस ने पवार के कट्टर विरोधी को चुना है. नाराज राकांपा ने राज्‍य में पिछड़ी जाति के छगन भुजबल की जगह उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शरद पवार के भतीजे, मराठा नेता अजित पवार को बैठा दिया. यह कांग्रेस के लिए एक संकेत है. पृथ्वीराज और अजित दोनों ही मराठा हैं. कांग्रेस ने राकांपा से अनुरोध किया था कि जाति संतुलन बनाए रखने के लिए वह भुजबल को न हटाए, पर राकांपा नहीं मानी.

प्रणव मुखर्जी ने मीडिया को बताया कि अशोक का इस्तीफा स्वीकार करने की वजह कुछ 'तथ्य और धारणाएं' हैं. यह वजह है तो तीन अन्य मुख्यमंत्री भी अपनी कुर्सियों पर पहलू बदल रहे हैं.{mospagebreak}

राजधानी में चर्चा है कि अगली गाज दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर गिरने वाली है. पर यह चर्चा इतने लंबे समय से है कि अब इन बातों पर लोगों को भरोसा नहीं रहा है. कांग्रेसी विधायकों का कहना है कि राष्ट्रमंडल खेलों में परियोजनाओं को मंजूरी देने में उन्होंने अपने बेटे संदीप के निर्वाचन क्षेत्र पूर्वी दिल्ली को प्राथमिकता दी थी.

राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े घोटालों की जांच कर रही वी.के. शुंगलु समिति अपनी रिपोर्ट जनवरी तक सौंप देगी. सुरेश कलमाडी का दावा है, जो कीचड़ उन पर उछाला जा रहा था वह दिल्ली सरकार पर चस्पां हो जाएगा. इससे शीला के विरोधियों को बल मिला है. लेकिन लगता नहीं कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों में दो मुख्यमंत्रियों की बलि लेगी. अशोक को हटाना ही कड़वा घूंट था. जाहिर है, इससे शीला को राहत मिली.

Advertisement

उधर, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के. रोसैया को राजभवन  भेजा जा सकता है. खराब स्वास्थ्य और महत्वाकांक्षी  जगमोहन रेड्डी से परेशान 77 वर्षीय मुख्यमंत्री की पकड़ राज्‍य में ढीली पड़ रही है. हाल की उनकी यह टिप्पणी कि वे 'गलती या दुर्भाग्य से' मुख्यमंत्री बन गए, उनकी इसी असुरक्षा की झलक देती है.

सोनिया दिल्ली से कोई नेता थोपकर आंध्र प्रदेश में भी महाराष्ट्र मॉडल अपनाने की सोच रही है. वे नेता केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी भी हो सकते हैं. कांग्रेस की रणनीतिः चूंकि वह अलग तेलंगाना राज्‍य नहीं बना सकती, इसलिए सबसे अच्छा विकल्प यह है कि तेलंगाना के ही किसी आदमी को पूरा आंध्र प्रदेश दे दिया जाए.

अगले साल असम में चुनाव हैं, और कम ही संभावना है कि दो बार विजयी रहे तरुण गोगोई तिकड़ी बना पाएंगे. 74 वर्ष की उम्र में वे राहुल की युवा कांग्रेस की सोच में फिट नहीं बैठते. यह शिकायत भी है कि वे अपने उन मंत्रियों की मुश्कें नहीं कस रहे जिन पर दक्षिणी असम में विकास के लिए दी गई रकम एक उग्रवादी संगठन को पहुंचाने का आरोप है. पर कांग्रेस में उनका विकल्प न होने से गोगोई को दूसरा मौका दिया जा सकता है.

कांग्रेस के सहयोगी जम्मू-कश्मीर के मुख्य-मंत्री उमर अब्दुल्ला को तेजी से एहसास हो रहा है कि विरासत दोधारी तलवार होती है. हाल ही में उनकी पार्टी पर दबाव था कि केंद्र में उनके पिता फारूक अब्दुल्ला और उनके  बीच अदला-बदली कर दी जाए. अगर दोबारा शासन लड़खड़ाया तो केंद्र को मजबूरन राष्ट्रपति शासन लगाना होगा. बदतर स्थिति में कांग्रेस को उमर के कट्टर विरोधी मुफ्ती मोहम्मद सईद से गठजोड़ करना पड़ सकता है.{mospagebreak}

Advertisement

सितंबर में सोनिया ने मुफ्ती से दोबारा बातचीत शुरू कर दी थी. उमर जानते हैं कि कांग्रेस का समर्थन मिलने की एकमात्र वजह राहुल हैं. लेकिन अशोक उन्हें बता सकते  हैं कि यह काफी नहीं है.

भाजपा को भी कर्नाटक में अपने मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा को लेकर चिंताएं हैं जिनके खिलाफ रेड्डी बंधुओं और राज्‍य के ताकतवर नेता अनंत कुमार ने विद्रोह कर रखा है. हाल ही में विश्वास मत के दौरान वे बड़ी मुश्किल से अपनी कुर्सी बचा पाए थे.

महाराष्ट्र में अशोक को हटाए जाने के  कुछ ही घंटे बाद चार असंतुष्ट भाजपा विधायकों ने येद्दियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों पर हटाने की मांग कर दी. भाजपा उन्हें बदलने की सोच रही है, क्योंकि दक्षिण में यह उसकी पहली सरकार है. छोटी-सी अवधि में ही उसकी सरकार पर घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं.

तीन मुख्यमंत्री सत्ता विरोधी रुझन का सामना कर रहे हैं. केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव होने हैं. माकपा लोकसभा चुनावों में पटखनी खाने के बाद झ्टके से उबरने का संकेत दे रही है, पर ममता बनर्जी अब भी उसके लिए चुनौती बनी हुई हैं जो पश्चिम बंगाल में माकपा को चार दशकों में पहली बार सत्ता से बेदखल कर सकती हैं.

Advertisement

राज्‍य की समस्याओं खासकर नंदीग्राम के मामले में बुद्धदेव भट्टाचार्य की अक्षमता ने उन्हें किसानों का हीरो बना दिया है. उधर, केरल में माकपा पूरी तरह मृत हो चुकी है. हाल में स्थानीय निकायों के  चुनाव में वह साफ हो गई थी. मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन अंदरूनी लड़ाई से निबट रहे हैं, जिससे सरकार चलाने के लिए उनके पास वक्त नहीं है. {mospagebreak}अगले साल राज्‍य में होने वाले चुनाव इस 87 वर्षीय नेता के  लिए आखिरी लड़ाई होंगे. केरल और पश्चिम बंगाल में वह हार गई तो देश में कहीं उसकी सरकार नहीं रह जाएगी, चाहे केंद्र हो या राज्‍य. बीमारी का सामना कर रहे एम. करुणानिधि में अब इतनी ताकत नहीं बची है कि वे वापसी की कोशिश कर रही जे. जयललिता से टक्कर ले सकें.

अशोक को शायद पता चल जाएगा कि पूर्व हो चुके मुख्यमंत्रियों में वे अकेले नहीं हैं. बहरहाल वे कुछ कूटनीतिक जीत के साथ हटे हैं. एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, ओबामा के  दौरे से पहले अमेरिकी शिष्टाचार दल ने सुझव दिया था कि आरोपों से घिरे अशोक हवाई अड्डे पर राष्ट्रपति की अगवानी न करें. पर अशोक के लोगों ने अमेरिकी अधिकारियों को याद दिलाया कि 2000 में भारत ने बिल क्लिंटन का स्वागत किया था, जबकि उनका नाम सेक्स स्कैंडल में लिप्त था. इसके बाद यह मुद्दा खत्म हो गया.

Advertisement
Advertisement