दिल ही तो है ना संग-ओ-खिश्त, गम से भर ना आए क्यों रोएंगे हम हजार बार, कोई हमें रुलाए क्यों वैज्ञानिकों का कहना है गालिब के इस मशहूर शेर पर अमल करते हुए हमें रोने के किसी भी मौके का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि कई बार यह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है.
अकसर हम इस लिए नहीं रोते क्योंकि हमें लगता है कि यह हमारे आत्मसम्मान पर चोट करता है. हम खुद को मजबूत दिखाने के लिए अपने आंसू छिपा जाते हैं.
इसके ठीक विपरीत वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हमारे आत्मसम्मान की भावना को मजबूत कर सकता है और हमें मानसिक बढ़त देता है.अमेरिका के इंडियाना युनिवर्सिटी-ब्लूमिंगटन के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि कॉलेज के जो फुटबाल खिलाड़ी किसी बड़े मैच में हारने के बाद रोना ‘सही’ मानते हैं उनमें आत्मसम्मान की भावना उन फौलादी और ‘मर्द’ खिलाड़ियों के मुकाबले ज्यादा होती है जो रोना कभी पसंद नहीं करते.
अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो खिलाड़ी अपने टीम सहयोगियों से शारीरिक लगाव का प्रदर्शन करते हैं, वे ज्यादा खुश रहते हैं. लाइवसाइंस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि फुटबॉल खिलाड़ियों की टीम यह जानना चाहती थी कि फुटबॉल खिलाड़ियों के रुलाई के प्रभाव के बारे में कैसे रूढ़िबद्ध लैंगिक धारणा बनती है और किस तरह खेल के मैदान में उनकी भावना संबंधी धारणाएं उनके जीवन के अन्य पहलुओं को प्रभावित करती है.
अनुसंधानकर्ताओं ने कॉलेज के 150 फुटबॉल खिलाड़ियों का सर्वेक्षण किया गया. इस क्रम में उनसे रोने के प्रति अनकी अवधारणाओं के बारे में पूछा गया. उनसे सवाल पूछने से पहले उन्हें एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में चार दृश्यों को पढ़ने के लिए दिया गया जो रोया था.