अखाड़े के महाबली, बॉलीवुड के पहले हीमैन और सिल्वर स्क्रीन के सबसे परफेक्ट बजरंग बली दारा सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. दिल का दौरा पड़ने के बाद मुंबई में उनका निधन हो गया. वो 84 वर्ष के थे.
पिछले 60 साल में दारा सिंह ने हिंदुस्तान के दिल पर राज किया. आज की पीढ़ी को शायद अंदाज़ा भी ना हो कि अखाड़े से अदाकारी के मैदान में उतरे दारा सिंह बॉलीवुड के पहले हीमैन माने जाते हैं. वो टारजन सीरीज़ की फिल्मों के हीरो रहे हैं. फिल्म अभिनेत्री मुमताज का करियर संवारने में भी सबसे बड़ा सहारा दारा सिंह का साथ ही साबित हुआ.
बॉलीवुड में बॉडी दिखाकर स्टारडम पाने का रास्ता ना खुलता, अगर दारा सिंह ना होते. जी हां, बॉलीवुड में आज हर सुपरस्टार पर शर्ट खोलकर मसल्स दिखाने की जो धुन सवार है, वो चलन शुरू हुआ था दारा सिंह के जरिए. जिस वक्त पूरी दुनिया में दारा सिंह की पहलवानी का सिक्का चल रहा था, तब 6 फीट 2 इंच लंबे इस गबरू जट्ट पर बॉलीवुड इस कदर फिदा हुआ कि पहलवान दारा सिंह बन गए एक्टर दारा सिंह.
आज भी बॉलीवुड दारा सिंह को उस सितारे के तौर पर जानता है, जिसकी शोहबत में आने के बाद ही मुमताज जैसी अदाकारा शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचीं. दारा सिंह की पहली फिल्म 'संगदिल' 1952 में रिलीज़ हुई, जिसमें दिलीप कुमार और मधुबाला लीड रोल में थे.
1955 में वो फिल्म 'पहली झलक' में पहलवान बनकर आए, जिसमें मुख्य किरदार किशोर कुमार और वैजयंती माला ने निभाया था. कुश्ती और फिल्मों में एक साथ मौजूदगी दर्ज़ कराते रहे दारा सिंह की बतौर हीरो पहली फिल्म थी 'जग्गा डाकू.' जिसके बाद वो बॉलीवुड के पहले एक्शन हीरो के तौर पर छा गए.
मुमताज के साथ दारा सिंह की जोड़ी बनी 1963 में फिल्म 'फौलाद' से. शोख-चुलबुली मुमताज और हीमैन दारा सिंह की जोड़ी का जादू करीब पांच साल तक सिल्वर स्क्रीन पर छाया रहा. दारा सिंह और मुमताज ने 'वीर भीमसेन', 'हरक्यूलिस', 'आंधी और तूफान', 'राका', 'रुस्तम-ए-हिंद', 'सैमसन', 'सिकंदर-ए-आज़म', 'टारज़न कम्स टु डेल्ही', 'टारज़न एंड किंगकांग', 'बॉक्सर', 'जवां मर्द' और 'डाकू मंगल सिंह' समेत करीब डेढ़ दर्ज़न फिल्मों में साथ काम किया.
उम्र जब तक ढली नहीं, तब तक दारा सिंह बॉलीवुड में एक्शन और धार्मिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा कलाकार बने रहे और उम्र ढ़लने के बाद वो बन गए सुपरस्टार के बाप. कुश्ती के बाद दारा सिंह को सबसे ज़्यादा प्यार फिल्मों से ही रहा. उन्होंने मोहाली के पास दारा स्टूडियो बनाया और ढे़र सारी फिल्में भी.
दारा सिंह ने हिंदी और पंजाबी में 8 फिल्में प्रोड्यूस कीं, 8 फिल्मों का निर्देशन किया और 7 फिल्मों की कहानी भी खुद ही लिखी. 100 से ज़्यादा फिल्मों में अदाकारी कर चुके दारा सिंह की आखिरी यादगार फिल्म थी 'जब वी मेट', जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादाजी का किरदार निभाया. वो आखिरी दम तक फिल्मों में जुड़ा रहना चाहते थे, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ती सेहत साथ नहीं दे रही थी, लिहाज़ा दारा सिंह ने 2011 में लाइट-कैमरा और एक्शन को अलविदा कह दिया.
कोई एक किरदार कैसे किसी की मुकम्मल पहचान बदल देता है, इसकी मिसाल हैं दारा सिंह. सीरियल रामायण में हनुमान के किरदार ने उन्हें घर-घर में ऐसी पहचान दी कि अब किसी को याद भी नहीं कि दारा सिंह अपने ज़माने के वर्ल्ड चैंपियन पहलवान थे.
ये वो किरदार है, जिसने पहलवान से अभिनेता बने दारा सिंह की पूरी पहचान बदल दी. 1986 में रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दारा सिंह हनुमान के रोल में ऐसे रच-बस गए कि इसके बाद कभी किसी ने किसी दूसरे कलाकार को हनुमान बनाने के बारे में सोचा ही नहीं.
रामायण सीरियल के बाद आए दूसरे पौराणिक धारावाहिक महाभारत में भी हनुमान के रूप में दारा सिंह ही नज़र आए. 1989 में जब 'लव कुश' की पौराणिक कथा छोटे परदे पर उतारी गई, तो उसमें भी हनुमान का रोल दारा सिंह ने ही किया. 1997 में आई फिल्म 'लव कुश' में भी हनुमान बने दारा सिंह.
दिलचस्प बात ये है कि बॉलीवुड को अपने हनुमान उन दारा सिंह में दिखे, जिनकी फिल्मी पारी पहलवान और डाकू जैसी भूमिकाओं से शुरू हुई थी. बाद में वो राजा और रोमांस के राजकुमार भी बने. और जब 1960 और 70 के दशक में पौराणिक फिल्मों का दौर लौटा, तो दारा सिंह की कदकाठी देखते हुए उन्हें कभी भीम बनाया गया, कभी बलराम तो कभी महादेव शिव.
1964 में फिल्म 'वीर भीमसेन' में दारा सिंह ने भीम का रोल निभाया. अगले साल आई फिल्म 'महाभारत' में भी दारा सिंह ही भीम बने. 1968 में फिल्म 'बलराम श्रीकृष्ण' में दारा सिंह कृष्ण के बड़े भाई बलराम की भूमिका में नज़र आए. 1971 में फिल्म 'तुलसी विवाह' में दारा सिंह पहली बार भगवान शिव के रोल में सामने आए. भगवान शिव की भूमिका उन्होंने 'हरि दर्शन' और 'हर-हर महादेव' में भी निभाई.
दारा सिंह को पहली बार हनुमान बनाया निर्माता-निर्देशक चंद्रकांत ने. 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म 'बजरंग बली' में दारा सिंह हनुमान की भूमिका में थे. इस फिल्म में तब तक चॉकलेटी हीरो विश्वजीत राम के रोल में थे, जबकि लक्ष्मण की भूमिका शशि कपूर ने निभाई और रावण बने थे प्रेमनाथ.
'बजरंग बली' रिलीज़ होने के बारह साल साल बाद जब रामायण सीरियल शुरू हुआ, तो रामानंद सागर के जेहन में हनुमान के रोल को लेकर कोई दुविधा नहीं थी. वो पूरी तरह इस बात से सहमत थे कि हनुमान की भूमिका के लिए दारा सिंह से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता.
दारा सिंह बीमार भी हो सकते हैं, ये बात उन लोगों के लिए अजूबा ही है, जिन्होंने दारा सिंह की ताकत के किस्से सुन रखे हैं. पंजाब के अमृतसर के छोटे से गांव धर्मूचक के गठीले बदन वाले इस पहलवान ने कुश्ती में नेशनल चैंपियन बनने से पहले ही दुनिया में अपने नाम का डंका बजा दिया था. किंग कांग से लेकर दुनिया का कोई ऐसा नामी पहलवान नहीं था, जिसे दारा सिंह ने अखाड़े में धूल ना चटाई हो.
कुश्ती के अखाड़े में इससे बड़ा नाम शायद दुनिया में कोई दूसरा नहीं. हिंद के इस रुस्तम के आगे दुनिया के हर बड़े पहलवान ने मुंह की खाई. तारीफ जितनी भी की जाए, कम ही है और हकीकत भी यही. रुस्तम-ए-हिंद, अपने जमाने के कुश्ती के वर्ल्ड चैंपियन, 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धर्मूचक गांव में जन्मे दारा सिंह को बचपन से ही पहलवान बनने का शौक था. भगवान ने उन्हें रुस्तम-ए-हिंद बनने के लिए ही धरती पर भेजा था और इसीलिए कद-काठी भी ऐसी बख्शी कि देखकर ही अच्छे-अच्छों के होश उड़ जाएं.
आज की पीढ़ी दारा सिंह को अभिनेता के तौर पर ही ज्यादा जानती है, लेकिन सच्चाई ये है कि दारा सिंह को सिल्वर स्क्रीन पर स्टारडम कुश्ती के अखाड़ों में उनका दम देखने के बाद ही मिली.
लड़कपन के दिनों में हाट और मेलों में कुश्ती लड़ने वाले दारा सिंह ने अपनी धूम मचानी शुरू कर दी और जल्द ही उन्हें तमाम शोहरत मिल गई. फिर क्या था गांव का पहलवान छोरा विदेशी पहलवानों को मज़ा चखाने निकल पड़ा.
1947 में दारा सिंह सिंगापुर गए और तरलोक सिंह को हराकर मलेशियाई चैंपियन बने. अगले पांच साल तक पूर्वी एशियाई देशों के हर नामी-गिरामी पहलवान को धूल चटाने के बाद दारा सिंह 1952 में भारत लौटे और 1954 में भारतीय चैंपियन बन गए. दारा सिंह का सफर इतने पर ही नहीं रुका. इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों के एक से एक पहलवानों को हराया, जिसमें किंग कॉन्ग, कनाडा के जॉर्ज गोरडिएन्को, न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा और कई बड़े पहलवान शामिल थे. 1959 में दारा सिंह कुश्ती के कॉमनवेल्थ चैंपियन बनकर भारत लौटे.
कॉमनवेल्थ चैपियनशिप के बाद दारा सिंह का मिशन था पूरी दुनिया को अपना दम-खम दिखाना. भारत के इस पहलवान ने दुनिया के लगभग हर देश के पहलवान को चित किया और और 29 मई 1968 को वर्ल्ड चैंपियन बन गए. कुश्ती का शहंशाह बनने के इस सफर में दारा सिंह ने पाकिस्तान के माज़िद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिला दिया.
1983 में कुश्ती से रिटायरमेंट लेने वाले दारा सिंह ने 500 से ज्यादा पहलवानों को हराया और खास बात ये कि ज्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया. उनकी कुश्ती कला को सलाम करने के लिए 1966 में दारा सिंह को रुस्तम-ए-पंजाब और 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाज़ा गया.
दारा सिंह की कुश्ती के दीवानों में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कई दूसरे प्रधानमंत्री भी शामिल थे. दारा सिंह की हस्ती के आगे अच्छे से अच्छे सूरमा चित हो जाते थे. सही मायने में दारा सिंह कुश्ती के दंगल के वो शेर थे, जिनकी दहाड़ सुनकर बड़े-बड़े पहलवानों ने दुम दबाकर अखाड़ा छोड़ दिया.