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पीयूष चावला के चयन को लेकर तेज हुई चर्चा

भारतीय टीम जो विश्व कप के लिए चुनी गई है, उसमें पीयूष चावला को शामिल किए जाने पर जो बहस छिड़ी है, उसे समझना कोई मुश्किल नहीं है.

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Piyush Chawla
Piyush Chawla

भारतीय टीम जो विश्व कप के लिए चुनी गई है, उसमें पीयूष चावला को शामिल किए जाने पर जो बहस छिड़ी है, उसे समझना कोई मुश्किल नहीं है. दो साल से ज्‍यादा समय तक इंतजार करने के बाद 23 वर्षीय पीयूष को विश्व कप के लिए सिर्फ इसलिए टीम में चुना गया क्योंकि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी गेंदबाजी के अपने हमले में विविधता चाहते थे, जबकि इस बीच दूसरे गेंदबाज जैसे लेग स्पिनर अमित मिश्रा और बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा भारत के टेस्ट और एकदिवसीय मैचों की टीमों के साथ दौरों पर जाते रहे.

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हालांकि विश्व कप के खेल शुरू होने में अभी कुछ समय है, लेकिन सेंचुरियन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फाइनल मुकाबले में चावला का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था. फिर भी उन्हें खब्बू गेंदबाज आशीष नेहरा पर दी गई तरजीह को करिश्मा ही माना जाएगा. इसी वजह से उत्तर प्रदेश के इस लेग स्पिनर को विश्व कप की टीम में शामिल किए जाने से बहस और तेज हो गई है.

अभी हाल में आइपीएल की नीलामी में किंग्स इलेवन पंजाब ने पीयूष चावला पर 9,00,000 डॉलर की बोली लगाकर अपनी टीम में बनाए रखा था. यह कीमत एडम गिलक्रिस्ट के बराबर थी और प्रवीण कुमार तथा अभिषेक नायर से पूरे 1,00,000 डॉलर ज्‍यादा थी. इसे देखते हुए चावला को चुने जाने पर मिली-जुली राय सुनने को मिल रही है. कुछ लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कुछ लोग विरोधी सुर अलाप रहे हैं. लेकिन इस वजह से जब यह युवा खिलाड़ी विश्व कप मुकाबलों के लिए मैदान में उतरेगा तो उसके कंधों पर भारी दबाव होगा. {mospagebreak}

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हां, यह सुनकर चावला का उत्साह जरूर बढ़ा होगा कि अजित वाडेकर और दिलीप वेंगसरकर सरीखे भारत के पूर्व कप्तानों ने उनके चयन का स्वागत किया और कहा कि इससे धोनी को अपनी गेंदबाजी में एक और विकल्प मिल जाएगा. लेकिन कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं. बिशन सिंह बेदी को तो चयनकर्ताओं की सोच पर ही हैरानगी है और वे विश्व कप की टीम में चावला को शामिल किए जाने को चकरा देने वाला करार देते हैं.

उनका कहना है, ''मुझे ताज्‍जुब है कि चयनकर्ताओं ने एक लेग स्पिनर को प्राथमिकता दी, जो चेस्ट-ऑन एक्शन के साथ गेंदबाजी करता है, जबकि ओझा की बाएं हाथ की स्पिन ज्‍यादा असरदार साबित होती.'' वे बताते हैं, ''मुझे याद है कि कुछ साल पहले नेशनल क्रिकेट अकादमी में मैंने इरापल्ली (प्रसन्ना) के साथ पीयूष को गेंदबाजी करते हुए देखा था. तब मुझे लगा था कि इस लड़के में गजब की प्रतिभा है. लेकिन समय बीतने के साथ लगता है उसमें वह धार खत्म हो चुकी है, जो मैच जिताने वाले एक लेग स्पिनर में होनी चाहिए.'' {mospagebreak}

बेदी उन लोगों की सोच से इत्तफाक रखते हैं जिनका मानना है कि उनकी जगह रोहित शर्मा या मनीष पांडे जैसे बल्लेबाज को टीम में शामिल करना ज्‍यादा उचित होता. बेदी कहते हैं, ''उससे टीम प्रबंधन को बल्लेबाजी के असफल होने पर कुछ सहारा रहता. युवराज सचमुच अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं और वे आठ से दस ओवर की गेंदबाजी कर सकते हैं. साथ ही यूसुफ पठान, सुरेश रैना, सचिन तेंडुलकर और वीरेंद्र सहवाग भी अच्छी गेंदबाजी करते हैं, ऐसे में मुझे आश्चर्य होगा कि किसी मैच में दो मुख्य स्पिनर एक साथ खेलें.

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हो सकता है आर. अश्विन और चावला दोनों ही सुरक्षित खिलाड़ियों में बैठे रह जाएं, हालांकि अश्विन को ऑफ स्पिन के लिए पहली पसंद के तौर पर देखा जा सकता है. अगर धोनी और टीम प्रबंधन ने सोचा था कि चावला महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं तो उन्हें चावला को दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर हर मैच में अवसर देना चाहिए था ताकि उन्हें कुछ और अभ्यास हो जाता.''

मुख्य चयनकर्ता के. श्रीकांत ने कहा कि उनकी समिति को उम्मीद थी कि पिचें सूखी होंगी जो फिरकी गेंदबाजों को मदद पहुंचाएंगी. और चावला दूसरे प्रतियोगियों में सबसे अनुभवी थे. धोनी पूरे विश्वास से चावला का बचाव करते हैं. वे कहते हैं, ''टीम में पीयूष को शामिल करना अच्छा है क्योंकि वे हमले में विविधता देंगे. वे बल्लेबाजी भी कर सकते हैं. अगर हम पांच गेंदबाजों के साथ खेलते हैं तो वे नंबर 7 या नंबर 8 क्रम पर बल्लेबाजी कर सकते हैं.'' {mospagebreak}

पिछले दो दौरों में चावला ने भारत और इंग्लैंड में प्रथम श्रेणी के 23 मैचों में 36.20 की औसत से 1,086 रन बनाए थे. लेकिन सवाल यह है कि एकदिवसीय और टी-20 मैचों में चावला ने ऐसा क्या कारनामा कर दिखाया है जिससे वे भारत के प्रमुख खिलाड़ियों में गिने जाएं? इस लेग स्पिनर ने भारत के लिए तीन टी-20 मैचों में सिर्फ दो विकेट लिए हैं जबकि 50 ओवर के 22 मैचों में उन्होंने कुल 28 विकेट लिए हैं. उनके आलोचकों का कहना है कि उनके बारे में इससे ज्‍यादा बताने के लिए कुछ नहीं है.

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चावला के चयन की आलोचना करने वालों का कहना है कि केपटाउन में धोनी ने जो बयान दिया उससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि चावला तभी 11 खिलाड़ियों में शामिल किए जाएंगे जब भारत पांच मुख्य गेंदबाजों के साथ मैदान में उतरेगा. पांच मुख्य गेंदबाजों के साथ भारत आखिरी बार 2009 में दक्षिण अफ्रीका में चैंपियंस ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला था. फिर चावला को चुने जाने की दूसरी वजह क्या हो सकती है? बकौल एक पूर्व खिलाड़ी, वे धोनी के लिए भाग्यशाली खिलाड़ी हैं. उनके मुताबिक, ''कप्तान का मानना है कि चावला उस टीम का हिस्सा थे, जिसने 2007 में दक्षिण अफ्रीका में टी-20 का विश्व कप जीता था. मार्च, 2008 में भी कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दो फाइनल मैचों में वे शामिल थे और भारत दोनों ही मैच जीत गया था.''

चावला के चयन ने भले ही कुछ लोगों को चौंकाया हो, लेकिन उनकी असल चुनौती विश्व कप के मुकाबलों में होगी, जब उन्हें अपनी फिरकी गेंदों से विरोधी टीम के बल्लेबाजों के विकेट चटकाने का जिम्मा सौंपा जाएगा. अलीगढ़ में घर पर उन्हें पारस कहकर बुलाया जाता है, जिसे एक ऐसा पत्थर माना जाता है जो किसी भी चीज को सोना बना देता है. शायद उनका जादू काम कर जाए और उनकी मदद से भारत की टीम एक अरब भारतीयों के सपनों को सच साबित कर दे.

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