सरकार और न्यायपालिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को अल्टीमेटम देते हुए उन्हें राष्ट्रपति के खिलाफ रिश्वत के मामलों को फिर से खुलवाने के संबंध में ‘तत्काल’ स्विस प्रशासन को पत्र लिखने का आदेश दिया है.
न्यायाधीश नसीर उल मुल्क की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ ने कहा कि गिलानी को अपने कानूनी विशेषज्ञों की सलाह मिलने का इंतजार किए बिना स्विस प्रशासन को चिट्ठी लिखनी चाहिए.
पीठ ने इसके साथ ही गिलानी को 21 मार्च को अगली सुनवाई को अदालत को उठाए गए कदमों की जानकारी के संबंध में रिपोर्ट सौंपने को भी कहा है. पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल मौलवी अनवारूल हक को प्रधानमंत्री को ‘तत्काल’ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की सूचना देने का निर्देश दिया गया है.
रिश्वत के संबंध में आम माफी को खारिज करने के अदालत के एक पूर्व के आदेश के क्रियान्वयन के संबंध में एक मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने यह निर्देश दिया. इस आम माफी से राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी तथा आठ हजार से अधिक अन्य लोगों को फायदा हुआ था.
पूर्व में प्रधानमंत्री ने अदालत को बताया था कि उनके कानूनी सलाहकारों ने उन्हें सलाह दी है कि जरदारी के खिलाफ मामलों को फिर से नहीं खोला जा सकता क्योंकि संविधान राष्ट्रपति को छूट प्रदान करता है.
जरदारी के खिलाफ मामलों को फिर से खोलने के अदालत के आदेश पर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए इसी सात सदस्यीय पीठ ने गिलानी के खिलाफ अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई की थी.
अदालती कार्यवाही के बाद गिलानी के वकील एतजाज अहसन ने बताया कि पीठ ने प्रधानमंत्री से 19 मार्च तक विस्तृत बयान सौंपने या निजी रूप से पेश होकर 21 मार्च को बयान दर्ज कराने को कहा है. ऐसा करने में विफल रहने पर अंतिम बहस शुरू हो जाएगी.
अवमानना मामले के वकील और अटार्नी जनरल द्वारा कैबिनेट सचिव नरगिस सेठी से बहस किए जाने के बाद पीठ ने यह निर्देश जारी किया. सेठी बतौर गवाह अदालत में पेश हुए.
अहसन ने बताया, ‘यदि गिलानी बयान देते हैं तो अंतिम जिरह 21 मार्च से शुरू हो जाएगी.’ वर्ष 2008 में स्विस प्रशासन ने पाकिस्तान सरकार की अपील पर जरदारी के खिलाफ छह करोड़ डॉलर की धन की हेराफेरी के मामले को बंद कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जरदारी के खिलाफ मामले फिर से खुलवाने के अदालत के आदेशों पर कार्रवाई करने से इनकार करने पर गिलानी को अदालत की अवमानना मामले में अभ्यारोपित किया था.
शीर्ष अदालत दिसंबर 2009 से मामलों को फिर से खोले जाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रही है.