सत्तापक्ष ने अब तक घोटालों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की घोषणा अक्सर भारी शोर-शराबे और संसद की कार्यवाही में कई दिनों तक बाधा के बाद ही की है.
इस संबंध में बोफोर्स घोटाला मामले में सबसे अधिक 45 दिन तक चले शोर-शराबे और व्यवधान के बाद सरकार ने जेपीसी की घोषणा की. फिलहाल संसद की कार्यवाही छह दिनों से ठप सी है. हषर्द मेहता से जुड़े प्रतिभूति एवं बैंक घोटाला मामले की जेपीसी जांच के संबंध 17 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही. केतन पारिख से जुड़े शेयर घोटाला मामले में जेपीसी की मांग पर 15 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही थी.
बोफोर्स मामले के विभिन्न पहलुओं की जांच के सिलसिले में छह अगस्त 1987 को तत्कालीन रक्षा मंत्री के सी पंत ने जेपीसी के गठन के लिए प्रस्ताव पेश किया था. बी शंकरानंद की अध्यक्षता में गठित जेपीसी ने 50 बैठकों के बाद 26 अगस्त 1988 को अपनी रिपोर्ट पेश की. विपक्ष ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इस मामले की जांच के लिए जेपीसी की मांग के संबंध में 45 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही थी.
बहरहाल, टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, आदर्श हाउसिंग घोटाला और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अनियमितता के आरोपों की जांच के संबंध में सरकार का कहना है कि इसकी लोक लेखा समिति (पीएसी) से जांच करायी जाए जबकि विपक्ष जेपीसी से जांच की मांग पर अड़ा है.{mospagebreak}
लोक लेखा समिति (पीएसी) के पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने कहा, ‘‘पीएसी अपने जांच के विषय स्वयं तय करती है. आमतौर पर पीएसी की जांच के दायरे में सीएजी रिपोर्ट या अन्य मामलों के कुछ ही हिस्से या चंद पॅराग्राफ लिये जाते हैं. पीएसी की रिपोर्ट संसद में पेश तो होती है, लेकिन इस पर संसद में चर्चा नहीं होती है.’’
भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों की जेपीसी जांच की मांग पर जोर देते हुए सिंह ने कहा, ‘‘पीएसी उत्पत्ति के आधार पर संसद का हिस्सा है और संसद के बारे में संसद में चर्चा नहीं होती, इसलिए जेपीसी से जांच ही विकल्प है बाकी छलावा है.’’ कांग्रेस महासचिव बी के हरिप्रसाद ने कहा, ‘‘पीएसी भी संसद की समिति है. विपक्ष को इससे जांच में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. उम्मीद करते हैं कि बातचीत के जरिये इस विवाद का जल्द हल निकल आयेगा.’’
हषर्द मेहता से जुड़े प्रतिभूति एवं बैंक घोटाला मामले की जेपीसी जांच के संबंध में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने छह अगस्त 1992 को प्रस्ताव पेश किया था. राम निवास मिर्धा की अध्यक्षता में जेपीसी का गठन किया गया और समिति ने 21 दिसंबर 1993 को रिपोर्ट सौंपी. इस मामले में 17 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही.{mospagebreak}
केतन पारिख से जुड़े शेयर घोटाला मामले में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन ने 26 अप्रैल 2001 को जेपीसी के गठन का प्रस्ताव पेश किया था. लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत प्रकाशमणि त्रिपाठी की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया और समिति ने 105 बैठकों के बाद 19 दिसंबर 2002 को अपनी रिपोर्ट पेश की. केतन पारिख शेयर घोटाला मामले में जेपीसी की मांग पर 15 दिन तक संसद की कार्यवाही बाधित रही थी.
अंतिम बार संयुक्त संसदीय समिति का गठन शीतल पेय, फलों से जुड़े पेय पदाथरे और अन्य पेय सामग्रियों में कीटानुनाशकों के अंश पाये जाने से संबंधित मामलों की जांच के लिए 2003 में किया गया था. इस मामले में जेपीसी की अध्यक्षता शरद पवार ने की थी. समिति ने 17 बैठकों के बाद चार फरवरी 2004 को रिपोर्ट पेश की.
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष काश्यप ने कहा, ‘‘लोक लेखा समिति (पीएसी) का स्वरूप संसद की स्थायी समिति की तर्ज पर है जबकि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) एक तदर्थ समिति है. पीएसी सार्वजनिक खर्च की आडिट एवं सीएजी रिपोर्ट के विभिन्न पहलुओं पर विचार करती है, जबकि जेपीसी का गठन विशिष्ठ विषय की जांच के उद्देश्य से होती है.’’{mospagebreak}
भले ही विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा है, लेकिन संसदविज्ञ काश्यप ने कहा कि आजादी के बाद से अब तक चार मामलों में जांच के उद्देश्य से संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया लेकिन अधिक अधिकार होने के बावजूद जेपीसी के पूर्व के अनुभवों को बहुत सार्थक नहीं कहा जा सकता.
दूसरी ओर, वर्तमान लोकलेखा समिति से सदस्य बसपा सांसद डॉ. बलिराम ने कहा, ‘‘पीएसी मुख्य रूप से सीएजी रिपोर्ट की जांच परख और सार्वजनिक खर्च की जांच करती है. लेकिन टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन एवं आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला तथा राष्ट्रमंडल खेल में अनियमितता के स्वरूप को देखते हुए ‘जेपीसी’ ही बेहतर होगी.’’
संविधान विशेषज्ञ सी वरदराजन ने कहा, ‘‘पीएससी का स्वरूप स्थायी होता है जिसका प्रत्येक वर्ष चुनाव होता है और विपक्ष का कोई नेता इसका अध्यक्ष होता है. जेपीसी का गठन किसी एक सदन में प्रस्ताव पेश कर और दूसरे सदन में अनुमोदन करके अथवा लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की सहमति से तय होता है.’’ उन्होंने कहा कि अभी तक पूर्व के चार मामलों में जेपीसी का अध्यक्ष सत्तापक्ष के किसी सदस्य के होने के कारण इसकी रिपोर्टें विवादों में ही रही हैं.
भ्रष्टाचार और घोटालों के कुछ मामलों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग को लेकर विपक्ष के हंगामे के कारण नौ नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में पहले दिन को छोड़कर शेष सभी दिन कामकाज ठप रहा है.