लोकपाल बिल का सस्पेंस धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंचता जा रहा है. बहुप्रतीक्षित लोकपाल बिल को लोकसभा में पास कराने के बाद राज्यसभा में पेश करने की राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई है, लेकिन सरकार पसोपेश में है कि इसे राज्यसभा में कैसे पास कराया जाए. बहरहाल सूत्रों से प्राप्त खबरों के मुताबिक सरकार संभवतः गुरुवार को इसे राज्यसभा में पेश करेगी.
संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने आरोप लगाया है कि बीजेपी का रुख देश के सामने आ गया है, जो कि लोकपाल बिल नहीं चाहती है. उन्होंने कहा कि बीजेपी सिर्फ यही चाहती है कि लोकपाल पर आंदोलन चलता रहे.
इससे पहले यूपीए और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि बीजेपी अपने वादे से पलट जाती है. दूसरी ओर बीजेपी नेता वेंकैया नायडू ने कहा है कि मौजूदा लोकपाल बिल कमजोर है और उनकी पार्टी से इसे राज्यसभा से पास नहीं होने देगी.
बसपा, सपा और राजद सदस्यों के अनुपस्थित रहने के कारण लोकसभा में लोकपाल पर संविधान संशोधन विधेयक के नामंजूर होने के बाद अब राज्यसभा में भी लोकपाल विधेयक की किस्मत पर सवाल पैदा हो गया है. कांग्रेस को अपने दम पर या संप्रग में अपने सहयोगी दलों की बदौलत राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं है.
245 सदस्यीय राज्यसभा में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों राकांपा, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, लोजपा और रालोद को मिलाकर 93 सदस्य हैं.
सरकार का बाहर से समर्थन कर रहे दलों बसपा (18), सपा (5), राजद (4) के महत्वपूर्ण 27 मत हैं. ये तीन पार्टियां लोकपाल विधेयक पर लोकसभा में मतदान के पहले बहिर्गमन कर गई थीं, लेकिन उनकी अनुपस्थिति का कोई खास असर नहीं पड़ा, क्योंकि विधेयक को साधारण बहुमत की जरूरत थी और यह ध्वनि मत से पारित हो गया.
लोकसभा में इन तीनों दलों के 42 सदस्यों की अनुपस्थिति सरकार के संविधान संशोधन विधेयक के पारित कराने के हिसाब से घातक साबित हुई. इस विधेयक को पारित कराने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता थी. अगर तीनों दल राज्यसभा में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहीं, तो सरकार के लिए यह चिंता का सबब बन सकती है.
लोकपाल विधेयक पर कई आपत्तियां उठाने वाली भाजपा कुछ हद तक नरम पड़ी, क्योंकि सरकार राज्यों को लोकायुक्त स्थापित करने का विकल्प देने, प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की अनुमति देने के लिए तीन-चौथाई सदस्यों की सहमति को दो-तिहाई में तब्दील करने और सांसदों के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति की शक्तियों की रक्षा जैसे आधिकारिक संशोधन के साथ आई है.
हालांकि, भाजपा नेताओं ने कहा कि वे बुधवार सुबह अपने रुख की समीक्षा करेंगे क्योंकि पार्टी को लोकपाल ढांचे में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण और सीबीआई पर लोकपाल के नियंत्रण जैसे मुद्दों पर अब भी आपत्ति है.
लोकपाल पर क्या हो सकता है आगे
लोकसभा में बिल पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जहां यूपीए के पास बहुमत नहीं है. यानी राज्यसभा लोकसभा में पास बिल को नामंजूर कर सकती है.
ऐसे में हो सकता है कि दोनों सदनों की सहमति बनाने के लिए राष्ट्रपति एक ज्वाइंट सेशन बुलाएं. अगर ज्वाइंट सेशन बुलाया जाता है तो परंपरा के मुताबिक स्पीकर की अध्यक्षता में दोनों सदन बैठेंगे जहां बहुमत से बिल को पास कराया जा सकता है.
इसके बाद कानून बनाने के लिए बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा.
गौरलतब है कि साल 2002 में पोटा का बिल संयुक्त सत्र में ही पास हुआ था. एनडीए सरकार राज्यसभा में बिल पास नहीं करा सकी थी.