समलैंगिक संबंधों को निहायत अनैतिक करार देकर इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नामंजूरी जताने के बाद सरकार ने अपना रुख पलट लिया. जिसके बाद उच्चतम न्यायालय की पीठ ने नाराजगी व्यक्त की.
गृह मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने दलील दी थी कि समलैंगिक संबंध सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और भारतीय समाज विदेशों में व्याप्त प्रचलनों को नहीं अपना सकता.
एएसजी मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ के समक्ष कहा, ‘समलैंगिक संबंध निहायत ही अनैतिक हैं और सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ हैं और इस तरह की गतिविधियों से बीमारियां (एड्स जैसी) फैलने की काफी अधिक संभावना है.’
जैसे ही मीडिया ने सरकार के रुख को बयां करना शुरू किया गृह मंत्रालय ने तत्काल एएसजी के बयान से दूरी बनाते हुए अदालती कार्यवाही के बीच ही बयान जारी करते हुए कहा कि उसने समलैंगिक संबंधों को वैध करार देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर कोई रुख नहीं जताया है. बयान में कहा गया है, ‘गृह मंत्रालय ने समलैंगिकता के मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं किया है.
गृह मंत्रालय ने कैबिनेट के फैसले से अवगत कराने के अलावा कोई अन्य निर्देश भी नहीं दिया है.’ उसने बताया कि अटार्नी जनरल से शीर्ष न्यायालय को सिर्फ सहयोग करने को कहा गया है.
गृह मंत्रालय ने कहा कि इस विषय पर कैबिनेट ने विचार किया और कैबिनेट का फैसला था कि केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं कर सकती. जैसे ही मल्होत्रा ने करीब चार घंटे तक चली कार्यवाही के बाद अपनी दलीलें समाप्त कीं, एक अन्य एएसजी मोहन जैन ने अदालत से कहा कि उन्हें यह संदेश देने का निर्देश दिया गया है कि केंद्र इस मुद्दे पर कोई रुख अख्तियार नहीं कर रहा.
जैन की अंतिम मिनट में दी गयी दलील पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पीठ ने कहा कि सरकार ने अपनी दलीलें पहले ही रखी हैं और अदालत उन्हें दिये गये निर्देश को संज्ञान में नहीं ले सकती. पीठ ने सरकारी वकील से कड़े लहजे में कहा, ‘अदालत में इस तरह के बयान नहीं दें. इससे आपको ही परेशानी होगी.’ पीठ ने कहा, ‘भारत सरकार मामले में दलील रख रही है. उसने अपनी दलीलें रखी हैं. हम आपको इस तरह का बयान नहीं देने देंगे कि गृह मंत्रालय ने एएसजी मल्होत्रा को निर्देश नहीं दिया. हम आपके निर्देशों को संज्ञान में नहीं ले रहे.’
जब जैन ने कहा कि सरकार हलफनामा दाखिल करेगी तो पीठ ने कड़े स्वर में कहा कि इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि मामले में अंतिम सुनवाई शुरू हो चुकी है और उन्हें मामले में अदालत की सहायता करने की पूरी आजादी है. बाद में संपर्क किये जाने पर मल्होत्रा ने इस बात पर जोर दिया कि वह गृह मंत्रालय की तरफ से पक्ष रख रहे थे. अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 28 फरवरी की तारीख मुकर्रर की.
इससे पहले मल्होत्रा ने अदालत में कहा था, ‘हमारा संविधान अलग है और हमारे नैतिक एवं सामाजिक मूल्य भी अन्य देशों से अलग हैं इसलिए हम उनका पालन नहीं कर सकते.’ उन्होंने दलील दी कि समलैंगिक संबंधों की सामाजिक नामंजूरी अपने आप में इसे अपराध मानने का पर्याप्त कारण है. ये अप्राकृतिक हैं इसलिए अपराध हैं.
उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय समाज समलैंगिकता को मंजूर नहीं करता और कानून को समाज से अलग नहीं किया जा सकता. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला किया था. भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध बताया गया है जिसमें उम्रकैद तक की अधिकतम सजा का प्रावधान है.
उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों की वैधता को चुनौती देने वाले संगठनों से कल कहा था कि अन्य देशों में इस विषय पर लागू कानूनों के बारे में बताएं. शीर्ष अदालत ने समलैंगिकता विरोधी अधिकार समूहों से कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले पर विरोध दर्ज कराते हुए दायरा बढ़ाएं और उन्हें केवल जिस्मानी संबंधों तक सीमित नहीं रखें. पीठ ने कहा था कि समलैंगिकता को बदलते समाज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए क्योंकि कई चीजें जो पहले नामंजूर होती थीं, समय के साथ साथ स्वीकार्य हो गयी हैं.