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हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है सरकार: प्रणब

नीतिगत लाचारी को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे उद्योग जगत को सख्त संदेश देते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है. उन्होंने संकेत दिया कि आर्थिक नरमी पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक सोमवार को ब्याज दरों में कटौती कर सकता है.

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प्रणव मुखर्जी
प्रणव मुखर्जी

नीतिगत लाचारी को लेकर सरकार की आलोचना कर रहे उद्योग जगत को सख्त संदेश देते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है. उन्होंने संकेत दिया कि आर्थिक नरमी पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक सोमवार को ब्याज दरों में कटौती कर सकता है.

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संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद शनिवार को अपने पहले सार्वजनिक भाषण में मुखर्जी ने कहा 'सरकार स्टैंडर्ड एंड पुअर्स जैसी वैश्विक एजेंसियों और उद्योगों द्वारा जाहिर चिंता से निपटने के लिए कदम उठा रही है.' उन्होंने ऐसोचैम के सम्मेलन में कहा 'वित्त मंत्री के तौर पर मैं जमीनी हकीकत से इन्कार नहीं कर सकता. मैं उनकी चिंता को खारिज नहीं करता. मैंने उनकी चिंता को गंभीरता से लिया है और यह देखने की कोशिश करूंगा कि क्या किया जा सकता है.'

आरबीआई द्वारा नरमी से निपटने में सरकार का सहयोग करने का संकेत देते हुए उन्होंने कहा 'सभी तत्वों को ध्यान में रखते हुए मुझे भरोसा है कि आरबीआई मौद्रिक नीति में समायोजन करेगा जैसे हम राजकोषीय नीति में समायोजन कर रहे हैं.' वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के नौ साल के न्यूनतम स्तर 6.5 फीसद पर पहुंचने के बीच उम्मीद है कि आरबीआई सोमवार को मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में ब्याज दरें घटाएगा.

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मुखर्जी ने पेट्रोलियम सब्सिडी के बढ़ते बोझ को केंद्र के लिए एक मुश्किल मुद्दा बताया जिसके लिए उन्होंने सरकार से अपने कर में कटौती की अपील की है.
उन्होंने कहा कि जहां तक 2011-12 में राज्यों की वित्तीय स्थिति का सवाल है, यह काफी हद तक संतोषजनक रही. उन्होंने राज्यों को पत्र लिखा है कि केंद्र उनकी समस्याओं पर जवाब देगा लेकिन यह संतुलित होना चाहिए क्योंकि यदि केंद्र की वित्तीय स्थिति कमजोर होती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को कोई नहीं उबार पाएगा.

यूरोक्षेत्र संकट के बारे में मुखर्जी ने कहा कि भारत की चिंता इस बात को लेकर है कि यूनान क्या यूरो मुद्रा वाले समूह का हिस्सा बना रहेगा. इस संबंध में भारत अन्य देशों की तरह ही चिंतित है क्योंकि इन घटनाक्रमों का असर रुपए पर हो रहा है. साल भर में डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में करीब 20 फीसद की गिरावट आई है.

अजीम प्रेमजी और एन आर नारायणमूर्ति जैसे उद्योगपतियों ने सरकार पर नीतिगत अनिर्णय का आरोप लगाया है. मुखर्जी ने कहा कि सरकार अपनी वित्तीय स्थिति के प्रबंधन और सब्सिडी कम करने के लिए काम कर रही है. उन्होंने अर्थव्यवस्था के समक्ष खड़ी चुनौतियों को गिनाते हुए कहा कि वृद्धि में कमी, उच्च राजकोषीय एवं चालू खाते के घाटे, मुद्रास्फीति और नकारात्मक रुझान इनमें प्रमुख हैं.

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उन्होंने कहा 'हमें अपनी सब्सिडी घटानी होगी. मैंने अनुमान जाहिर किया था कि इसे सकल घरेलू उत्पाद के दो फीसद के बराबर होना चाहिए. हम इससे ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकते. सब्सिडी को लाभार्थी तक पहुंचाने के लिए हमें आपूर्ति प्रणाली में सुधार करना होगा और हम कदम उठा रहे हैं. हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं.' सरकार ने 2012-13 में खाद्य, ईंधन और उर्वरक सहित प्रमुख सब्सिडी 1.79 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया है जो पिछले वित्त वर्ष के 2.08 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े से कम है.

देश की मुश्किल आर्थिक स्थिति और यूरोक्षेत्र संकट की अनिश्चितता का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा 'रुपए का अवमूल्यन जो कि यूरोक्षेत्र संकट के साथ काफी गहराई से जुड़ा है, चिंता का विषय है.' उन्होंने कहा कि विकसित देशों में वृद्धि उम्मीद के अनुरूप नहीं है, इटली में मंदी है और ब्रिटेन मंदी की कगार पर है, ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है.'

मुखर्जी ने कहा कि कच्चे तेल की कीमत घटने से देश को फायदा होगा. उन्होंने कहा 'हम कुछ हद तक अपना आयात बिल घटा सकते हैं.' कच्चे तेल की कीमत घटकर 90 डालर प्रति बैरल पर पहुंच गई है जो इससे पहले इस साल 120 डॉलर प्रति बैरल पर थी.

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उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाने के मामले में मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने पेट्रोलियम पदार्थों पर अस्थाई तौर पर शुल्क कम करने के बारे में मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है.

उन्होंने कहा 'मैंने उन्हें (मुख्यमंत्रियों को) सुझाव दिया है कि कच्चे तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल तक नीचे आने तक अस्थाई तौर पर आप कर का बोझ कम करने के लिए सहमत हैं, तो केंद्र सरकार भी मदद को तैयार है. इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी.' उन्होंने कहा 'जब हालात मुश्किल हैं तो इसका बोझ सभी संबद्ध पक्ष पर डालना चाहिए, सिर्फ एक पक्ष पर बोझ नहीं पड़ना चाहिए.' तेल विपणन कपंनियों ने मई में पेट्रोल की कीमत में 7.50 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी. बाद में जून में इसमें दो रुपए प्रति लीटर की कटौती कर दी गई.

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