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एक हादसे से पैदा हुई किशोर कुमार की ‘जादुई आवाज’

अपनी जादुई आवाज से कई पीढ़ियों की रूह को छूने वाले किशोर कुमार के गले से बचपन में सही ढंग से आवाज नहीं निकलती थी, जिसे लेकर उनके माता-पिता परेशान रहते थे. उसी दौरान एक हादसे ने उनके भीतर एक ऐसी सुरीली आवाज पैदा कर दी जो आगे चलकर लोगों के जेहन में हमेशा के लिए घर कर गई.

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किशोर कुमार
किशोर कुमार

अपनी जादुई आवाज से कई पीढ़ियों की रूह को छूने वाले किशोर कुमार के गले से बचपन में सही ढंग से आवाज नहीं निकलती थी, जिसे लेकर उनके माता-पिता परेशान रहते थे. उसी दौरान एक हादसे ने उनके भीतर एक ऐसी सुरीली आवाज पैदा कर दी जो आगे चलकर लोगों के जेहन में हमेशा के लिए घर कर गई.

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कशोर कुमार के साथ काम कर चुके और उनके पारिवारिक मित्र रहे अभिनेता रजा मुराद ने यह जानकारी दी. मुराद का कहना है, ‘किशोर दा ने मुझे एक बार बताया था कि बचपन में उनकी आवाज गले से नहीं निकलती थी. इसको लेकर उनके माता-पिता परेशान रहते थे.’

उन्होंने कहा, ‘किशोर का पैर एक बार हंसिये पर पड़ गया और वह इतना रोए कि उनमें यह ‘जादुई आवाज’ पैदा हो गई. वह अपनी सुरीली आवाज के लिए इसी हादसे को श्रेय देते थे.’ किशोर का जन्म चार अगस्त, 1929 को खंडवा (अब मध्य प्रदेश में) के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम आभास कुमार गांगुली था.

मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के भाई किशोर का भी रुझान सिनेमा की ओर कम उम्र में ही हो गया. वह ‘बांबे टॉकीज’ के साथ जुड़े, जहां उनके भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता मौजूद थे. बड़े भाई की मौजूदगी का फायदा मिला और किशोर को पहली बार 1946 में फिल्म ‘शिकारी’ में छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला.

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किशोर कई फिल्मों में नजर आए, हालांकि उनके भीतर बतौर गायक जो प्रतिभा छिपी थी, उसका अंदाजा किसी को नहीं था. इस प्रतिभा को सबसे पहले सचिन देव बर्मन ने पहचाना. एक बार बर्मन अशोक कुमार के आवास पर गए थे, जहां उन्होंने देखा कि किशोर कुमार के एल सहगल की नकल करने की कोशिश करते हुए कुछ गुनगुना रहे हैं. इस पर उन्होंने किशोर को सलाह दी कि वह अपनी खुद की शैली विकसित करें. किशोर ने उसकी सलाह मान ली और खुद की शैली विकसित की.

इस तरह से एस डी बर्मन के साथ किशोर के गायकी के करियर की शुरुआत हुई और दोनों ने कई यादगार नगमे दिए. मुराद का कहना है, ‘किशोर दा सहगल के बड़े प्रशंसक थे. उनके कमरे में सहगल की कई तस्वीरें थीं. इससे पता चलता है कि वह सहगल के कितने बड़े मुरीद थे.’

किशोर कुमार के लिए 1970 और 80 का दशक बेहद खास रहा. इस दौरान उन्होंने कई ऐसे गीत गाए, जो आज भी लोगों की रूह को छू जाते हैं. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना’ ‘ये जो मोहब्बत है’, ‘एक रास्ता है जिंदगी’ और ‘मंजिले अपनी जगह’ जैसे सैकड़ों गीत हैं, जो संगीतप्रेमियों के जेहन में हमेशा के लिए घर कर गए हैं. किशोर ने गायकी और अभिनय के साथ कई फिल्मों का निर्माण भी किया.

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उनकी फिल्म ‘दूर वादियों में कहीं’ में रजा मुराद, उनके पिता और उनकी भांजी सोनम साथ नजर आए थे. इसे याद करते हुए मुराद कहते हैं, ‘इस फिल्म में हमारी तीन पीढ़ियों के लोग नजर आए थे. किशोर दा एक बेहतरीन फिल्मकार भी थे. कश्मीर में इस फिल्म की शूटिंग करना मेरे लिए यादगार रहा.’

हिंदी सिनेमा में किशोर कुमार एकमात्र ऐसे गायक हैं, जिन्होंने आठ बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्‍व गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. इसके अलावा उन्हें कई और पुरस्कार मिले. किशोर कुमार अपने निजी जीवन को लेकर हमेशा सुखिर्र्यों में रहे. उन्होंने चार शादियां की.

उनकी दूसरी शादी मशहूर अदाकारा मधुबाला के साथ हुई थी. मधुबाला की मौत के साथ ही यह रिश्ता टूटा. 13 अक्तूबर, 1987 को किशोर कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. वह ताउम्र खुद को किशोर कुमार खंडवावाले कहते थे और उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, मध्यप्रदेश के खंडवा स्थित उनके पैतृक आवास पर किशोर कुमार के गीत संगीत का एक संग्रहालय बनाया गया.
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