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क्या अल्पमत में आ गई है मनमोहन सरकार?

लोकपाल विधेयक को संवैधानिक दर्जा देने समय सरकार को जादुई आंकड़ा 273 वोट नहीं मिला और लोकपाल को संवैधानिक दर्जा नहीं मिल सका. दरअसल सरकार पर दबाव इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि सदन में मंगलवार को जितनी बार भी वोटिंग हुई, सरकार की तरफ से एक बार भी जादुई आंकड़ा 273 मत नहीं पड़े.

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मंगलवार को लोकपाल विधेयक को संवैधानिक दर्जा देने समय सरकार को जादुई आंकड़ा 273 वोट नहीं मिले और लोकपाल को संवैधानिक दर्जा नहीं मिला. दरअसल सरकार पर दबाव इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि सदन में मंगलवार को जितनी बार भी वोटिंग हुई, सरकार की तरफ से एक बार भी जादुई आंकड़ा 273 मत नहीं पड़े. इसी वजह से वो लोकपाल को संवैधानिक दर्जा भी नहीं दिला पाई और अब विपक्ष के निशाने पर है. आंकड़ों में तो सरकार आगे थी. लेकिन, लोकसभा के बोर्ड पर जो आंकड़े आ रहे थे, वो सरकार के लिए मुसीबत का सबब थे.

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लोकसभा में दिन भर की बहस के बाद जब लोकपाल बिल को लेकर वोटिंग हो रही थी, तो सब ठीक चल रहा था. सरकार ने अपने हिसाब से बिल में संशोधन लाए और उन सब पर सदन की मुहर भी लग रही थी.

ध्वनि मत से बिल भी पास हो गया और संशोधनों को भी मंजूरी मिलती चली गई.

लेकिन, जब सवाल उठा लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिलाने का तो सदन में जरूरत हुई पूर्ण बहुमत की और सदन में मौजूद दो तिहाई बहुमत की. सरकार को जरूरत थी 273 सदस्यों की. गौरतलब है कि फिलहाल सरकार के समर्थन में हैं 277 सदस्य और इसी वजह से सरकार आश्वस्त थी.

जब लोकसभा में संशोधन प्रस्ताव आया, तो बीजेपी ने वोटिंग की मांग कर डाली. जाहिर है सरकार के खेमे में इस मांग ने ही हलचल मचा दी. दरअसल, बिल पर बहस के दौरान सरकार खेमे के करीब 25 सांसद इधर-उधर टहलने के लिए निकल गए थे. इसके साथ-साथ समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल के मेंबर सदन से वॉकआउट भी कर गए थे. ऐसे में, जो आंकड़ा बचा था वो सरकार की मुसीबत बढ़ाने वाला ही था और सरकार यहां हार गई. सरकार की इस हार के साथ ही बीजेपी को फिर एक मुद्दा मिल गया है.

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विपक्ष अब ये सवाल भी उठा रहा है कि जब सरकार के पास 273 का जादुईं आंकड़ा भी नहीं है तो क्यों वो सत्ता में बैठी है.

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