भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने रविवार को अंतरिक्ष विभाग पर आरोप लगाया कि उसने स्पेक्ट्रम करार पर सरकार और अंतरिक्ष आयोग को गुमराह किया.साथ ही नायर ने 30 करोड़ डॉलर मूल्य के एंट्रिक्स-देवास करार की नए सिरे से जांच कराने की मांग की.
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी. नारायणसामी को लिखे पत्र में नायर ने कहा, 'अंतरिक्ष विभाग ने देवास करार पर गलत जानकारियां देकर सरकार और अंतरिक्ष आयोग को गुमराह किया. इसलिए, मैं प्रधानमंत्री से अनुरोध करता हूं कि वह एंट्रिक्स-देवास करार और इसे निरस्त करने के कारणों सहित सभी पहलुओं की समीक्षा करने के लिए एक उचित समिति गठित करें.'
नायर ने कहा, 'इससे सही स्थिति सामने आएगी.'
अपने साथ तीन अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों को काली सूची में डालने के सरकार के 13 जनवरी के फैसले को दुर्भावनापूर्ण और निर्धारित मानकों के खिलाफ बताते हुए नायर ने कहा कि अंतरिक्ष विभाग की गलत निर्णय की वजह से मौजूदा स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी.
उन्होंने कहा कि सच्चाई छिपाने और बलि का बकरा बनाने के लिए विभाग ने कई गलती की.
पत्र के मुताबिक नायर ने कहा, 'अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा देवास करार की समीक्षा के लिए गठित बी.एन. सुरेश समिति ने समझौते को निरस्त करने की अनुशंसा नहीं की थी बल्कि उसने अंतरिक्ष आयोग को सामाजिक एवं सुरक्षा जरूरतों के हिसाब से करार पर दोबारा बातचीत करने की सलाह दी थी.'
उल्लेखनीय है कि जनवरी 2005 में इसरो की व्यावसायिक इकाई एंट्रिक्स कारपोरेशन और बेंगलुरू स्थित देवास मल्टीमीडिया सर्विसेज लिमिटेड के बीच हुए 30 करोड़ डॉलर के स्पेक्ट्रम समझौते में विवादास्पद भूमिका पाए जाने पर गत 13 जनवरी को नायर और तीन अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिकों पर सरकार की ओर से प्रतिबंध लगाया गया.
सरकार ने इन चारों वैज्ञानिकों को आजीवन किसी भी सार्वजनिक पद पर होने से प्रतिबंधित कर दिया.
इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित 11 सदस्यीय अंतरिक्ष समिति ने नायर तथा तीन अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिकों- पूर्व वैज्ञानिक सचिव ए. भास्करनारायण, इसरो के उपग्रह केंद्र के पूर्व निदेशक के. एन. शंकर तथा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के पर्वू कार्यकारी निदेशक के. आर. सिद्धार्थमूर्ति को एंट्रिक्स-देवास स्पेक्ट्रम समझौते में हुई गड़बड़ियों के लिए दोषी ठहराया था.