रेल बजट में यात्री किराया बढ़ाने के प्रस्ताव के कारण तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के कहने पर रेल मंत्री के पद से हटाए गए उनके दल के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि भारत में ज्यादातर राजनीतिक दल, खास कर क्षेत्रीय दल ‘सामंती’ बन गए हैं और मनमाने फैसले करते हैं.
एक संसदीय दल के सदस्य की हैसियत से यहां आए त्रिवेदी ने हालांकि यह भी कहा कि चमचागिरी या चापलूसी से किसी भी नेता को फायदा नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे पिछले कुछ बरसों में एक बहुत ही खतरनाक चलन चला है जिसमें ज्यादातर राजनीतिक दल जागीर बन गए. यहां आंतरिक लोकतंत्र नहीं है, मुद्दों पर न तो बहस की जाती है और न ही चर्चा की जाती है.
त्रिवेदी ने कहा कि मैं किसी एक राजनीतिक दल की बात नहीं कर रहा हूं, मैं एक सामान्य बात कह रहा हूं कि पार्टी का प्रमुख जो भी कहे, उस पर कभी कोई चर्चा नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में पार्टी के सदस्यों को डर बना रहता है कि अगर वह नेता या प्रमुख के फैसलों के खिलाफ कुछ भी कहेंगे तो अगली बार उन्हें चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा.
त्रिवेदी ने कहा कि मेरे लिए देश सबसे पहले, फिर परिवार और फिर पार्टी आती है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह केवल अपने विचार जाहिर कर रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता की हैसियत से नहीं बोल रहे हैं. मार्च में रेल बजट में जब त्रिवेदी ने यात्री किराये में वृद्धि का प्रस्ताव रखा तो तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने उन्हें पद छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया था.
उन्होंने कहा कि अगर हम पार्टी का नहीं, बल्कि एक व्यक्ति का काम करने जा रहे हैं तो मुझे लगता है कि यह भारत में एक अत्यंत खतरनाक घटनाक्रम है जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ होगा.
त्रिवेदी ने कहा कि निजी तौर पर मुझे लगता है कि कुछ करने की जरूरत है क्योंकि भारत में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है और यह राजनीतिक स्तर पर शुरू हो जाता है. राजनीतिक दल सामंती बन गए हैं. उन्होंने कहा कि समय आ गया है जब ‘चाबुक व्यवस्था’ पर फिर से सोचा जाए.
उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक दल में रहते हुए अगर मेरे पास अलग नजरिया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं लड़ रहा हूं, यह लोकतंत्र की मजबूती है. त्रिवेदी ने कहा कि मुझे लगता है कि हम असहिष्णु बन गए हैं, राजनीतिक तौर पर हम अत्यंत असहिष्णु हैं.
तृणमूल नेता ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को छोड़ दें तो राजनीतिक दलों में एक ही व्यक्ति फैसले करता है और सामूहिक निर्णय की कोई गुंजाइश नहीं है. त्रिवेदी ने कहा कि जहां तक देश का सवाल है तो यह अजीब लगता है. अमेरिका में लोग मुझसे पूछते हैं कि जिसने रेल बजट पेश किया है तो क्या वह आपका निजी बजट है, पार्टी का बजट है या संघीय बजट है. जब हर कोई बजट की तारीफ कर रहा है तो किसी को बीच में ही कैसे हटाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि इसलिए भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया सवालों के घेरे में है. मेरी राय में इससे भारतीय संसदीय लोकतंत्र पर भी सवाल उठ गए हैं. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कामकाज के बारे में त्रिवेदी ने कहा कि वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सराहना करते हैं कि इस स्थिति में आने के लिए उन्होंने तीन दशक से लंबी लड़ाई लड़ी.
उन्होंने कहा कि लेकिन विपक्ष में होना और सरकार में होना अलग अलग बात है. जब आप सरकार में होते हैं तो लोग आपकी ओर उम्मीद भरी नजर से देखते हैं और आपके पास अधिकार होते हैं. मेरी राय में आज बंगाल को ताजा हवा की जरूरत है.